किसी को नाम क्या देना
हम किसी भी चीज को नाम क्यों देते हैं? किसी फूल, व्यक्ति, भावना आदि पर हम कोई लेबल क्यों लगा देते हैं? हम ऐसा अपनी भावनाओं को संप्रेषित करने, उस फूल का बखान करने आदि के लिए करते हैं या फिर उस भावना...
हम किसी भी चीज को नाम क्यों देते हैं? किसी फूल, व्यक्ति, भावना आदि पर हम कोई लेबल क्यों लगा देते हैं? हम ऐसा अपनी भावनाओं को संप्रेषित करने, उस फूल का बखान करने आदि के लिए करते हैं या फिर उस भावना से अपना तादात्म्य बिठाने के लिए। हम किसी चीज को, गुलाब के फूल को कोई संज्ञा इसलिए देते हैं, ताकि दूसरों को बता सकें; या फिर उसे नाम देकर हम सोचते हैं कि हमने उसे समझ लिया है; हमने उसका वर्गीकरण कर लिया है और ऐसा करके हमने उस फूल की समस्त अंतर्वस्तु व सौंदर्य को जान लिया है।
किसी वस्तु को एक संज्ञा देकर हम उसे एक कोटि में रख देते हैं और हम उसे और ध्यान से नहीं देखते। लेकिन यदि हम उसे कोई नाम नहीं देते, तो हमें उसे देखना पड़ता है; तात्पर्य यह कि तब हम किसी फूल या वस्तु को एक नएपन के साथ, परख की एक नवीन मौलिकता के साथ देखते हैं; हम उसे ऐसे देखते हैं, मानो पहले उसे कभी न देखा हो। नाम देना व्यक्तियों या वस्तुओं को निपटा देने का बड़ा आसान तरीका है- वे जर्मन हैं, जापानी हैं, अमेरिकी हैं, हिंदू हैं, ऐसा कहकर आप उन्हें एक लेबल बना सकते हैं और फिर उस लेबल को नष्ट कर सकते हैं। यदि व्यक्तियों को आप कोई लेबल न दें, तो आप उन्हें देखने पर मजबूर होंगे और तब किसी की हत्या करना कहीं अधिक कठिन हो जाएगा।
आप किसी लेबल को नष्ट कर सकते हैं और खुद को बड़ा धर्मात्मा समझ सकते हैं। लेकिन यदि आप कोई लेबल, कोई कोटि न दें और उस वस्तु विशेष को सीधे-सीधे देखें, वह चाहे कोई मनुष्य हो, फूल हो, कोई प्रसंग हो या कोई भावना, तब आप उसके साथ अपने संबंध पर गौर किए बिना नहीं रह सकेंगे। अत: नाम या लेबल देना किसी चीज से पीछा छुड़ाने, उसके निषेध, उसकी निंदा-प्रशंसा की एक बड़ी सुविधाजनक विधि है। यह इसका एक पक्ष हुआ।
कभी आपने सोचा है कि हमेशा नामकरण करने वाला, चुनने वाला, लेबल देने वाला वह केंद्र कौन सा है? हम सभी महसूस करते हैं कि ऐसा कोई केंद्र, कोई मर्म तो है, जहां से हम कर्म कर रहे हैं, मूल्यांकन कर रहे हैं, नामकरण कर रहे हैं। क्या है वह केंद्र, वह स्रोत? कुछ लोग ऐसा सोचना पसंद करेंगे कि वह एक आध्यात्मिक तत्व है, ईश्वर है या ऐसा ही कुछ है। अत: हमें यह जानना चाहिए कि वह मर्म, वह केंद्र क्या है, जो नाम दे रहा है, शब्द दे रहा है, मूल्यांकन कर रहा है? निस्संदेह, वह केंद्र है स्मृति। वह संवेदनाओं की एक शृंखला है, जिनके साथ तादात्म्य कर लिया गया है और जिनके घेरे बना दिए गए हैं, वर्तमान के माध्यम से जीवन पाता अतीत। और इस केंद्र के विसर्जित होने पर ही बोध संभव होता है।
जे कृष्णमूर्ति
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।