गरम दिनों की चेतावनी और सावधानी का आया समय
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अप्रैल से जून महीने के दौरान औसत से ज्यादा गरम दिनों का पूर्वानुमान जारी कर दिया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने वैश्विक जलवायु की स्थिति रिपोर्ट में 2023 को दस वर्ष...
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने वैश्विक जलवायु की स्थिति रिपोर्ट में 2023 को दस वर्ष की अवधि में सबसे गरम वर्ष के रूप में दर्ज किया है। आज औसत वैश्विक तापमान उद्योग पूर्व दौर के तापमान से 1.45 डिग्री सेल्सियस ऊपर है। जाहिर है, यह जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते की 1.5 डिग्री सेल्सियस की निचली सीमा के करीब है। अब विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव दुनिया को चेतावनी दे रहे हैं। दुनिया में तापमान बढ़ने की यह प्रवृत्ति इस वर्ष भी जारी है; जनवरी 2024 रिकॉर्ड पर सबसे गरम जनवरी है। ऐसे में, यह चिंता जायज है कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है?
यहां गौर करने की बात है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इसी सप्ताह की शुरुआत में अप्रैल से जून महीने के दौरान औसत से ज्यादा गरम दिनों को लेकर सामान्य पूर्वानुमान जारी किया है। दक्षिणी प्रायद्वीप के बड़े हिस्से, मध्य भारत, पूर्वी भारत और उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों में सामान्य से अधिक तापमान रहने की आशंका जताई है। यहां यह बताते चलें कि यदि सामान्य तापमान 4.50 डिग्री सेल्सियस से 6.40 डिग्री तक बढ़ जाता है, तो लू की स्थिति बनती है और जब 6.40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाता है, तो गंभीर लू के हालात बनते हैं।
देश में शुरू हो चुके गरम दिनों में अधिकतम तापमान जब 45 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर हो जाए, तो लू की स्थिति बनेगी और तापमान जब 47 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो जाए, तो गंभीर लू चलने की घोषणा हो जाएगी। ध्यान रहे, लू की स्थिति तभी घोषित होती है, जब कम से कम दो मौसम विज्ञान उप-केंद्रों पर दो दिन लगातार निर्धारित उच्च तापमान दर्ज किया जाता है। भारतीय मौसम विभाग और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण संयुक्त रूप से रंग कोड आधारित गरमी की चेतावनी जारी करते हैं, इनमें हरा अलर्ट मतलब सामान्य दिन, पीला अलर्ट मतलब गरमी का अलर्ट, ऑरेंज अलर्ट मतलब भीषण गरमी और रेड अलर्ट मतलब दिन भर अत्यधिक गरमी की चेतावनी। चेतावनियों को समझते हुए लोगों को अपनी दिनचर्या तय करनी चाहिए।
वैसे तो गरमी एक सामान्य बात है, पर गरमी के प्रति लोगों के शरीर की प्रतिक्रिया और उसे सहने की क्षमता व्यक्ति-दर-व्यक्ति अलग-अलग होती है। गरमी से होने वाला तनाव भी अलग-अलग रूपों में नजर आता है। औसत से अधिक गरम हालात के संपर्क में आने पर या गरमी में तेज वृद्धि से मानव शरीर की तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है, जिसके परिणामस्वरूप गरमी में ऐंठन, थकावट, हीटस्ट्रोक और हाइपरथर्मिया सहित कई स्थितियां पैदा होती हैं। हालांकि, इनमें से प्रत्येक स्थिति को चिकित्सकीय रूप से परिभाषित किया गया है और डॉक्टरों द्वारा चिकित्सकीय रूप से मान्यता भी मिली हुई है, पर जरूरी नहीं कि देश भर में बोली जाने वाली विभिन्न स्थानीय भाषाओं में भी गरमी को लेकर इसी तरह के शब्द हों। वैसे ध्यान रहना चाहिए, गरमी की वजह से स्थितियां एक ही दिन में तेजी से बिगड़ सकती हैं, अस्पताल में भर्ती होने और मौत की भी नौबत आ सकती है। बीमार पड़ने पर दिनचर्या कई दिनों तक प्रभावित हो सकती है। बुजुर्गों और कमजोर लोगों में मौजूदा बीमारियां और भी बदतर हो सकती हैं। विशेष रूप से हृदय, श्वसन और मस्तिष्क संबंधी रोग, मधुमेह से संबंधित शिकायतें बढ़ सकती हैं। ये दुष्प्रभाव आमतौर पर हीटवेव या लू के शुरुआती दिनों में ही स्पष्ट हो जाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि मौसमी औसत तापमान में आने वाला मामूली अंतर भी बढ़ती बीमारी और मौत की वजह बन सकता है।
केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के साथ ही सभी मौसम विज्ञान से जुड़े संस्थान, अकादमिक और गैर-सरकारी संगठन भी तापमान से जुड़े इन जटिल मुद्दों को संबोधित करने और दुष्प्रभाव घटाने में लगे हुए हैं। कमजोर आबादी पर अत्यधिक गरमी के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए राज्य और अनेक शहरों द्वारा विशेष हीट एक्शन प्लान (एचएपी) विकसित किए गए हैं। जरूरी सावधानियों और उपायों को आजमाने की सलाह हर किसी तक पहुंचनी चाहिए। हम विशेष रूप से सबसे कमजोर लोगों को आगामी गरम मौसम से बेहतर ढंग से निपटने में सक्षम बना सकते हैं। खूब सारे तरल पदार्थ, खासकर पानी के सेवन का समय आ गया है।
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