एलियन के जूते और सनसनीखेज सच्चाई
मंगल ग्रह पर मटरगश्ती करते मार्स रोवर द्वारा ली गई सेल्फी के नेपथ्य में किसी एलियन के पुराने जूते दिखने की अपुष्ट खबर है। ये इब्नेबतूता के चरर-मरर करने वाले जूते हैं या किसी नामचीन हस्ती की ओर उछाले...
मंगल ग्रह पर मटरगश्ती करते मार्स रोवर द्वारा ली गई सेल्फी के नेपथ्य में किसी एलियन के पुराने जूते दिखने की अपुष्ट खबर है। ये इब्नेबतूता के चरर-मरर करने वाले जूते हैं या किसी नामचीन हस्ती की ओर उछाले जाने वाले या फिर वे जूते, जिनके बारे में केदारजी कह चुके हैं- सभा उठ गई/ रह गए जूते/ सूने हॉल में दो चकित उदास/ धूल भरे जूते/ मुंह बाए जूते/ जिनका वारिस कोई नहीं था। यह बात अभी तक किसी को ठीक से नहीं पता। सघन पड़ताल जारी है।
अभी तो हमारे समय के समस्त सक्रिय बहुधंधी विचारक तमाम चुनावी चिंताओं को दरकिनार कर यूक्रेन की राजधानी से टी-20 की तर्ज पर रनिंग कमेंटरी सुना रहे हैं। वे पहुंचे हुए खबरनवीस हैं, मानवीय त्रासदी और उत्सव को समभाव से बांचते हुए। वे वहां से स्वदेश आएंगे, तो शायद कोई दूर की कौड़ी साथ लाएंगे। संभवत: देश-दुनिया को जानकारी दें कि यूपी-पंजाब के चुनावों की उनकी पारदर्शी कवरेज के चलते कैसे वहां तृतीय महायुद्ध होते-होते टल गया।
आजकल सोशल मीडिया वाले ‘सोशलिस्ट’ हर जगह हैं। सब्सक्राइबर संख्या बढ़वाने की कामना के साथ। लाइक और शेयर करवा ले जाने की इच्छा लिए हुए। यूक्रेन की आजादी और अस्मिता सांसत में है, तो हुआ करे। अभिनव मीडिया ने सब कुछ जीता-जागता; बोलता-बतियाता हुआ कर दिया है। यूक्रेन में रह-रहकर होते धमाकों के बीच कौतूहल-प्रिय लोग कह रहे हैं, काश! लॉकडाउन में किसी युद्ध का ऐसा लाइव वेबकास्ट हुआ होता, तो बाइ गॉड लाइफ बन जाती। कम से कम देशज अस्पतालों में मरते लोगों की चीख-पुकार तो न सुननी पड़ती। अब देखने-सुनने को कितना कुछ है। मंगल पर जूते के रूप में किसी परग्रही के अस्तित्व के अस्फुट सुबूत हैं। युद्ध की रोमांचक दृश्यावली है। एक ‘सोशलिस्ट’ को ऐसी आभासी सनसनीखेज सच्चाई के सिवा और चाहिए भी क्या!
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