कोरोना डायरी-14 : आपदा से उपजती आशंकाँए
7 अप्रैल 2020, दोपहर-2 बजे। सूरज के सातवें घोड़े की तरह सरपट दौड़ते वक्त ने अपनी कांख में ऐसा गहरा गड्ढा छुपा रखा होगा, जिसमें समूची धरती के वाशिंदे एकसाथ समा जाएंगे, क्या ऐसा किसी ने सोचा था? समय...
7 अप्रैल 2020, दोपहर-2 बजे।
सूरज के सातवें घोड़े की तरह सरपट दौड़ते वक्त ने अपनी कांख में ऐसा गहरा गड्ढा छुपा रखा होगा, जिसमें समूची धरती के वाशिंदे एकसाथ समा जाएंगे, क्या ऐसा किसी ने सोचा था? समय की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वह हमेशा धुंध की ओट से झांकता है। किसी को पता नहीं होता कि इस घने कुहासे के आगे क्या छिपा है? समतल धरती, ऊंची चढ़ाई अथवा अथाह गहराई।
कल तक शेखी बघार रहे ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन आई.सी.यू. में हैं। उनके एक और मंत्री ने खुद को घर में क्वारंटीन कर लिया है। इंग्लैंड की सरकार सकते में है और रियाया अपने होने का अर्थ तलाश रही है। अमेरिका से उपजे जिस पूंजीवाद ने लोगों से उनका जंगल, जल और जमीन छीने थे, वह खुद आश्वस्ति की छांव ढूंढ रहा है। अमेरिका के बड़बोले राष्ट्रपति कहते हैं कि आर्थिक प्रगति की बात तो बाद में देखेंगे, पहले लोगों का जिंदा बचना जरूरी है। यह महादेश हर पल होने वाली मौतों से हकबका गया है। वहां का नेतृत्व मानता है कि हर रोज बढ़ती संख्या को अभी शीर्ष पर पहुंचने में हफ्ते से दो हपते लगेंगे। न्यूयॉर्क के डेढ़ कमरे के फ्लैट में बंद मेरे दोस्त के बच्चों ने बताया कि हम कई दिनों से घर से नहीं निकले हैं। यहां सब बंद है। दस लाख से अधिक लोग रोजगार गंवा चुके हैं। कितने और गंवाएंगे, कोई नहीं जानता। हम मानते थे कि यहां की सरकार सही आंकड़े देती है पर लगता है कि ह्वाइट हाउस को भी हकीकत का सही अनुमान नहीं। इस नौजवान दंपत्ति पर उनके माता-पिता गर्व करते थे। आज उनकी नींद हराम हैं क्योंकि न्यूयॉर्क कोविड-19 का केंद्र बना हुआ है।
मेरे एक दोस्त जापान में रहते हैं। #कोविड-19 के प्रकोप की शुरुआत में वे कहते थे कि यहां के लोग जानते हैं कि ऐसी आपदाओं से कैसे निपटा जा सकता है। हमारे यहां जिंदगी सामान्य है। जिसे जरा भी शक होता है, वह खुद को घर में क्वारंटीन कर लेता है। इससे पहले भी हमने विश्व के तमाम जानलेवा बीमारियों को हराया है। हमारे यहां तो मॉल और पब, सब खुले हैं। आप भारत की सोचिए। अब जापान भी 'हेल्थ इमरजेंसी' की चपेट में है। मेरी जैसी पकी हुई उम्र के लोग आत्मीय महफिलों में कहा करते थे कि हम खुश नसीब हैं कि हमारी पीढ़ी ने कोई विश्व युद्ध अथवा वैश्विक महामारी नहीं देखी। मैं इस समय खुद को इस वैश्विक प्रकोपकी गर्त में गिरा पाता हूं। रही बात विश्व युद्ध की, तो क्या पता कि पहले से खदबदाते तमाम असंतोष इस लम्बे खिंचते मौत के तांडव में दूसरा रूप धारण कर लें! पहले और दूसरे विश्व युद्ध भी जब हुए, तो दुनिया पर तमाशेबाज राजनेताओं का कब्जा था। वे बोलते बहुत थे, पर दूरदर्शिता और जन-जिम्मेदारी की भावना उन्हें छू तक नहीं गई थी। आज बोरिस जॉनसन और ट्रंप जैसे नेताओं को आप क्या कहेंगे?
डोनॉल्ड ट्रंप तो इतने उथले हैं कि वे कब क्या कह दें, कब किस बात से मुकर जाएं, कब क्या फैसला ले लें, कोई नहीं जानता। दो दिन पहले उन्होंने बताया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उन्होंने अनुरोध किया है कि मलेरिया की दवा #हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की सप्लाई पुन: बहाल कर दें तो अच्छा होगा। आश्चर्य है कि आज, मंगलवार, व्हाइट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने कहा कि मैंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात की थी। मैंने उनसे कहा था, ह्यअगर आप हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की सप्लाई को शुरू करते हैं, तो काफी अच्छा होगा, लेकिन अगर वो ऐसा नहीं करते तो उसका करारा जवाब दिया जाता।ह्ण उनका आज का बयान बेहद खटकने वाला है। जवाबी कार्रवाई , आक्रमण, युद्ध जैसे शब्दों का इन पूंजीवादियों ने भयंकरतम दुरुपयोग किया है। गरीबी के नाम पर इन्होंने जो युद्ध छेड़े उससे सिर्फ इनकी और इनके साथियों की झोलियां भरीं। ये दुनिया की भलाई के नाम पर अफगानिस्तान, ईरान या ईराक के निहत्थे लोगों को जमींदोज कर देते हैं। जो देश बहैसियत मित्र इनका साथ देते हैं, उनको जंग हारने की स्थिति में अकेला छोड़कर लौट लेते हैं।अब, जब खुद उन पर आफत आई है, तो वे दवा तक के लिए धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह स्थिति डराती है।
कोविड-19 का प्रकोप अगर और लम्बा खिंचा तो ऐसा लगता है कि ये ताकतवर देश लूटमार पर भी आमादा हो सकते हैं। तेल पर कब्जा बनाए रखने के लिए अगर वे ईराक को तहस-नहस कर सकते हैं, तो अपनी घुटती सांसों को बचाने के लिए वे क्या नहीं कर गुजरेंगे ? सिर्फ बाहरी लड़ाइयां क्यों, अगर ये हालात लम्बे खिंचे तो भय, भूख और गरीबी किस्म-किस्म की अराजकता को जन्म दे सकती है। आपने कुछ दिनों पहले लाखों लोगों को महानगरों से पैदल अपने गांव जाते हुए देखा था। गांवों में अगर उन्हें पालने-पोसने का माद्दा होता, तो वे शहरों की ओर भागते क्यों? हम एक असंतुलित दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं और ऐसे में सरकारों को जल्द से जल्द समाज की तली पर बैठे लोगों की सुधि लेनी पड़ेगी। हमारे देश में उसके लिए कुछ कोशिशें हुई हैं पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। ऐसे में जब लॉकडाउन किसी न किसी रूप में लम्बा खिंचने की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हों, तो इस तरह की आवश्यकताएं और बढ़ जाती हैं।
आजतक की व्यथा कथा -
कुल मामले - 4789
डिस्चार्ज केस-352
कुल मौतें- 124
माइग्रेटेड- 1
उपचाराधीन -4312
नए मामले - 508
नई मौतें - - 13
सर्वाधिक संक्रमण वाले तीन राज्य
महाराष्ट्र - 868
तमिलनाडु - 621
दिल्ली - 576
प्रमुख राज्यों की स्थिति
उप्र - 305
उत्तराखंड - 31
हरियाणा - 90
बिहार - 32
झारखंड - 04
(सौजन्य -केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के। शाम 7 बजे)
क्रमश:
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