रूस-यूक्रेन विवाद और पान का खोखा
कल दफ्तर जाते समय पान के खोखे पर रुका, तो वहां रूस-यूक्रेन विवाद पर बहस सुनकर दंग रह गया। दंग इसलिए रह गया, क्योंकि जो लोग बहस कर रहे थे, उन्हें न कुछ जानकारी रूसी इतिहास की थी, और न यूक्रेन के बारे...
कल दफ्तर जाते समय पान के खोखे पर रुका, तो वहां रूस-यूक्रेन विवाद पर बहस सुनकर दंग रह गया। दंग इसलिए रह गया, क्योंकि जो लोग बहस कर रहे थे, उन्हें न कुछ जानकारी रूसी इतिहास की थी, और न यूक्रेन के बारे में। न कभी वे वहां गए, न वहां उनका कोई रिश्तेदार रहता है। मगर बहस कर रहे थे। चर्चा के बीच बुल्डोजर भी आ जाता था। एक सज्जन तो सिर्फ बुल्डोजर के सहयोग से इस विवाद का निपटारा करने पर डटे हुए थे।
खैर, बहस का ऊंट बाद में किस करवट बैठा, पता नहीं, मैं पान लेकर दफ्तर की ओर निकल लिया। हम भारतीय हर मसले पर बहस करके अपना जी बहला सकते हैं। मसले की जानकारी कितनी है, कितनी नहीं, यह चिंता की बात नहीं, फोकस सिर्फ बहस पर रहता है, चाहे वह किसी भी दिशा में मुड़ जाए। यही वजह है कि भारतीय समाज में विवाद और बहस के मसले कभी खत्म नहीं होते। मेरे विचार में रूस-यूक्रेन विवाद का हल न अमेरिका निकाल सकता है, न चीन, और न भारत। यह मसला सिर्फ और सिर्फ पान या चाय के खोखे पर जुटने वाले लोग ही हल कर सकते हैं। हल न भी कर पाए, तो वे इन दोनों देशों को यह सलाह दे ही सकते हैं कि नाक इधर से नहीं, उधर से पकड़ो। भारत सरकार को ऐसे महान लोगों को उन-उन देशों में अवश्य भेजना चाहिए, जहां-जहां इस किस्म के विवाद चल रहे हैं।
पता है, हमारी सरकार पाकिस्तान के साथ विवाद सिर्फ इसीलिए नहीं सुलटा पा रही, क्योंकि उसने इन लोगों को वहां भेजकर मसला हल करने के बारे में कभी सोचा ही नहीं। अगर सोचा होता, तो ये विवाद जाने कब का निपट लिया होता। एक राज की बात बताऊं, किसी भी मुद्दे पर ज्ञान पाने के लिए मैं कभी किसी किताब या विद्वान का सहारा नहीं लेता। उस मुद्दे को पान या चाय के खोखे पर जाकर ही ‘डिस्कस’ करता हूं और मुद्दा झट से समझ आ जाता है।
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