भारतीय आईटी प्रतिभाओं की राह में रोड़े न रखे अमेरिका
- डोनाल्ड ट्रंप ने अब जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति का पद दूसरी बार संभाल लिया है, तो असंख्य भारतीय युवा अमेरिकी वीजा को लेकर संशय व अनिश्चय से घिरे हुए हैं। ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’(एमएजीए) के नारे का मुखर समर्थन करने वाले ट्रंप और उनके समर्थकों ने…
एस. श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकार
डोनाल्ड ट्रंप ने अब जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति का पद दूसरी बार संभाल लिया है, तो असंख्य भारतीय युवा अमेरिकी वीजा को लेकर संशय व अनिश्चय से घिरे हुए हैं। ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’(एमएजीए) के नारे का मुखर समर्थन करने वाले ट्रंप और उनके समर्थकों ने अप्रवासियों को दुश्मन नंबर एक माना था और चुनाव प्रचार के दौरान वे उन पर निशाना साधते रहे थे। हालांकि, वैध और अवैध अप्रवासियों के बीच फर्क करना चाहिए।
अमेरिका में नई सरकार की नीतियों को लेकर विशेष रूप से बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नई में चिंता देखी जा रही है। सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में देश के ये क्रमश: तीन शीर्ष शहर हैं। भारत में आईटी और बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट में तीन शहरों का दबदबा है। वर्ष 2023 में जारी आंकड़ों के अनुसार, आईटी निर्यात भारत की जीडीपी का लगभग आठ प्रतिशत है और 250 अरब डॉलर से अधिक का राजस्व पैदा करता है। इनमें से आईटी सेवाओं की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत है। दक्षिण भारत के इन तीनों शहरों में कम से कम 30 लाख लोग आईटी उद्योगों में कार्यरत हैं। कई अन्य लोग भी विदेश में काम कर रहे हैं, जिनमें से कुछ एच1बी वीजा पर हैं। अमेरिका द्वारा जारी किए गए एच1बी या कार्य वीजा में से 70 प्रतिशत हिस्सा भारत का है। चीन की हिस्सेदारी सिर्फ 12 फीसदी है, इसलिए जब एच1बी वीजा पर किसी प्रतिबंध की बात आती है, तो भारतीय ज्यादा चिंतित हो जाते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में भारत की शीर्ष आईटी कंपनियों जैसे टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो ने एच1बी वीजा पर अपनी निर्भरता कम करना शुरू कर दिया है। इन कंपनियों द्वारा वीजा की जरूरत में 24 प्रतिशत से 30 प्रतिशत की कमी आई है, क्योंकि उन्होंने अपने कर्मचारियों को ‘ऑफ-शोरिंग’ के बजाय ‘नियर-शोरिंग’ करना शुरू कर दिया है। दिलचस्प बात यह है, अमेजन जैसी कई अमेरिकी कंपनियां भारतीय पेशेवरों के लिए अधिक एच1बी वीजा की मांग कर रही हैं। एच1बी वीजा आम तौर पर भारतीयों के बीच लोकप्रिय रहा है, क्योंकि इससे ज्यादा वेतन मिलता है। साथ ही, यह अमेरिका में ‘ग्रीन कार्ड’ और स्थायी निवास पाने की राह बनाता है। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को लुभाने के लिए अमेरिका ने इसे तैयार किया था और यह एक शानदार सफलता रही है।
अमेरिका में करीब 15 लाख भारतीय अप्रवासी काम करते हैं। कई लोग एफ-1 या शिक्षा वीजा से अमेरिका पहुंचते हैं। ऐसे तीन लाख छात्र हैं और उनमें से अधिकांश आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु से आते हैं।
चेन्नई में कई छात्र, जो जनवरी में छुट्टियों पर भारत आए थे, उन्हें उनके संबंधित संस्थानों ने 20 जनवरी से पहले वापस लौटने की सलाह दी थी। कई छात्र, जो एफ-1 वीजा खत्म होने के बाद ओपीटी वीजा पर वहां रुके हैं, वे भी चिंतित हैं कि इसे आगे बढ़ाया जाएगा या नहीं? एक छात्र ओपीटी वीजा पर तीन साल तक रह सकता है, जिसके बाद ग्रीनकार्ड का रास्ता खुल जाता है। वर्ष 2023 में भारतीयों को जारी किए गए ओपीटी वीजा में पिछले वर्ष की तुलना में 41 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। अमेरिका में 12 लाख तेलुगुभाषी आबादी हैं। भारत के आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से ही सबसे अधिक संख्या में छात्र अमेरिका जाते हैं। ‘तेलुगु एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ इंडिया’ के मुताबिक, हर साल साठ से सत्तर हजार छात्र तेलुगु राज्यों से अमेरिका पहुंचते हैं। करीब दस हजार को एच1बी वीजा मिलता है और उनमें से 80 प्रतिशत आईटी क्षेत्र में कार्यरत हैं। एक अनुमान के मुताबिक, करीब दस लाख भारतीय एच1बी वीजा के लाभार्थी हैं। असली चिंता कम से कम 7.25 लाख अन्य लोगों को लेकर है, जिन्हें अवैध प्रवासी माना जाता है। इनमें से कम से कम 17,000 ने सभी कानूनी विकल्पों का उपयोग कर लिया है और उन्हें भारत वापस भेजा जा सकता है। ऐसा हुआ, तो बड़ी शर्मिंदगी होगी।
वैसे, भारत वीजा संकट में अवसर देखे, तो फायदे में रह सकता है। देश अपने उद्योगों को समृद्ध करने के लिए अपने योग्यतम इंजीनियरों, डॉक्टरों व वैज्ञानिकों को वापस ला सकता है। भारत को अपनी विशाल आबादी का लाभ उठाने के लिए योग्यतम पेशेवरों की जरूरत पड़ेगी ही। वैसे भी, भारत के पास अपनी युवा आबादी का लाभ उठाने के लिए कुछ ही दशक शेष हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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