आतंक के खिलाफ हथियार है नादिया की कहानी
बीते शुक्रवार को इराक की नादिया मुराद और कांगो गणराज्य के डेनिस मुकवेगे को इस साल के नोबेल शांति सम्मान से सम्मानित करने का एलान किया गया। इन दोनों को यह पुरस्कार ‘युद्धों और सैन्य संघर्षों में...
बीते शुक्रवार को इराक की नादिया मुराद और कांगो गणराज्य के डेनिस मुकवेगे को इस साल के नोबेल शांति सम्मान से सम्मानित करने का एलान किया गया। इन दोनों को यह पुरस्कार ‘युद्धों और सैन्य संघर्षों में एक हथियार के तौर पर यौन हिंसा के इस्तेमाल को खत्म कराने के उनके प्रयासों के लिए दिया गया है। डेनिस मुकवेगे को जहां कांगो में युद्ध-काल की बलात्कार पीड़िताओं की मदद के लिए यह सम्मान दिया गया है, वहीं नादिया मुराद को उस ‘असाधारण साहस के लिए यह मिला, जिसके तहत उन्होंने न सिर्फ अपनी आपबीती दुनिया को सुनाई, बल्कि खुद जैसी अन्य पीड़िताओं की तरफ से उनकी आवाज भी बुलंद की है।’
इसी साल 25 सितंबर को नादिया मुराद से मैं न्यूयॉर्क के एक जलसे में मिली थी, जहां उन्हें ‘चेंजमेकर अवॉर्ड’ से नवाजा गया था। अपनी दर्दनाक कहानी के जरिए उन्होंने दुनिया का ध्यान इराक और तमाम संघर्षरत इलाकों के युद्ध-अपराधों की ओर खींचा था। उन्होंने इंटरव्यू देने से सबको मना कर दिया, लेकिन हमने उनका अभिवादन किया। नादिया अंग्रेजी नहीं बोल पातीं, मगर कुछ-कुछ समझ लेती हैं, इसलिए उनसे बातचीत बहुत छोटी और औपचारिक ही रही। बहरहाल, नादिया की पहचान से वाकिफ होने से पहले उस भीड़ भरे हॉल में मैंने उन्हें काफी गौर से देखा था। उनकी आंखें उस अकल्पनीय खौफ को बयां कर रही थीं, जो उन्होंने इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकियों की सबाया (यौन-गुलाम) के तौर पर महीनों झेला था।
24 साल की नादिया यजीदी समुदाय की हैं। इस पूरी नस्ल के सफाए के लिए अगस्त 2014 में आईएस ने उत्तरी इराक के शिंजा इलाके में धावा बोला था। उस हमले में आईएस आतंकियों ने यजीदी समुदाय के हजारों लोगों को या तो मार डाला या फिर अपनी पुश्तैनी जगह छोड़कर भागने को बाध्य कर दिया था। उस नरसंहार में नादिया के परिवार के 18 लोग मार डाले गए, जिनमें उनके छह भाइयों और मां का कत्ल तो शुरू में ही कर दिया गया था। उन सबको एक सामूहिक कब्र में दफ्न कर दिया गया था। नादिया को जिंदा इसलिए छोड़ दिया गया, क्योंकि वह जवान थीं और सबाया के रूप में इस्तेमाल की जा सकती थीं, यानी जिसका बार-बार बलात्कार किया जा सके, पीटा जाए और कई लोगों को बेचा जा सके। अपनी आत्मकथा द लास्ट गर्ल : माई स्टोरी ऑफ कैप्टिविटी ऐंड माई फाइट अगेंस्ट द इस्लामिक स्टेट में नादिया लिखती हैं, ‘मैंने पहली बार सबाया अल्फाज तब सुना, जब यह मेरे लिए इस्तेमाल किया गया। उसी एक पल से ही मैं लम्हा-लम्हा मरने लगी। आईएस के साथ गुजरा मेरा हर सेकंड बेहद तकलीफदेह धीमी मौत जैसा था।’
अगवा की गई दूसरी बच्चियों और औरतों की तरह नादिया को भी पीटा गया, उन पर कोडे़ बरसाए गए, जिस्म को सिगरेट से दागा गया, लगातार रेप हुआ और उनको बार-बार बेचा गया। जनवरी 2015 में नादिया मोसुल के एक मुस्लिम परिवार की मदद से कैद से भागने में कामयाब हुईं, और तभी से वह यजीदी लोगों की आवाज बन गई हैं। इनमें वे 1,300 यजीदी औरतें भी शामिल हैं, जो अब भी आईएस की गुलाम हैं।
नादिया लिखती हैं, ‘ईमानदारी से अपनी बात कहने का फैसला बेहद मुश्किल था और अहम भी... अपनी आपबीती बताना कभी आसान नहीं होता। आप जब-जब इसे दोहराते हैं, आपको उसी दंश को भोगना पड़ता है। लेकिन अपनी कहानी ईमानदारी से बताना और तथ्यों को सामने लाना ही वह हथियार है, जो मैं दहशतगर्दी के खिलाफ जारी जंग को दे सकती हूं। मैं इस हथियार का इस्तेमाल तब तक करती रहूंगी, जब तक वे दहशतगर्द इंसाफ की अदालत में पेश नहीं किए जाते।’
यह कतई आसान नहीं है कि अपने साथ हुई यौन हिंसा के खिलाफ आवाज बुलंद की जाए। क्रिस्टीन ब्लासी फोर्ड का मामला इसका एक बड़़ा उदाहरण है। फोर्ड ने जज ब्रेट केवेनाग पर अपने यौन उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाया है, फिर भी केवेनाग का अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का जज बनना लगभग तय है। लेकिन नादिया की तरह फोर्ड भी उन तमाम लोगों के लिए एक महानायिका हैं, जो मानव-मूल्यों में यकीन करते हैं।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।