शिक्षा की मजबूत बुनियाद पर खड़ा होगा विकसित भारत
अगर हम आज यह लेख पढ़ पा रहे हैं, तो हमें अपनी स्कूली शिक्षा के शुरुआती पांच वर्षों का आभार मानना चाहिए। स्कूल के पहले दिन को याद करें- घबराहट, अनजाना माहौल, माता-पिता से आंसुओं के साथ विदा होना...
अगर हम आज यह लेख पढ़ पा रहे हैं, तो हमें अपनी स्कूली शिक्षा के शुरुआती पांच वर्षों का आभार मानना चाहिए। स्कूल के पहले दिन को याद करें- घबराहट, अनजाना माहौल, माता-पिता से आंसुओं के साथ विदा होना। साथ ही, एक नए दौर की प्रत्याशा। किसने सोचा था कि इन्हीं पांच वर्षों में जो हमने पढ़ना, लिखना और अंकगणित सीखा, उसी के कारण हमें सफलता मिलेगी।
बुनियादी शिक्षा का सशक्त होना सबसे जरूरी है। इसी दिशा में दूरदर्शी सुधार है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, जिसने साक्षरता व संख्यात्मकता को पूरी शिक्षा प्रणाली की नींव के रूप में स्थापित किया है। इस नीति के कारण निपुण भारत अभियान का जन्म हुआ, जिसका उद्देश्य 2027 तक हरेक बच्चे को तीसरी कक्षा से पहले निपुण बनाना है। इस अभियान ने राज्यों में शिक्षण से जुड़े लोगों को सशक्त बनाते हुए व्यवस्था में बदलाव के चार मुख्य सिद्धांतों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
पहला सिद्धांत है, पूरी व्यवस्था को एक स्पष्ट लक्ष्य की ओर ले जाना। उस लक्ष्य को पाने के लिए इस सिद्धांत की शुरुआत शिक्षण मूल्यांकन से होती है, ताकि यह समझा जा सके कि हमारे बच्चों की शिक्षा किस स्तर पर है। जुलाई 2021 में निपुण भारत मिशन के शुभारंभ के तुरंत बाद नवंबर 2021 में केंद्र सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण हुआ। बुनियादी शिक्षा की तात्कालिकता को देखते हुए मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने 2022 में राज्य स्तर पर एक शिक्षा सर्वेक्षण आयोजित किया, जिसमें प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों के वर्तमान शिक्षा स्तर का मूल्यांकन किया गया। सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर मध्य प्रदेश ने अपने निपुण लक्ष्य निर्धारित किए। इसी तरह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिशन प्रेरणा की शुरुआत की और निपुण उत्तर प्रदेश का समर्थन किया। इससे पूरी व्यवस्था को नई ऊर्जा मिली।
दूसरा सिद्धांत है शिक्षण पद्धतियों को बेहतर बनाना। इस लक्ष्य को पाने के लिए अध्यापकों के पेशेवर विकास पर ध्यान देना जरूरी है। ऐसे दिशा-निर्देशों की पालना हुई, जिनसे कक्षाओं को अधिक आनंदमय व आकर्षक बनाया जा सके। शिक्षकों को प्रभावी रूप से प्रशिक्षित करने के लिए संसाधनों, प्रशिक्षक पैकेजों और विशेषज्ञता के साथ मास्टर प्रशिक्षकों को सशक्त बनाना जरूरी है।
तेलंगाना की अगर बात करें, तो इस मॉडल के चलते सिर्फ एक वर्ष में शिक्षण प्रभावशीलता में उल्लेखनीय 67 प्रतिशत सुधार हुआ है। ऐसे शिक्षा-प्रौद्योगिकी समाधान बन सकते हैं, जो शिक्षकों को कम समय में अधिक हासिल करने में मदद कर सकते हैं। शिक्षकों का कीमती समय बचा सकते हैं। गौर कीजिए, राजस्थान में एआई ग्रेडिंग सॉफ्टवेयर ने ग्रेडिंग के समय को दो घंटे से घटाकर केवल 20 सेकंड कर दिया है।
तीसरा, नियमित रूप से मूल्यांकन का उपयोग करके छात्रों के सीखने के नतीजों में सुधार करना। मिसाल के लिए, उत्तर प्रदेश में निपुण लक्ष्य एप के माध्यम से 1,05,000 शिक्षकों को छात्रों के नियमित मूल्यांकन में मदद मिल रही है। अंतिम सिद्धांत है, छात्रों के माता-पिता और समुदायों को उनके बच्चों की शिक्षण यात्रा में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना। बच्चे अपना 80 प्रतिशत समय घर पर बिताते हैं। ग्राम सभा और अभिभावक-शिक्षक सभा जैसे मौजूदा प्लेटफॉर्मों का उपयोग करने के अलावा, माता-पिता के साथ द्विभाषी संचार, उनके प्रशिक्षण के लिए कार्यशालाएं, घर के दौरे और सहकर्मी सहायता जैसे उपायों के माध्यम से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। बिहार के कुछ जिलों में ग्राम सभाओं का लाभ उठाकर माता-पिता को उनके बच्चों की शिक्षा में मदद देने के तरीकों के बारे में मार्गदर्शन दिया गया है। इसके चलते अभिभावक-शिक्षक बैठक में माता-पिता की उपस्थिति में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति मेें 5-10 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
ध्यान रहे, हमारे पास सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा के इन चार लक्ष्यों को पूरा करने के लिए केवल छह वर्ष हैं। आज पूरा विश्व भारत को वैश्विक विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मान रहा है। हमें अपनी बुनियादी शिक्षा को उत्कृष्ट बनाना ही होगा, तभी हमारे बच्चे विकसित भारत के लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे।
(साथ में आशीष धवन)
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