Hindi Newsओपिनियन मनसा वाचा कर्मणाHindustan mansa vacha karmana column 18 January 2025

छाया को पकड़ना

  • एक बात हमेशा ध्यान में रखना, इस जगत में स्वयं के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं पाया जा सकता। जो उसे खोजते हैं, वे उसको पा लेते हैं और जो उससे अन्यथा कुछ भी खोजते हैं, वे अंतत: असफलता और विषाद को ही उपलब्ध होते हैं…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानFri, 17 Jan 2025 10:51 PM
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छाया को पकड़ना

एक बात हमेशा ध्यान में रखना, इस जगत में स्वयं के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं पाया जा सकता। जो उसे खोजते हैं, वे उसको पा लेते हैं और जो उससे अन्यथा कुछ भी खोजते हैं, वे अंतत: असफलता और विषाद को ही उपलब्ध होते हैं। वासनाओं के पीछे दौड़ने वाले लोग नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं और नष्ट होंगे। वह मार्ग आत्म-विनाश का है।

घुटने के बल चलने वाले एक बालक ने एक दिन सूर्य के प्रकाश में खेलते हुए अपनी परछाईं देखी। उसे वह अद्भुत वस्तु जान पड़ी, क्योंकि वह हिलता, तो उसकी वह छाया भी हिलने लगती थी। वह उस छाया का सिर पकड़ने का उद्योग करने लगा, किंतु जैसे ही वह छाया के सिर को पकड़ने बढ़ता कि वह दूर हो जाता। वह बढ़ता जाता, लेकिन पाता कि सिर तो सदा उतना ही दूर है। उसके और साये के बीच का फासला कम ही नहीं हो रहा था। थककर और असफलता से वह रोने लगा। द्वार पर भिक्षा के लिए खड़े एक भिक्षु ने यह देखा। उसने पास आकर बालक का हाथ उसके सिर पर रख दिया। रोता हुआ बालक हंसने लगा; इस भांति छाया का मस्तक भी उसने पकड़ लिया था। कल मैंने यह कथा कही और कहा अपनी आत्मा पर हाथ रखना जरूरी है।

जो छाया को पकड़ने में लगते हैं, वे उसे कभी नहीं पकड़ पाते। काया छाया है। उसके पीछे जो चलता है, वह एक दिन असफलता से रोता है। वासना दुष्पूर है, यानी उसका पूरा होना कठिन है। उसका कितना ही अनुगमन करो, वह उतनी ही दुष्पूर बनी रहती है। उससे मुक्ति तब ही मिलती है, जब कोई पीछे देखता है और स्वयं में प्रतिष्ठित हो जाता है।

ओशो

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