Hindi Newsओपिनियन नश्तरhindustan nashtar column 03 march 2022

ज्ञान चक्षु खोलने के पेराई केंद्र

ऐसी एक कहावत है कि सोना जितना तपता है, उतना निखरता है। इस आशय की अनेक कहावतें और भी हैं, जिनका तात्पर्य यही है कि कुछ पाने के लिए कष्ट उठाने पड़ते हैं। बहुत सारी व्यवस्थाएं और लोग ऐसी कहावतों का...

Naman Dixit     राजेंद्र धोड़पकर, Wed, 2 March 2022 11:54 PM
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ज्ञान चक्षु खोलने के पेराई केंद्र

ऐसी एक कहावत है कि सोना जितना तपता है, उतना निखरता है। इस आशय की अनेक कहावतें और भी हैं, जिनका तात्पर्य यही है कि कुछ पाने के लिए कष्ट उठाने पड़ते हैं। बहुत सारी व्यवस्थाएं और लोग ऐसी कहावतों का इस्तेमाल दूसरों को कष्ट देने के लिए ही करते हैं। वे तकलीफ देते हैं अपने फायदे या खुशी के लिए और ऊपर से एहसान जताते हैं कि यह वह ऐसा सामने वाले की भलाई के लिए कर रहे हैं।
इसका सबसे गंभीर दुरुपयोग शिक्षा के क्षेत्र में किया गया है। यह मान लिया जाता है कि शिक्षा पाने की प्रक्रिया में जितनी तकलीफें होंगी, शिक्षा उतनी ही बेहतर होगी। इसके लिए यह कोशिश सफलतापूर्वक की जाती रही है कि शिक्षा जहां तक हो सके, नीरस और कष्टप्रद हो। पुराने दौर में शिक्षा-प्रक्रिया को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए छात्रों को पीटने का भी चलन था। उन दिनों स्कूलों की स्थिति अक्सर काला पानी की जेल की तरह होती थी, जहां छात्रों को यातना देने के नए-नए तरीके ईजाद किए जाते थे। हालांकि, वहां पिटकर कोई छात्र सोने-सा निखरा हो, ऐसा सुनने में नहीं आया, अलबत्ता यह जरूर देखा गया कि बहुत पिटने वाले कुछ छात्रों ने अपराध के क्षेत्र में बहुत तरक्की की। 
पिटाई का वैसा माहौल तो अब नहीं है, पर छात्रों को यातना देने के कई आधुनिक तरीके ईजाद हो गए हैं। सबसे संगठित तरीका कोचिंग है। यह किसने सोचा था कि छात्रों को गन्ने की तरह पेरने का यह धंधा इतना बड़ा हो जाएगा कि बडे़-बड़े खिलाडी और फिल्मी सितारे इसका विज्ञापन करेंगे? इस पेरने से जो रस निकलता है, उसका उपयोग तो इस उद्योग से जुडे़ लोग करते हैं, छात्र तो सूखे छिलकों की तरह बचते हैं, जो सिर्फ ईंधन बनने के काबिल होते हैं। अब तो ऐसा लगता है, कोचिंग छात्रों के लिए नहीं है, बल्कि छात्र कोचिंग उद्योग का कच्चा माल भर हैं। क्या कभी कोई सोचेगा कि आग में तपता कोई है और सोना किसी और को क्यों नसीब होता है?
 

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