Hindi Newsओपिनियन नजरियाhindustan nazariya column 17 oct 2024

हकीकत से मुंह मोड़कर भारत को नाराज करता कनाडा

हर कोई नाराज है। भारत कनाडा से उचित ही खफा है कि वह खालिस्तानी आतंकियों द्वारा भारत को दशकों तक दिए गए जख्मों को महसूस नहीं कर रहा। यहां तक कि ओटावा अपने इतिहास के सबसे दुखद विमान अपहरण कांड...

Pankaj Tomar प्रशांत झा, एसोशिएट एडिटर, हिन्दुस्तान टाइम्स, Wed, 16 Oct 2024 10:35 PM
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हकीकत से मुंह मोड़कर भारत को नाराज करता कनाडा

हर कोई नाराज है। भारत कनाडा से उचित ही खफा है कि वह खालिस्तानी आतंकियों द्वारा भारत को दशकों तक दिए गए जख्मों को महसूस नहीं कर रहा। यहां तक कि ओटावा अपने इतिहास के सबसे दुखद विमान अपहरण कांड को भी भूलने को तैयार है, जिसे खालिस्तानी आतंकियों ने अंजाम दिया था और जिसमें कई कनाडाई नागरिकों की जान गई थी। भारत की नाराजगी यह भी है कि कनाडा ने न केवल उन लोगों की तरफ से आंखें मूंद ली हैं, जो भारत के खिलाफ अलगाववादी एजेंडा चलाते हैं, बल्कि उनको वैधानिक हैसियत भी दे दी है, जो भारत और भारतीयों के खिलाफ हिंसा को तत्पर हैं। उसने नई दिल्ली पर विदेश में लक्षित हत्या का आरोप भी जड़ा है और भारतीय उच्चायुक्त सहित वरिष्ठ राजनयिकों को इन आरोपों में घसीटने व उनके खिलाफ कार्रवाई करने की अस्वीकार्य मांग भी की है।
भारत की नाराजगी इसलिए भी है कि पश्चिम ने जैसे इस्लामी आतंकवाद व चीन के उदय से पैदा हुए खतरों पर नई दिल्ली की शुरुआती चेतावनियों को तब तक नजरअंदाज किया, जब तक कि उसे खुद सख्त सबक नहीं मिला, उसी तरह ओटावा संगठित अपराध के प्रति नरम रुख अपनाने के खतरे पर भारतीय चिंताओं को तवज्जो नहीं दे रहा। कनाडाई राजनेता अपने चुनावी फायदे के लिए बहुमूल्य कूटनीतिक रिश्ते को दांव पर लगाने व पश्चिम में भारत को बदनाम करने की साजिशों में लगे हैं।
उधर, कनाडा नाराज है, क्योंकि उसका मानना है कि भारतीय अधिकारी कनाडा के नागरिकों की निगरानी कर रहे थे और उसकी घरेलू राजनीति को प्रभावित करने में जुटे थे। उसका मत है, भारतीय अधिकारी लक्षित हत्या कर रहे हैं और उनके निशाने पर सिर्फ हरदीप सिंह निज्जर नहीं, बल्कि अन्य सिख भी रहे हैं, जो कनाडा के नागरिक हैं और जिनके राजनीतिक विचार भारत से मेल नहीं खाते। कनाडाई सत्ता-प्रतिष्ठान की नाराजगी है कि नई दिल्ली ने ओटावा के आरोपों का सिरे से खारिज कर दिया है व उसे घरेलू कनाडाई राजनीति का हिस्सा बताया है। 
अमेरिका की नाराजगी यह है कि (उसकी राय में) भारत ने उसकी जमीन पर एक अमेरिकी नागरिक की हत्या का प्रयास किया। और, उसने यह कोशिश तब की, जब पिछले दो दशकों में दोनों देशों के आपसी संबंध नई ऊंचाई पर हैं। अमेरिकी रक्षा नेतृत्व हैरान है कि भारत में किसी ने ऐसा करने का प्रयास उस वक्त किया, जब वाशिंगटन डीसी भारतीय प्रधानमंत्री के लिए लाल कालीन बिछा रहा था? इधर, अपने देश में राष्ट्रवादी, विशेषकर दक्षिणपंथी नाराज हैं, क्योंकि दुनिया एक बार फिर भारतीय सुरक्षा हितों की अनदेखी कर रही है और 1980 के दशक में पंजाब में जो हुआ, उससे मुंह मोड़ रही है। वे इसलिए भी खफा हैं, क्योंकि पश्चिमी मीडिया खालिस्तानी आतंकियों को निर्दोष आंदोलनकारी बता रहा है और भारत को सिर्फ इसलिए इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है, क्योंकि अब वह बड़ी ताकतों जैसा व्यवहार कर रहा है। 
कुछ लोगों द्वारा ही सही, पर ऐसी नाराजगी से भारत को विफलता हाथ लगी। कनाडा के रोष के कारण उस समस्या की अनदेखी हुई, जो उसके अपने समाज को खोखला कर रही है। फिर, उचित राजनीतिक बयान और अनुचित हिंसक कार्रवाइयों के बीच की रेखा धुंधली हुई, जिससे मित्र देश के हितों को खतरा पैदा हो गया और अब कूटनीतिक अतिरेक का प्रदर्शन हुआ है। अमेरिकी और भारतीय राष्ट्रवादियों की नाराजगी वाशिंगटन में प्रतिशोध व प्रतिबंध और दिल्ली में अवज्ञा व गुस्से के रूप में परिणत हुई; दोनों एक-दूसरे के इरादे पर संदेह करने लगे। हालांकि, सुखद यह है कि अमेरिकी और भारतीय सुरक्षा अधिकारियों ने इस नाराजगी को आपसी सहयोग से एक व्यवस्थित व विवेकपूर्ण जांच-प्रक्रिया में बदल दिया है। दोनों इस घटना पर एक जवाबदेही तय करना चाहते हैं, लेकिन साथ ही दूरदर्शी एजेंडे पर भी आगे बढ़ना चाहते हैं। भारत जहां अमेरिकी अधिकारियों को अपनी सुरक्षा चिंताओं से अवगत करा रहा है, तो वहीं अमेरिका अधिक सचेत राजनीतिक प्रबंधन व खुफिया एजेंसियों की जवाबदेही पर जोर दे रहा है। 
जाहिर है, कहानी अभी खत्म नहीं हुई है, लेकिन नाराजगी को थामने का वाशिंगटन-दिल्ली मॉडल एक राह जरूर दिखा सकता है। 

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