परम का निरंतर चिंतन

अगर आप सहज हैं और हर चीज को ठीक वैसे देखते हैं, जैसी वह है, तो आप अलग तरह के प्राणी हो जाते हैं। आप पूर्णत: अलग सत्ता के आगे नत-मस्तक हो जाएंगे। जब आप अपने मन में होते हैं, तब आप कहीं यात्रा नहीं...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Wed, 16 Oct 2024 10:21 PM
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परम का निरंतर चिंतन

अगर आप सहज हैं और हर चीज को ठीक वैसे देखते हैं, जैसी वह है, तो आप अलग तरह के प्राणी हो जाते हैं। आप पूर्णत: अलग सत्ता के आगे नत-मस्तक हो जाएंगे। जब आप अपने मन में होते हैं, तब आप कहीं यात्रा नहीं करते। बस आप स्वयं का भ्रमण करते हैं। गुरु पूजा का प्रथम श्लोक यही है- अपवित्र: पवित्रो वा, सर्वावस्थाङ्गतोपि वा, यस्मरेत् पुण्डरीकाक्षम स बाह्याभ्यंतर शुचि:।  अर्थात कोई भी, पवित्र या अपवित्र, किसी भी अवस्था को पहुंचा हुआ, कमलनयन भगवान का स्मरण करता है, वह बाहर और भीतर से शुद्ध हो जाता है। इसका अर्थ है कि आप स्वयं अपनी मुक्ति की चिंता में नहीं हैं। आप स्वयं को सुधारने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं। आप तो बस उसका चिंतन कर रहे हैं, जो अभी आपके लिए सर्वोच्च है। आपके लिए जो भी परम है, आप सिर्फ उसका चिंतन करें। आपकी भीतरी और बाहरी शुद्धि स्वाभाविक रूप से हो जाएगी।
अगर आप स्वयं को मुक्त करने की कोशिश करते हैं, खुद को सुधारने की या शुद्ध करने की कोशिश करते हैं, तो आप जितना ज्यादा ऐसा करेंगे, उतना ही ज्यादा भ्रमित होंगे। आप सिर्फ उसका चिंतन करें, जिसे आप सर्वोच्च मानते हैं, ईश्वर या गुरु या जिसे भी आप सर्वोच्च मानते हैं या सिर्फ आकाश का चिंतन करें; यह काफी है। बस उसके साथ रहें, उस पर ईश्वर को या किसी भी चीज को प्रक्षेपित न करें। यह सिर्फ स्मरण है। स्मरण का अर्थ है, किसी को याद करना या उसका चिंतन करना। हर चीज बदल जाती है; भीतरी और बाहरी शुद्धि स्वत: होती है।
अब मंदिर लोगों के लिए क्यों काम नहीं कर रहे; क्योंकि वे ईश्वर को प्रक्षेपित कर रहे हैं। अगर वे ईश्वर को प्रक्षेपित करने के बजाय स्मरण पर जोर दें, तब लोगों में भारी परिवर्तन आएगा। लोग ईश्वर को याद नहीं कर सकते, क्योंकि अगर किसी को याद करना है, तो पहले उसे किसी चीज में देखना होगा। हो सकता है, एक बच्चे के चेहरे में, अपनी पत्नी या प्रेयसी के चेहरे में, अपने प्रेमी या पति के चेहरे में, एक फूल या बादलों में, कहीं पर भी आपको भगवान की कम से कम एक झलक तो देखनी ही होगी, केवल तभी आप उन्हें याद कर सकते हैं। दूसरे लोग सिर्फ सोच सकते हैं। 
स्मरण का अर्थ ही है कि यह हो चुका है। इस स्मरण में हरेक चीज पवित्र हो जाती है। अब आपको इस पर मेहनत करने की जरूरत नहीं है कि इसे या उसे सुधारा कैसे जाए? इसको ठीक कैसे किया जाए? इन सारी अनर्गल चीजों की चिंता न करें। आप केवल जीवन के उस सर्वोच्च पहलू का स्मरण करें, जिसे आपने देखा है। बस उसका स्मरण करते जाएं। अभी वही आपका ईश्वर है। इससे हर चीज बदल सकती है।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव 

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