चुनाव में सही टाइमिंग का इंतजार
कई लोगों के काम करने की टाइमिंग एकदम परफेक्ट होती है। मेरे एक मित्र की परीक्षाओं में नकल करने की टाइमिंग जबरदस्त थी। जैसे ही एग्जाम ड्यूटी दे रहे टीचर उनके पास से होकर थोड़ा आगे निकलते, वह ताका-झांकी...
कई लोगों के काम करने की टाइमिंग एकदम परफेक्ट होती है। मेरे एक मित्र की परीक्षाओं में नकल करने की टाइमिंग जबरदस्त थी। जैसे ही एग्जाम ड्यूटी दे रहे टीचर उनके पास से होकर थोड़ा आगे निकलते, वह ताका-झांकी के पावन-पुनीत कार्य में जुट जाते, और निरीक्षक रूपी चलायमान सीसीटीवी की निगरानी में दोबारा आने से पहले अपनी उत्तर पुस्तिका में ऐसे खो जाते, जैसे कोई महायोगी दीन-दुनिया से विरत न जाने कब से अपनी तपस्या में लीन हो!
वैसे देखा जाए, तो सही टाइमिंग के बिना खिलाड़ी हो या कॉमेडियन, सिंगर-डांसर हो या बिजनेस इन्वेस्टर, किसी का भी काम नहीं चलता। राजनेताओं का तो बिल्कुल भी नहीं! जैसे बैट्समेन की बॉल को हिट करने की टाइमिंग सही न हो, तो सिक्सर नहीं लगता, वैसे ही चुनावी मौसम में उठाए जाने वाले मुद्दों की टाइमिंग गलत हो जाए, तो राजनीतिक वनवास मिलना तय समझिए। यह सब तो ठीक है, लेकिन लोग-बाग न जाने क्यों सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग आदि संस्थाओं द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की टाइमिंग को भी शक भरी निगाह से देखते हैं!
कहते हैं, अलादीन का चिराग इस बार भी नेताओं के हाथ लग गया है! नेताजी के सही टाइम पर इसे रगड़ते ही, इसमें छिपा जिन्न उनकी फरमाइश पर पाकिस्तान-जिन्ना, हिजाब, लव जेहाद से लेकर गांधी-गोडसे तक किसी भी मुद्दे को पलक झपकते पेश कर देता है। जानकारों की मानें, तो चुनावी रण में जीत हासिल करने के लिए आइटम मुद्दे उठाना नेताओं की प्रोफेशनल मजबूरी है। स्वास्थ्य, शिक्षा, बेरोजगारी, भूख, गरीबी, विकास जैसे घिसे-पिटे मुद्दों के बूते चुनावी फिल्म की लागत भी न निकल पाए!
बहरहाल, सर्दी सही वक्त पर दबे पांव रुखसत हो रही है। लगता है, मौसम ने धूप का झीना-सा हिजाब पहन लिया है। जहां तक चुनावी सूरमाओं की बात है, तो बकौल शायर, खुला मिला कोई चेहरा, कोई ढका मिला/ सभी की जात पे, हम को मगर हिजाब मिला।
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