जो किसी के काम न आ सके डॉक्टर
चाय की दुकान पर पन्ने-पन्ने में बंटकर अखबार आखिरी ग्राहक तक पहुंच चुका था। बेरोजगार ग्राहकों के लिए सिंगल बटा दो चाय साझा करते हुए अपने सामान्य ज्ञान की धार चढ़ाने का सबसे सुलभ तरीका यही था। खबरें...
चाय की दुकान पर पन्ने-पन्ने में बंटकर अखबार आखिरी ग्राहक तक पहुंच चुका था। बेरोजगार ग्राहकों के लिए सिंगल बटा दो चाय साझा करते हुए अपने सामान्य ज्ञान की धार चढ़ाने का सबसे सुलभ तरीका यही था। खबरें पढ़ने के बाद उन पर होने वाली चर्चा में ई-रिक्शा और ऑटो चालक भी शामिल हो जाते। इन पढ़े-लिखे बेकारों से चर्चा करके रिक्शे वालों को लगता, मानो वे भी हत्या-बलात्कार की खबर के स्तर से ऊपर उठ लिए हैं।
रूस-यूक्रेन लड़ाई की खबरों से सबके सामान्य ज्ञान के टोकरे लबालब भर चुके थे, शायद इसीलिए एक बेरोजगार ने अखबार के पन्ने साथी से बदलते हुए कहा, ‘लो जी, डीयू ने 800 से भी ज्यादा डॉक्टरेट की उपाधियां इस साल बांट डालीं।’ युवा रिक्शा चालक ने पूछा, ‘भैया, जब इत्ते डॉक्टर सिर्फ दिल्ली में तैयार हो जाते हैं, तो इन हजारों छात्रों को यूक्रेन जाकर डॉक्टरी पढ़ने की क्या पड़ी थी? नाहक ही लड़ाई में फंस पडे़ हैं बेचारे!’ पढे़-लिखों को ज्ञान छांटने का अच्छा मौका मिला। एक पढ़ा-लिखा हंसते हुए बोला, ‘अरे, ये वो वाले डॉक्टर नहीं हैं, जो हारी-बीमारी में काम आएं। ये तो नए-नए अनुसंधान करके डॉक्टर की उपाधि पाते हैं।’
सवाल उठा, ‘अनुसंधान माने? कोई नई दवा या इलाज खोजते हैं क्या?’ हंसी के साथ उत्तर मिला, ‘यार, अब तू यह पूछेगा कि इन्होंने कितने नए पेटेंट रजिस्टर कराए?’ सवाल पूछने वाले ने खीझकर कहा, ‘भाई, जो न कोई नया आविष्कार करे, न किसी कठिन बीमारी का इलाज निकाले, ऐसे डॉक्टर बनाए किसलिए जाते हैं?’ कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद एक युवा बोला, ‘शायद इसलिए कि किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाकर अपने जैसे और डॉक्टर पैदा कर सकें।’ पूछने वाला हंस पड़ा, ‘ये लो, हमें तो दिन-रात लेक्चर मिलता है कि ज्यादा बच्चे पैदा करके अपने जैसे गरीबों की गिनती और न बढ़ाओ। क्यों, इनको समझाने वाला कोई नहीं?’
पढ़े-लिखे बगलें झांकते उठ गए।
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