राष्ट्रवादी नजर

मनुष्य, जितना कुछ लोग उसे समझते हैं, उससे कहीं कम पार्थिव सांचे का ढला हुआ है। उसमें एक दैवी तत्व होता है, जिसकी व्यावहारिक राजनीतिज्ञ उपेक्षा कर जाता है। व्यवहारी राजनीतिज्ञ वर्तमान स्थिति...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Wed, 9 Oct 2024 03:33 PM
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राष्ट्रवादी नजर

मनुष्य, जितना कुछ लोग उसे समझते हैं, उससे कहीं कम पार्थिव सांचे का ढला हुआ है। उसमें एक दैवी तत्व होता है, जिसकी व्यावहारिक राजनीतिज्ञ उपेक्षा कर जाता है। व्यवहारी राजनीतिज्ञ वर्तमान स्थिति पर दृष्टि डालता है और कल्पना कर लेता है कि उसने सभी बातों पर विचार कर लिया है। उसने वस्तुत: सतह का और तत्कालीन परिवेश का अध्ययन किया है, किंतु भौतिक दृष्टि से जो परे स्थित है, उससे वह चूक गया है। वह दैवी को अपने लेखा से बाहर छोड़ गया है।
राष्ट्रवादी कभी इस सत्य को ओझल नहीं होने देता कि कानून आदमी के लिए बना है, न कि आदमी कानून के लिए। उसका प्रमुख कार्य और अस्तित्व का हेतु राष्ट्रीय जीवन के विकास को सुरक्षित व पोषित करके शक्ति-संपन्न व स्वस्थ बनाना है और ऐसा कानून, जो इस उद्देश्य में सहायक नहीं होता, वह चाहे जितनी सख्ती से शांति, व्यवस्था व सुरक्षा कायम करे, आदर और अनुपालन का अधिकार खो बैठता है। राष्ट्रवाद कानून को अंधश्रद्धा का आधार मानने से इनकार करता है और न ही वह शांति व सुरक्षा को अपने आप में एक उद्देश्य मानना स्वीकार करता है।... वह हिंसात्मक और सख्त तरीकों को इसलिए प्राथमिकता नहीं देता कि वे हिंसात्मक व सख्त हैं, पर वह नरम और शांतिपूर्ण तरीकों से भी केवल इसलिए बंधा नहीं रहता कि वे नरम व शांतिपूर्ण हैं। किसी भी तरीके से वह यह प्रश्न करता है कि वह अपने उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम है कि नहीं, अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत एक जन-समुदाय की प्रतिष्ठा के योग्य है या नहीं? एक बार ये बातें सुनिश्चित हो जाएं, तो फिर वह आगे और कुछ नहीं पूछता।
श्री अरविंद  

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