घने कोहरे और जहरीली धुंध का कैसे किया जाए इलाज
- बुधवार को कमोबेश पूरे दिन उत्तर भारत कोहरे की गिरफ्त में रहा। सुबह के वक्त दिल्ली-एनसीआर के कई इलाकों में दृश्यता शून्य के करीब थी, जिसका खासा असर रेल और हवाई सेवाओं पर पड़ा। दिल्ली आने वाली 25 से अधिक ट्रेनों…
विवेक चट्टोपाध्याय, प्रिंसिपल प्रोग्राम मैनेजर, सीएसई
बुधवार को कमोबेश पूरे दिन उत्तर भारत कोहरे की गिरफ्त में रहा। सुबह के वक्त दिल्ली-एनसीआर के कई इलाकों में दृश्यता शून्य के करीब थी, जिसका खासा असर रेल और हवाई सेवाओं पर पड़ा। दिल्ली आने वाली 25 से अधिक ट्रेनों व 184 से ज्यादा विमानों पर इस कोहरे की मार पड़ी और उनके परिचालन में देरी देखी गई। इन दिनों सूरज की किरणें नीचे तक नहीं आ रहीं और मौसम भी शीतलहर का है, इसलिए ‘स्मॉग’ बन रहा है। लग रहा है कि जमीन के बिल्कुल करीब बादल तैर रहे हैं। कई वजहों से यह स्थिति सुखद नहीं कही जाएगी।
मौसम का यह मिजाज इसलिए है, क्योंकि कुहासा और प्रदूषण का संयोग बन गया है। वैज्ञानिक शब्दावली में इसे ही ‘स्मॉग’ कहते हैं। आमतौर पर शहरी इलाकों में अब स्मॉग ही दिखता है, ग्रामीण भारत में ‘फॉग’ देखे जा सकते हैं। दरअसल, होता यह है कि फॉग किसी भी पार्टिकुलेट मैटर (पीएम, यानी अतिसूक्ष्म कणों) पर चिपक जाता है और हवा में नमी अधिक होने के कारण वह जमीन के आसपास ठहरने लगता है। चूंकि मौसम में गर्माहट नहीं होती, इसलिए नीचे की ठंडी हवा भी गर्म होकर ऊपर नहीं उठ पाती और प्रदूषण गहराने लगता है। दिक्कत यह है कि हम शहरी प्रदूषण की मूल वजहों पर बात ही नहीं करना चाहते और किसानों के पराली जलाने पर सारी जिम्मेदारी डाल देते हैं, जबकि शहरों का आंतरिक प्रदूषण स्मॉग के लिए मूलत: जिम्मेदार है। आंकड़े बताते हैं, साल 1996 में दिल्ली में 25 लाख गाड़ियां सड़कों पर दौड़ती थीं, जिनकी संख्या 2023 तक बढ़कर 1.2 करोड़ हो गई। दिल्ली में कोहरे की आवृत्ति दर बढ़ गई है और अध्ययन बताते हैं कि 1989 से 2005 के दरम्यान यहां शीतलहर के दौरान अधिकतम तापमान में औसतन दो से तीन डिग्री सेल्सियस की गिरावट आई है, जबकि इसी अविध में कोहरे के घंटों में रोजाना औसतन आठ घंटे की वृद्धि हुई।
देश का आर्थिक विकास इस मौसम से खासा प्रभावित होता है और मानव स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। विशेष रूप से बच्चे और बुजुर्ग इस समय ज्यादा परेशान होते हैं। लिहाजा, सांस संबंधी रोगों के मरीजों और दिल के रोगियों को इन दिनों अपनी सेहत संभालनी पड़ेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यदि वायु गुणवत्ता सूचकांक 100 से ऊपर है, तो हमारा स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो सकता है, जबकि बुधवार को ही दिल्ली में एक्यूआई 200 के ऊपर बना हुआ था। इससे समझा जा सकता है कि हमें किस कदर की सावधानी बरतनी होगी। अच्छा तो यही होगा कि हम जरूरत पड़ने पर ही बाहर निकलें। स्कूलों ने तो ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर दी हैं, दफ्तरों को भी इन दिनों ‘वर्क फ्रॉम होम’ की व्यवस्था करनी चाहिए। फिर भी घर से बाहर निकलने की अनिवार्यता है, तो हमें एन95 मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए। यातायात के लिहाज से गाड़ियों को फॉग लाइट लगानी चाहिए, क्योंकि ऐसे मौसम हादसों को जन्म देते हैं। राजमार्गों पर ऐसी चेतावनी प्रणाली लगानी चाहिए, जो लोगों को घने कोहरे में सुरक्षित यात्रा की जानकारी दे।
वास्तव में, हम फॉग से नहीं निपट सकते, लेकिन स्मॉग से पार पा सकते हैं। हमारे पास अब ऐसे कई साधन उपलब्ध हैं, जिनसे अगले पांच या दस दिनों के मौसम का हम पूर्वानुमान लगा सकते हैैं, लेकिन जमीनी स्तर पर प्रदूषण कम करने के लिए किस तरह के उपाय अपनाए जाने चाहिए, इसको लेकर हम उदासीनता बरतते हैं। दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और विडंबना देखिए कि किसी भी दल ने प्रदूषण को मुद्दा नहीं बनाया है, जबकि यही प्रदूषण स्मॉग के रूप में पूरी दिल्ली में पसरा हुआ है। कहने के लिए सरकारें ग्रैप लगा देती हैं, लेकिन जिस तरह की सख्ती की दरकार है, वह नहीं दिखातीं। प्रदूषण को लेकर हमें ऐसी योजना बनानी चाहिए, जो पूरे साल अमल में लाई जाए। स्वच्छ भारत अभियान की तरह ही हमें किसी स्वच्छ वायु अभियान की जरूरत है। वैसे भी, जब बीजिंग अपने यहां प्रदूषण को कम कर सकता है, तो हम क्यों नहीं ऐसा कर सकते? उम्मीद यही है कि भारतीय मौसम विभाग के 150वें स्थापना दिवस पर जारी ‘मौसम विभाग विजन 2047’ और ‘मिशन मौसम’ का शुभारंभ जलवायु के संदर्भ में एक स्मार्ट राष्ट्र बनाने का आधार बनेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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