विदेश में बैठे भारत विरोधी तत्वों पर गौर करे अमेरिका
- सिख फॉर जस्टिस का संस्थापक और भारत द्वारा घोषित आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई द्वारा भारत के पूर्व खुफिया अधिकारी विकास यादव को आरोपित करने का ताजा घटनाक्रम क्या भारत को…
सिख फॉर जस्टिस का संस्थापक और भारत द्वारा घोषित आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई द्वारा भारत के पूर्व खुफिया अधिकारी विकास यादव को आरोपित करने का ताजा घटनाक्रम क्या भारत को कूटनीतिक तौर पर घेरने की कोशिश है? नई दिल्ली ने उचित ही इसमें अपनी संलिप्तता से इनकार किया है, क्योंकि किसी दूसरे देश के आंतरिक मामले में दखल देने की हमारी कोई नीति नहीं रही है। हम यही मानते हैं कि अमेरिकी अदालत इस मामले में उचित फैसला करेगी। मगर सवाल इसलिए उठने लगे हैं, क्योंकि इसी पन्नू के केस में पिछले दिनों हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के खिलाफ एक अमेरिकी अदालत ने समन जारी किया था। उसने अपनी हत्या की साजिश को लेकर न्यूयॉर्क की अदालत में याचिका लगाई थी, जिसके बाद अदालत ने डोभाल सहित कई लोगों को समन जारी किया था। बाद में, भारत की एक उच्चस्तरीय टीम अमेरिका गई थी, जिसने निश्चय ही वहां के अधिकारियों से बात की होगी। इस बैठक के नतीजे तो सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, लेकिन असलियत यही है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे की चिंताओं को समझ रहे होंगे। अच्छी बात यह है कि भारत और अमेरिका की सरकारें एक-दूसरे के संपर्क में हैं और वे यह नहीं चाहतीं कि आपसी रिश्ते पर ऐसी किसी घटना का असर पड़े।
बहरहाल, इस मामले ने करीब एक दशक पुराने देवयानी खोबरागडे़ विवाद की याद ताजा कर दी है। देवयानी तब न्यूयॉर्क में भारतीय उप-महावाणिज्य दूत थीं। उन पर अपनी घरेलू सहायिका के वीजा आवेदन में गलत तथ्य देने के आरोप लगाए गए थे। भारत ने इस पर सख्त ऐतराज जताया था। कहा तो यह भी जाता है कि तब भारत के कड़े रुख को देखकर अमेरिकी अधिकारी हैरान थे। बाद में अपनी खामियों पर गौर करने के लिए अमेरिकी सुरक्षा मंत्रालय, विदेश और न्याय विभाग आदि ने समीक्षा बैठकें की थीं। भारत वास्तव में कार्रवाई करने के अमेरिकी तरीके को लेकर नाराज था और अमेरिका भी द्विपक्षीय रिश्ते में किसी तरह का तनाव नहीं चाहता था। नतीजतन, देवयानी वापस भारत बुला ली गईं। आज भी दोनों देश शायद ही आपसी रिश्ते में किसी तरह की तनातनी के पक्ष में होंगे।
पन्नू की हरकत किसी से छिपी नहीं है। उसके पास भले ही अमेरिका और कनाडा की दोहरी नागरिकता है, लेकिन वह भारत में एक वांछित अपराधी है। वह खालिस्तानी भावना भड़काकर भारत-विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहा है। अमेरिका इन सबसे अनजान नहीं होगा, लेकिन चूंकि उसकी जमीन पर इसने कोई अपराध नहीं किया है, इसलिए पन्नू अब भी वहां सलाखों से बाहर है। देखा जाए, तो भारत के खिलाफ अलगाववादी सोच रखने वाले ऐसे अपराधी इसी अमेरिकी नीति का फायदा उठाते हैं। वे भारत की बढ़ती साख को पसंद नहीं करते। मगर हमें उम्मीद है कि अमेरिकी अधिकारी ऐसे तत्वों पर कार्रवाई करेंगे। अभी कनाडा ने भी अपने यहां एक खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर के हत्या में कथित तौर पर भारत की संलिप्तता का दावा किया है, जिस कारण उसके साथ हमारे रिश्तों में खटास आई है। पन्नू ने भी इस मौत का बदला लने की धमकी दे रखी है। अमेरिका इन सबसे वाकिफ होगा और वह जरूर प्रयास करेगा कि ऐसे मसलों का जल्द निपटारा हो जाए।
वैसे, आदर्श व्यवस्था यही है कि कोई देश किसी भी रूप में आतंकी या असामाजिक तत्वों को अपने यहां जगह न दे। इसके लिए प्रत्यर्पण संधि का इस्तेमाल किया जाता है। भारत ने कई देशों के साथ ऐसे समझौते कर रखे हैं। मगर इस संधि के तहत अपराधी को स्वदेश लाना काफी कठिन प्रक्रिया होती है। इसमें पहले पूरे सुबूत के साथ संबंधित देश के पास आवेदन भेजना होता है, जिसे स्वीकारने या खारिज करने को लेकर वह स्वतंत्र होता है। मगर पन्नू मामले में हमारी मुश्किल यह है कि वह भारत का नहीं, बल्कि अमेरिका और कनाडा का नागरिक है। लिहाजा यह मामला पूरी संवेदनशीलता की मांग करता है। हम तो उम्मीद यही करेंगे कि अमेरिका हमारी सुरक्षा चिंताओं पर गौर करेगा और इस मामले का उचित निपटारा करेगा। ऐसे किसी मामले में भारत की छवि पर दाग लगने के आरोप भी सही नहीं हैं। यह विशुद्ध रूप से एक कानूनी मसला है और अमेरिकी कानून अपने हिसाब से इसका समाधान निकालेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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