इतिहासकार बनने को जज्बात ही काफी
भारतीयों का इतिहास-प्रेम दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। यह पे्रम उस किशोरवय लड़के के प्रेम जैसा है, जो अमूमन लफंगा है, पर फिलहाल अपनी लफंगई का कारण प्रेम को बता रहा है। उसका दावा है कि उसके स्कूल या...
भारतीयों का इतिहास-प्रेम दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। यह पे्रम उस किशोरवय लड़के के प्रेम जैसा है, जो अमूमन लफंगा है, पर फिलहाल अपनी लफंगई का कारण प्रेम को बता रहा है। उसका दावा है कि उसके स्कूल या कॉलेज न जाने के पीछे उसकी विरह-व्यथा है। पढ़ाई में उसका दिल पहले भी नहीं लगता था, और उसका दिन गुटका मुंह में दबाए चौराहे की पान की दुकान पर गुजरता था, पर अब उसका दावा है कि अगर उस किशोरी से प्रेम न हुआ होता, तो वह जिले में न सही, क्लास में टॉप करता।
भारतीयों का इतिहास से प्रेम भी उसी स्तर का है। अगर उन्हें इतिहास से प्रेम न हुआ होता, तो यह विश्वास किया जा सकता है कि वे किसी अन्य मुद्दे पर उतनी ही ठस बुद्धि के सहारे ज्ञान बघारते नजर आते, और उतने ही अतार्किक ढंग से किसी को महानायक, तो किसी को महाखलनायक साबित करते दिखते। जैसे किसी किशोरी से प्रेम करने के लिए उसे जानना-समझना जरूरी नहीं है, वैसे ही इतिहास से प्रेम करने के लिए उसे समझना जरूरी नहीं, जज्बात ही काफी हैं। सामने वाला आपसे प्रेम करे, इसके लिए उसे समझना, उसका सम्मान करना जरूरी है, वैसे ही, इतिहास भी आपके सामने खुले, अपने रहस्य आपको बताए, इसके लिए आपको इतिहास पढ़ना पड़ता है, उसे समझने का अनुशासन जानना होता है, वरना वह प्रेम चौराहे वाली पान की दुकान तक ही रह जाता है।
एक फर्क जानना जरूरी है। इस इतिहास-प्रेम का एक फायदा है, जो उसके प्रेमी को नहीं, बल्कि उन नेताओं को मिलता है, जो जनता को मौजूदा समस्याओं से भटकाकर अतीत की गलियों में चक्कर लगवाते रहते हैं। उन्हें ऐसे वाट्सएप गुरुओं की भी मदद मिलती है, जो पूरे आत्मविश्वास से बताते हैं कि अमुक सन की उस बैठक में नेहरू ने गांधी से कहा... वगैरह-वगैरह, जैसे वे खुद अस्सी साल पहले की उस बैठक के चश्मदीद गवाह थे। फिर भी, किशोरवय का प्रेम कुछ मानवीय तो बनाता है, इसलिए इस इतिहास-प्रेम से बहुत बेहतर है।
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