एक बेचारे दिल को कितने काम लिखूं
जिस देश की एक महान आत्मा ने कभी सत्य के साथ प्रयोग किए हों, उसी मुल्क के फिल्मी शायर-गीतकार दिल को प्रयोगशाला बनाए हुए हैं। ताजा निष्कर्ष यह है कि दिल उल्लू का पट्ठा है, वहां तक गनीमत, पर संगमरमर का...
जिस देश की एक महान आत्मा ने कभी सत्य के साथ प्रयोग किए हों, उसी मुल्क के फिल्मी शायर-गीतकार दिल को प्रयोगशाला बनाए हुए हैं। ताजा निष्कर्ष यह है कि दिल उल्लू का पट्ठा है, वहां तक गनीमत, पर संगमरमर का ख्याल आते ही यह भाई लोगों को अकबर का पोता नजर आता है। जिस नायक ने परदे यह फीलिंग्स उजागर की, उन्हीं महानुभाव ने कभी उसे बदतमीज करार कर माने न... माने न... कह बेकहा बताया था। वक्त-वक्त की बात है। इनके पूज्य दादाजी ने कभी इसकी महत्ता पर ढपली की थाप पर संदेश दिया था- दिल का हाल सुने दिलवाला।
फिल्म की गति और कथा बढ़ाने में दिल की भूमिका हमेशा अहम रही। दिल का ‘खिलौना’ टूटने पर नायक-नायिका फरियादी भाव में विलाप करते रहे- मेरे टूटे हुए दिल से कोई तो आज यह पूछे कि तेरा हाल क्या है? भटकने वाली मन:स्थिति में इससे ही पूछना पड़ता है- जाऊं कहां बता ए दिल, दुनिया बड़ी है मुश्किल। कभी तड़प-तड़प के कहता है आ भी जा, तो कभी दिल क्या करे, जब किसी को किसी से प्यार हो जाए। एक तरफ दिल अपना प्रीत पराई, तो दूसरी ओर दिल दिया दर्द लिया।
फ्रस्ट्रेटेड नायकों से इतर देव साहब का अंदाज अलग। उनकी तमन्ना कि गाता रहे उनका दिल। कभी दिल दीवाना होता है। कभी पागल होता है। लेकिन ये कोरा कागज हुआ नहीं कि टेढ़ी-मेढ़ी इबारतें उतरनी शुरू हो जाती हैं। संवेदनाओं का ट्रैफिक जाम। गुलजार साहब ने दिल को सिर्फ बच्चा ही नहीं बताया, उनका शालीन दिल फुर्सत के रात-दिन ढूंढ़ता नजर आया।
दिमाग भले ही तनाव में रहा हो, सारे शिकवे-शिकायत दिल से ही होते हैं। महानगर में जहां आज जीना और मुश्किल हो गया है, अरसा हुआ जॉनी वाकर साहब ने इसी बाबत दिल से फरियाद की थी। लब्बोलुआब यह है कि एक दिल और सौ अफसाने तभी उससे हमदर्दी जताते, जब चौबीस कैरेट वाला शायर लिखता है ख्वाब भी पाले, याद करे और धड़के भी/ इस बेचारे दिल को कितने काम लिखूं।
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