मालिकाना हक भगवान का

एयरपोर्ट पर सुरक्षा-जांच चल रही थी। स्कैनर की पैनी निगाहें सभी वस्तुओं को भेद रही थीं। एक ट्रे में जूते रखे हुए थे, जो थोडे़ संदेहास्पद लगे, तो अधिकारी उन्हें भी स्कैन करने ले गए। जिनके जूते...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Sun, 13 Oct 2024 10:44 PM
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मालिकाना हक भगवान का

एयरपोर्ट पर सुरक्षा-जांच चल रही थी। स्कैनर की पैनी निगाहें सभी वस्तुओं को भेद रही थीं। एक ट्रे में जूते रखे हुए थे, जो थोडे़ संदेहास्पद लगे, तो अधिकारी उन्हें भी स्कैन करने ले गए। जिनके जूते थे, वे सज्जन गुस्से से बोले, ‘अब जूते भी स्कैन किए जाएंगे? क्या हम जूतों के नीचे चिप लगाते हैं या गन छिपाते हैं? अपराधी तो चूना लगाकर निकल जाते हैं और मासूम लोगों को तलाशी के नाम पर परेशान किया जाता है। इस देश का तो भगवान ही मालिक है।’
यह वक्तव्य कि ‘इस देश का तो भगवान ही मालिक है’, आपने भी कई बार सुना होगा और जब भी सुना होगा, किसी न किसी परेशान व्यक्ति के मुंह से सुना होगा। देश का मालिकाना अधिकार भगवान को तब सौंपा जाता है, जब व्यवस्था ठप्प होती है, चीजों के भाव काफी बढ़ जाते हैं, हड़तालें होती हैं, ट्रैफिक जाम होता है, पुलिस वाला रिश्वत मांगता है। जब भी लोग शासकों से असंतुष्ट होते हैं, परिस्थिति पर आक्रोश से भरे होते हैं, झुंझलाए हुए होते हैं, तब उन्हें स्मरण होता है भगवान का, जो कहीं दूर आकाश में बैठा है और जिसे अपनी जिम्मेदारियां निभानी चाहिए, क्योंकि धरती पर उसके एजेंट तो कुछ काम नहीं कर रहे हैं। ऐसे लोगों को भगवान से कोई खास मतलब नहीं होता, उन्हें तो शिकायत है अधिकारियों से, शासकों से, जो अपना फर्ज नहीं निभा रहे हैं। जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो, तब उन्हें भगवान की याद नहीं आती। कभी सुना है आपने किसी पार्टी या क्लब में कि लोग हाथ में ड्रिंक लिए आराम से बैठे हों और भगवान को धन्यवाद दे रहे हों कि वाह! क्या बढ़िया देश चल रहा है? गांव-गांव में मोबाइल फोन पहुंच गया है, घर-घर टीवी विराजमान है, छोटे-छोटे शहरों में भी विमान सेवाएं शुरू हुई हैं, शॉपिंग मॉल खरीदारों से भरे रहते हैं, हिन्दुस्तान अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर आ गया है!  
नहीं, ऐसा कभी नहीं होता। यदि लोग सकारात्मक घटनाओं के लिए धन्यवाद से भर जाएं, शुभ घटनाओं के लिए आनंदित हों, तो उनका हृदय विकसित होगा। आप भगवान को मानते हैं या नहीं, यह सवाल नहीं है; सवाल है आपके हृदय की खिलावट का। जिंदगी में कभी भी सिर्फ अच्छा या सिर्फ बुरा नहीं होता, क्योंकि जिंदगी एक संतुलन बनाए रखती है। जितना अच्छा होगा, उतना ही बुरा भी होगा। बुरा भी हमारे देखने का ढंग है। अच्छे-बुरे का तमगा मन लगाता है, घटनाएं अपने नियम से घटती हैं। जिंदगी कोई आपकी दुश्मन थोडे़ ही है कि आपको नाहक परेशान करे। अगर आप हमेशा सुखी रहना चाहते हैं, तो हर घटना की मालिकाना हक भगवान को दे दें। फिर परेशानी की कोई वजह ही नहीं। सही हो तो उसका, गलत हो तो उसका!
अमृत साधना 

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