बलात्कार पर लड़कों के साथ बातचीत से आएगा बदलाव
- देश के सबसे विकसित और साक्षर राज्य केरल में पिछले दिनों एक 18 वर्षीय दलित एथलीट ने खुलासा किया कि 13 साल की उम्र में उसका पहली बार यौन शोषण किया गया और अब तक 64 पुरुष उसकी अस्मत से खिलवाड़ कर चुके हैं…
नमिता भंडारे, वरिष्ठ पत्रकार
देश के सबसे विकसित और साक्षर राज्य केरल में पिछले दिनों एक 18 वर्षीय दलित एथलीट ने खुलासा किया कि 13 साल की उम्र में उसका पहली बार यौन शोषण किया गया और अब तक 64 पुरुष उसकी अस्मत से खिलवाड़ कर चुके हैं। उसने अपने साथ पांच बार सामूहिक दुष्कर्म की भी बात कही। पुलिस ने मामला दर्ज करके कार्रवाई शुरू कर दी है और वह लड़की फिलहाल एक आश्रय-गृह में है। उम्मीद की जा सकती है कि उसे वहां जरूरी परामर्श व देखभाल मिल रही होगी।
उस लड़की का शोषण करने वाले पुरुष आखिर कौन हैैं? उनकी उम्र 17 से 47 साल के बीच है। वे सब उसके पड़ोसी, पिता के दोस्त या खेल प्रशिक्षक हैं। यह वारदात दक्षिण फ्रांस के एक अन्य भयावह अपराध की याद दिलाती है, जिसमें डोमिनिक पेलिकॉट नामक शख्स अपनी 40 वर्षीया पत्नी को करीब दस साल तक ड्रग्स देता रहा और बेहोशी की हालत में उसका बलात्कार करवाता रहा। 70 से अधिक पुरुषों ने उससे दुष्कर्म किया। कहा जाता है, सिर्फ तीन पुरुषों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, हालांकि उनमें से किसी ने इसकी सूचना पुलिस को नहीं दी। महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा की बीमारी, जिसमें यौन हिंसा शामिल है, किसी भौगोलिक सीमा, उम्र, शिक्षा के स्तर और आय से परे है। यह हमारे समय की सबसे खराब महामारियों में एक है कि दुनिया भर में हर तीन में से एक महिला किसी न किसी तरह यौन हिंसा का शिकार बनती है। भारत में हर दिन बलात्कार के 86 मामले दर्ज किए जाते हैैं।
जब बलात्कार की कोई घटना इतनी भयावह होती है कि वह ‘राष्ट्र की अंतरात्मा को झकझोर’ दे, तब हमारे माननीय तुरंत मरहम-पट्टी जैसे उपायों में जुट जाते हैं। चेन्नई की अन्ना यूनिवर्सिटी में 19 साल की एक छात्रा के साथ यौन-उत्पीड़न के बाद दबाव में आए मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पिछले हफ्ते दो ऐसे विधेयक पेश किए, जिनमें यौन अपराधों के लिए सजा बढ़ाने के प्रावधान हैं। पश्चिम बंगाल में भले ही वहां के हाईकोर्ट ने आरजी कर बलात्कार व हत्या मामले में दोषी को उम्र कैद की सजा सुना दी है, लेकिन राज्य सरकार ने जघन्य बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड को अनिवार्य बनाने वाला विधेयक सर्वसम्मति से पास कर दिया है। हालांकि, मृत्युदंड से भी यह अपराध कहां रुक सका है? दिल्ली में वर्ष 2012 के सामूहिक बलात्कार मामले के बाद संसद ने ऐसा ही कानून बनाया है। मगर कुछ हुआ है, तो सिर्फ अपराध के मामले बढ़े हैं। मसलन, साल 2012 में जहां बलात्कार के 24,923 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2022 में ये बढ़कर 31,516 हो गए।
जाहिर है, जब सख्त कानून से भी बात न बने, तो हमें उससे बेहतर समाधान का प्रयास करना चाहिए। यह प्रयास है क्या? हमें पुरुषों से बात करनी चाहिए। वे सभी लोग, जिनसे हम रोज मिलते हैं। सबसे जरूरी तो यह है कि हमें लड़कों से बात करनी चाहिए। यह कारगर हो सकता है। उत्तर प्रदेश में किशोरों के साथ एक गैर-सरकारी संस्थान ‘ब्रेकथ्रू’ द्वारा किए गए पायलट कार्यक्रम में पाया गया कि लड़कों से बात करने से उनकी सोच में सकारात्मक बदलाव आया। न केवल उन्होंने लड़कियों को अधिक सम्मान देना शुरू कर दिया, बल्कि वे घरेलू कामों में अपनी मां और बहनों की मदद भी करने लगे। साफ है, हमें ‘विषाक्त मर्दानगी’ की अवधारणा पर चिंतन करना चाहिए। अपने देश में बहुत से लड़के ऐसे हैैं, जो एक भयावह समझ के साथ विकसित हो रहे हैं। मर्दों को कमजोर नहीं दिखना चाहिए, उन्हें समूह में रहना चाहिए, लड़कियों से बदसलूकी की सोच उनके अंदर पनपती रहती है। लिहाजा, जब तक हम लड़कों से बात नहीं करेेंगे, कुछ भी नहीं बदलेगा। स्कूली पाठ्यक्रमों में, गैर-सरकारी व सरकारी संस्थाओं द्वारा इस बाबत कदम उठाने की जरूरत है।
यह एक कठिन चुनौती है, क्योंकि सोशल मीडियाके मंच भी इसी विषाक्त मर्दानगी से भरे पड़े हैं। ‘स्वयं’ की निर्देशक अमृता दासगुप्ता कहती हैं कि पुरुष हिंसक पैदा नहीं होते। यह समाज और सामाजीकरण की प्रक्रिया है, जो उनमें से कई को इस अपराध की ओर उन्मुख कर देती है। वाकई, हिंसा मुक्त दुनिया के लिए हमें पुरुषों व लड़कों के साथ मिलकर रूढ़िवादिता तोड़नी ही होगी। नए साल का यह भी एक संकल्प हो सकता है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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