Hindi Newsओपिनियन मनसा वाचा कर्मणाHindustan mansa vacha karmana column 08 January 2025

प्रेम ही सच्ची प्रार्थना

  • ईसा गुजर रहे थे एक गांव से। उन्होंने राह के किनारे दीवार के सहारे बैठे कुछ अत्यंत दुखी लोगों को देखा। ऐसे थे वे सब संताप-ग्रस्त, जैसे मौत उनके सामने हो। भय से कंपित, भय से पीले हुए- मरणासन्न। ईसा ने पूछा…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानTue, 7 Jan 2025 11:03 PM
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ईसा गुजर रहे थे एक गांव से। उन्होंने राह के किनारे दीवार के सहारे बैठे कुछ अत्यंत दुखी लोगों को देखा। ऐसे थे वे सब संताप-ग्रस्त, जैसे मौत उनके सामने हो। भय से कंपित, भय से पीले हुए- मरणासन्न। ईसा ने पूछा उनसे, ‘यह हालत कैसे हुई तुम्हारी?’ उन्होंने कहा, ‘नरक के भय के कारण।’ और थोड़ा आगे बढ़ने पर ईसा ने फिर कुछ लोगों को वैसी ही स्थिति में देखा। आंखें उनकी पथरा गई थीं और भिन्न-भिन्न आसनों और मुद्राओं में वे ऐसे बैठे थे, जैसे मर ही गए हों।

ईसा ने उनसे भी पूछा, ‘तुम्हारा क्या है दुख?’

वे बोले, ‘स्वर्ग की आकांक्षा!’ और थोड़ा आगे बढ़ने पर ईसा ने कुछ लोगों को वृक्षों की छाया में नाचते हुए देखा। आनंद मग्न, भाव विभोर, न जाने कौन सा खजाना मिल गया था उन्हें? न मालूम किस नरक से बच गए थे वे या कौन सा स्वर्ग का द्वार खुल गया था उन सबके लिए? उन सबके चेहरे पर लंबी यात्रा के चिह्न तो थे, लेकिन थकन नहीं थी, वरन उपलब्धि का विश्राम था। उनकी आंखों में तपश्चर्या का सौंदर्य था, लेकिन अहंकार की कोई भी रेखा न थी। उनकी आत्माओं में आनंद की वर्षा हो रही थी और उनके चारों ओर किसी अलौकिक प्रकाश का आभामंडल था।

ईसा ने उनसे भी पूछा, ‘मित्रो! तुम्हारे इस अपूर्व आनंद का राज क्या है? तुम्हारी इस प्रसन्नता का रहस्य क्या है?’

वे बोले, ‘आकांक्षा नहीं सुख की, भय नहीं दुख का। चाह नहीं स्वर्ग की, चिंता नहीं नरक की और जब से चाह और चिंता छूटी है, तभी से जो है, उसे ही जानकर और पाकर हम आनंदित और अनुगृहीत हैं।’

ईसा ने कहा, ‘यही हैं वे लोग, जो सत्य को उपलब्ध होते हैं। यही हैं वे लोग, जो सदा ही प्रभु की उपस्थिति में जीते हैं।’

प्रभु से उसके समस्त रूपों से प्रेम ही प्रार्थना है। जहां देखो, उसे ही देखो; जहां सुनो, उसे ही सुनो। फिर जीवन जीना उत्सव हो जाता है। जीवन को गंभीरता से लिया, तो कठिनाई में पड़ जाएंगे। जीवन एक खेल है। यदि इस बात को सदा स्मरण रखे, तो फिर और कुछ स्मरण रखने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए जो बुरा करे, उनके प्रति भी मन में करुणा रखना और उनके प्रति अनुग्रह का भाव भी रखना, क्योंकि वे तुम्हें करुणा का अवसर देते हैं। याद रखो, साधना के मार्ग पर सभी मित्र हैं। वे भी, जो ऊपर से शत्रु जैसे मालूम होते हैं।

इस बात की गांठ बांध लो- कल तुम नहीं थे और कल तुम नहीं होगे। इसलिए आज ही तुम्हारा जीवन है। इसे आज ही जिओ- गहराई में, समग्रता में। प्रतिपल जियो, प्रतिपल अतीत से बाहर होते रहो। प्रतिपल से ज्यादा जीवन नहीं है।

ओशो

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