Hindi Newsओपिनियन नजरियाHindustan nazariya column 25 January 2025

साहित्य और संस्कृति के अनूठे विद्वान विद्यानिवास मिश्र

  • उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 1926 में जन्मे पंडित विद्यानिवास मिश्र का जन्म-शताब्दी वर्ष शुरू हो चुका है। शताब्दियां आमतौर पर उन्हीं महापुरुषों को प्रासंगिक बनाने के लिए मनाई जाती हैं, जिन्होंने देश और समाज के लिए विशिष्ट योगदान दिया हो…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानFri, 24 Jan 2025 10:45 PM
share Share
Follow Us on
साहित्य और संस्कृति के अनूठे विद्वान विद्यानिवास मिश्र

अच्युतानंद मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व संपादक

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 1926 में जन्मे पंडित विद्यानिवास मिश्र का जन्म-शताब्दी वर्ष शुरू हो चुका है। शताब्दियां आमतौर पर उन्हीं महापुरुषों को प्रासंगिक बनाने के लिए मनाई जाती हैं, जिन्होंने देश और समाज के लिए विशिष्ट योगदान दिया हो। विद्यानिवास जी ऐसे ही महापुरुष थे, जिन्होंने पत्रकारिता, साहित्य, समाज, शिक्षा, इतिहास, कला- सभी में अविस्मरणीय योगदान किया।

वह एक ऐसी मुखर हस्ती थे, जिनकी शब्दावली तो साहित्यकार की थी, पर उनके साहित्य का लगभग 80 प्रतिशत लेखन ललित निबंध की शैली में हुआ है, जो साहित्यिक पत्रकारिता की एक शैली है। पंडित रामचंद्र शुक्ल, डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ कुबेरनाथ राय जैसे देश के कई साहित्यकारों ने इसी शैली में रचनाएं की हैं। राधा माधव रंग रंगी, मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, छितवन की छांह, बंजारा मन, तुम चंदन हम पानी जैसे उनके ललित निबंध संग्रह आज भी पढ़े जाते हैं। विद्यानिवास जी ने अपने दौर के कमोबेश सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक मनीषियों के साथ काम किया। राहुल सांकृत्यायन से लेकर अज्ञेय, पंडित सोहनलाल द्विवेदी, रामधारी सिंह दिनकर, अमृतलाल नागर जैसे कई नाम हैं, जिनसे उनका निकट संपर्क था। डॉ नर्मदा प्रसाद उपाध्याय की किताब रस-पुरुष पंडित विद्यानिवास मिश्र उनके कला पक्ष की मर्यादा और संवेदनशीलता का बखूबी बयान करती है।

विद्यानिवास जी ने लेखन की शुरुआत बृजभाषा की कविता से की थी। बाद में उन्होंने कुछ कहानियां भी लिखीं और फिर ललित निबंध लिखने का फैसला किया। उनके व्यक्तित्व का एक खास पहलू यह भी है कि उनके दिल में किसी के लिए कभी मलाल नहीं रहा। उस दौर में प्रगतिशील लेखक संघ व इप्टा जैसे संगठन साहित्य व कला की सभी विधाओं पर नियंत्रण करते थे। विद्यानिवास जी को तब परंपरावादी और संकीर्णतावादी जैसे शब्दों से उपेक्षित किया जाता था, पर उन्होंने किसी के प्रति कोई शिकायत नहीं की। इसी तरह का मेरा एक अनुभव है 1992 का। उस समय वह दिल्ली के एक अग्रणी अखबार में संपादक बनाए गए थे और मैं कानपुर में किसी अन्य अखबार में बतौर संपादक अपनी सेवा दे रहा था। तो, एक दिन उन्होंने मुझे भी बुला लिया। यहां मैंने देखा कि ट्रेड यूनियन उनसे वैचारिक मतभेद रखता है, पर विद्यानिवास जी स्पष्ट थे कि यूनियन के विरोध की कोई जरूरत नहीं, एक दिन ये लोग खुद सुधर जाएंगे।

अज्ञेय, धर्मवीर भारती जैसे अपने प्रिय रचनाकारों और गणेश शंकर विद्यार्थी व पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी जैसे वरिष्ठों के सहारे उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में बड़े-बड़े काम किए। उनकी पहुंच साहित्येत्तर क्षेत्रों और राजनीति में भी थी। वह डॉ राम मनोहर लोहिया के मित्र थे। लोहिया जी उनसे हर प्रसंग पर चर्चा करते थे। अटल बिहारी वाजपेयी का भी इसी तरह का साथ उन्हें मिला। जय प्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी भी उनके लिए आदरणीय थे। गांधी और उनके प्रयोग उनको प्रिय थे। उन्होंने बड़े-बड़े लोगों से बड़े-बड़े काम करवाए। ऐसा ही एक उदाहरण कलकत्ता के विद्वान लेखक पंडित कृष्ण बिहारी मिश्र से जुड़ा है। उन्होंने मुझे बताया था, एक बार विद्यानिवास जी उनके घर आए और दक्षिणेश्वर चलने को कहने लगे। यहीं पर रामकृष्ण परमहंस का मठ है। यहां पहुंचकर उन्होंने कृष्ण बिहारी मिश्र से कहा, मैं इसलिए आपको यहां लाया, क्योंकि आप काफी अच्छा ललित निबंध लिखते हैं। अब आप स्वामी रामकृष्ण परमंहस की ऐसी जीवनी तैयार कीजिए, जो तथ्यपूर्ण हो। कृष्ण बिहारी मिश्र ने कल्पतरु की उत्सव लीला नाम से यह जीवनी लिखी, जिस पर ज्ञानपीठ ने कलकत्ता जाकर उन्हें सम्मानित किया।

यहां गंगा तट से भूमध्यसागर तक (भारत और यूरोप की संस्कृतियों के मध्य संवाद) का जिक्र जरूरी है। इसकी भूमिका में लिखा गया है, ‘यहां जो ‘संवाद’ प्रस्तुत किया जा रहा हैै- उसमें स्पेन के विद्वान-लेखक कैटलन, वार्सिलोना के पोम्पेऊ फैब्रा विश्वविद्यालय के अध्यापक रॉफेल अरगुलॉइ तथा पंडित विद्यानिवास मिश्र के बीच सूक्ष्म गहन वैचारिक संवाद का रूप-स्वरूप प्रस्तुत है। प्रो अरगुलॉइ पश्चिम के मौलिक अवधारणाओं के संपन्न विचारक रहे हैं और पंडित विद्यानिवास मिश्र हमारी लंबी वैचारिक-परंपरा को गहराई से मथने-समझने वाले अद्भुत मनीषी साधक तपस्वी।’ आज उनके योगदान से नई पीढ़ी को परिचित कराना और जोड़ना जरूरी हो गया है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें