मेटावर्स में रंग, रम और हुड़दंग
कुछ राज्यों में चुनावी हड़बोंग के चलते इस बार रंगोत्सव को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है। सर्द-गरम से इतर पूरा मुल्क कमोबेश या तो वोट-वोट खेल रहा है या इधर-उधर ताक-झांक कर रहा है। यह तय है कि फेसबुक के...
कुछ राज्यों में चुनावी हड़बोंग के चलते इस बार रंगोत्सव को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है। सर्द-गरम से इतर पूरा मुल्क कमोबेश या तो वोट-वोट खेल रहा है या इधर-उधर ताक-झांक कर रहा है। यह तय है कि फेसबुक के ताजातरीन अवतार ‘मेटावर्स’ का आभासी संसार जब तक आकार ग्रहण करेगा, तब तक होली पारंपरिक ढंग से ही मनाई जाएगी। टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट बताते हैं कि मेटावर्स के आगमन के बाद ये पुराने-धुराने पर्व शायद ही मनाए जाएं। तब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से सुसज्जित नए-नए खेल ईजाद होंगे, जिनमें होली के लिए सिर्फ रंग, रम, भांग और मसखरी नहीं होगी, बहुत कुछ कल्पनातीत भी रहेगा। इनमें पारंपरिक हुड़दंग भले न हो, सर्वथा मौलिक और विज्ञान सम्मत बेढंगापन फिर भी रहेगा।
मेटावर्स जब आएगा, तब आ ही जाएगा। फिलहाल, इसके नमूदार होने की चर्चा गली-गली चलेगी। विचारक पूछ रहे हैं कि क्या इस नई दुनिया में मुद्दे वही पुराने ही रहेंगे? वहां भी लोग एक-दूसरे की निजता में सेंध लगाया करेंगे? क्या मजनूं को कालजयी प्रेमी बनने के लिए लैला-लैला पुकारना होगा? क्या वहां पर भी सरकारी कारिंदों से काम निकलवाने के लिए मेज के नीचे से गुलाबी नोट सरकाने पड़ेंगे या वहां आंखों ही आंखों में किए गए वर्चुअल इशारों से क्रिप्टो करेंसी ‘दी और ली’ मान ली जाएगी?
मेटावर्स आएगा, तो चुनावी चकल्लस से निजात मिलेगी। कंप्यूटर का डाटा-बेस बता देगा कि किस व्यक्ति का सॉफ्टवेयर नेता बनने लायक है और किसके डीएनए को यही नहीं पता कि सर्वमान्य लोकप्रियता की न्यूनतम योग्यता बहुमत के वोट नहीं, स्पाइवेयर जनित अधिकतम खोट होती है। मेटावर्स आएगा, तो तमाम रंग गीगा-बाइट के गुणक में बदल जाएंगे। विद्वानों का अभिमत है कि चाहे जैसी हाइटेक दुनिया बन जाए, पर सम्यक छीना-झपटी हुए बिना हमारे लोकतंत्र की जड़ें शायद ही मजबूत रह पाएं।
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