कोरोना डायरी-11 : जिरह बख्तर में जहालत
2 अप्रैल 2020, रात 9 बजे । कोरोना की कालिख गहरी होती जा रही है। ये सिर्फ महामारी भर नहीं रह गई है। इसने समाज, सरकार, सरोकार और इंसानी संवेदनाओं पर अपना घातक पंजा जमा दिया है। यह समय मानवता के...
2 अप्रैल 2020, रात 9 बजे ।
कोरोना की कालिख गहरी होती जा रही है। ये सिर्फ महामारी भर नहीं रह गई है। इसने समाज, सरकार, सरोकार और इंसानी संवेदनाओं पर अपना घातक पंजा जमा दिया है। यह समय मानवता के एक होने का था पर हो उलटा रहा है ।
तबलीगी जमात की मरकज को लेकर जिस तरह सोशल मीडिया पर युद्ध छिड़ा हुआ है, वह डराता है। ऐसी-ऐसी बातें कही और लिखी जा रही हैं, जिन्हें देखकर आने वाली पीढ़ियां शर्मसार महसूस करेंगी। और तो और, एक ऐसा ऑडियो वायरल हो रहा है जिसमें तथाकथित तौर पर जमात के नेता ऐसी अवैज्ञानिक बातें कह रहे हैं, जिससे लोगों का अहित के अलावा कुछ और नहीं हो सकता। यह भी हो सकता है वह आडियो उनका न हो, पर तलछट साफ करने का एक ही तरीका है कि मौलाना साद सामने आकर स्थिति स्पष्ट करें परंतु इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उनका कोई अता-पता नहीं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मरकज में शामिल लोगों ने भारत के बीस राज्यों को भयंकर सांसत में डाल दिया है। अब तक जो आंकड़ा सामने आया है, उसमें दिल्ली में आज कोरोना के 142 मरीज़ मिले जिसमें से 139 ने मरकज़ में हिस्सा लिया था । ख़ुद को धर्म का अलम्बरदार बताने वाले लोग यदि अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं करेंगे, तो फिर वे धार्मिक कैसे हुए? मरकज में शामिल तमाम लोगों की पहचान हो गई है, पर बहुत से भूमिगत हैं। क्यों नहीं जमात के जिम्मेदार लोग उनसे सामने आकर टेस्ट करवाने की अपील करते? अब यह जाना-बूझा सच है कि संक्रमण का शिकार कोई भी व्यक्ति दर्जनों लोगों को वायरस से संक्रमित करने में भागीदार बना सकता है।हालाँकि , बरेलवी मत ने टेस्ट कराने को कहा है । मौलाना फ़िरंगी महल जैसे तमाम विद्वान यही कह रहे हैं पर जहालत के जिरह बख्तर मोटे होते हैं । ऐसा नहीं कि सिर्फ भारत में ही इन लोगों ने ऐसी संत्रासपूर्ण हरकत की है। पाकिस्तान, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे मुल्क भी ऐसी गैरजिम्मेदाराना हरकतों की चपेट में आए हैं। मैं यकीनन धार्मिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में हूं पर पूरी दुनिया में जब धार्मिक आयोजन रद्द किये जा रहे हों, तब उन्हें जारी रखने की तुक क्या थी?
अब आते हैं कुछ और घटनाओं पर। जाहिलाना प्रचार का ही ये नतीजा है कि इंदौर में स्वास्थ्य-कर्मियों की टीम के साथ मारपीट हुई। उन पर हमला करने वाले जाहिल यह कैसे भूल गए कि जनता के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए ये लोग खुद अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं। ये तमाम फर्जी ऑडियो-वीडियो और सोशल मीडिया के अदृश्य कीमियागीरों की हरकतों का कमाल है कि देश की बड़ी आबादी के जेहन में कोरोना को लेकर भ्रांतियां भर गई हैं। ऐसे लोगों कों यह भी नहीं बिसराना चाहिए कि आज नहीं, तो कल महामारी अपने हिस्से की बलि लेकर चली जाएगी पर यह सांप्रदायिकता का विष समाज को तोड़-मरोड़कर रख देगा। मुझे इन दिनों अक्सर अल्वेयर कामू का ह्यप्लेगह्ण याद आता है। उपन्यास में ओरॉन नाम के शहर में प्लेग की वजह से नाकाबंदी हो गई थी और उसके बाद चर्च का पादरी जो कह रहा था, उसे आज के धर्मगुरुओं ने कई गुना विकृत कर दिया है। अब आते हैं संस्थाओं के प्रति पनप रहे अविश्वास पर। अमेरिका और यूरोप के तमाम देशों में सरकारों पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। इटली और स्पेन का लॉकडाउन बढ़ा दिया गया है। ब्रिटेन में मरीजों और मौतों की संख्या हर रोज अपना ही रिकॉर्ड तोड़ रही है। ऐसे में कोरोनाग्रस्त प्रधानमंत्री की हर ओर थू-थू तो हो रही है साथ ही सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल उठा रहे हैं। अमेरिका में कल तक जो ट्रंप इकॉनॉमी की बात करते थे वे भी अब घबराकर लाख से दो लाख मौत का आंकड़ा समझाने लगे हैं। रूस के तानाशाहनुमा राष्ट्रपति पुतिन के बारे में अफवाह है कि वे भी वायरस की चपेट में हो सकते हैं क्योंकि वे कोरोना ग्रस्त डॉक्टर से कई बार हाथ मिलाते हुए टीवी पर दिखे थे।
यकीनन पूरी दुनिया में सरकारों की विश्वसनीयता खतरे में पड़ गई है। अगर यह दौर लम्बा खिंचा तो यह धरती अराजकता की ओर बढ़ती दिखाई पड़ेगी। भारत में एक तरफ लॉकडाउन को कठोरता से लागू करने की बातें हो रही हैं, वहीं घर पहुंचने की जुगत में कुछ लोग अपनी और तमाम लोगों की जान खतरे में डालने से बाज नहीं आ रहे। आज पुलिस ने बाराबंकी में एक कंटेनर को पकड़ा जिसमें छुपकर तमाम लोग मुंबई से बहराइच जा रहे थे। इससे पहले भी ऐसे वाकये सामने आए हैं। लगता है, हमारी राज्य सरकारें लोगों को यह विश्वास दिलाने में नाकामयाब रही हैं कि जो जहां है, वो वहां सुरक्षित है। सरकार का साया उनके सिर पर है।
क्रमश:
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