Hindi Newsओपिनियन मनसा वाचा कर्मणाHindustan mansa vacha karmana column 24 January 2025

यहां संपूर्ण कहां कोई

सामान्य रूप से मनुष्य के दो तरह के चरित्र हो सकते हैं। एक, नकारात्मक चरित्र; अपराधी, समाज विरोधी और विद्रोही व्यक्ति का चरित्र और दूसरा, सुनिश्चित सिद्धांतवादी, परंपरागत, धार्मिक व सम्मानित चरित्र…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानThu, 23 Jan 2025 11:00 PM
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यहां संपूर्ण कहां कोई

सामान्य रूप से मनुष्य के दो तरह के चरित्र हो सकते हैं। एक, नकारात्मक चरित्र; अपराधी, समाज विरोधी और विद्रोही व्यक्ति का चरित्र और दूसरा, सुनिश्चित सिद्धांतवादी, परंपरागत, धार्मिक व सम्मानित चरित्र।

अपराधी को दंड दिया जाएगा, और यदि वह पकड़ा गया, तो उसे जेल में बंद कर दिया जाएगा। समाज उसे बरबाद या नष्ट करने का प्रयास करेगा, क्योंकि वह समाज के लिए खतरा है। वह आज्ञाकारी नहीं, अपना अधिकार स्थापित करने का प्रयास कर रहा है और समाज उसे पसंद नहीं करता। समाज का अस्तित्व लोगों की निजता और वैयक्तिकता को नष्ट करने में ही निहित है। समाज के पास अधिक शक्ति होती है, यदि उसके चारों ओर वैयक्तिक इकाइयां न हों। यदि वहां व्यक्तित्व वाले व्यक्ति विशेष होते हैं, तो उसकी शक्ति कम से कम होती जाती है। यदि पूरे समाज में अपनी वैयक्तिकता रखने वाले व्यक्ति होंगे, तो समाज के अधिकृत मुखियाओं के पास कोई शक्ति नहीं होगी, पुरोहितों और राजनेताओं के पास भी कोई शक्ति नहीं होगी। इसलिए समाज अनैतिक और असामाजिक लोगों को, उन विशिष्ट व्यक्तियों को, जिनके पास अपनी निजी नैतिक मान्यताएं हैं और जो कार्यों को अपने ढंग से करना चाहते हैं, उन्हें कुचलने और समूल नष्ट करने का प्रयास करता है।

यदि तुम समाज का अनुसरण करते हो, तो वह तुम्हारा सम्मान करता है। इसलिए प्रत्येक वह व्यक्ति, जो समाज के प्रति ‘नहीं’ से भरा है, वह विरोधी है। वह अपराधी बन जाता है और समाज की हां में हां मिलाने वाला सिद्धांतवादी चरित्र का व्यक्ति एक सम्मानित सज्जन बन जाता है।

यदि तथाकथित अपराधी तर्कपूर्ण पराकाष्ठा की ओर गतिशील होता है, तो वह शैतान बन जाएगा, और यदि सज्जन व्यक्ति तर्कपूर्ण पराकाष्ठा की ओर गतिशील होता है, तो वह संत बन जाएगा। संत वह व्यक्ति है, जो समाज के लिए होता है, और इसीलिए समाज उसके लिए हमेशा तत्पर रहता है। समाज के लिए हानिकारक चरित्र का व्यक्ति वह है, जो उसके लिए न जीकर केवल अपने लिए जीता है, इसलिए स्वाभाविक रूप से समाज उसके विरुद्ध होता है। लेकिन एक चीज है, जो दोनों में समान होती है। वे आधे होते हैं। यह बात समझ लेने जैसी है। यह सूफीवाद के सबसे महत्वपूर्ण विचारों में से एक है कि संत और अपराधी, दोनों ही आधे-अधूरे हैं।

संत के पास केवल सुनिश्चित सिद्धांत हैं और वे निषेध व विरोध से चूक रहे है। इसी कारण तुम संतों को एकरस पाओगे। उनके साथ चौबीस घंटे गुजारना भी तुम्हारे लिए एक कठिन परीक्षा होगी। वह कभी कोई गलत कार्य नहीं करेगा, हमेशा अच्छा बना रहेगा, पर उसके पास अपने बारे में कोई अनूठापन नहीं होगा। कोई निजी स्वाद नहीं होगा, वह परंपरावादी होगा।

ओशो

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