गाजा में कोई बच्चा अपना बचपन कहां जी पाता
तारीख के पन्नों को दुनिया जब-जब पलटेगी, उसके कुछ जख्म छिपाए न छिपेंगे, दबाए न दबेंगे। फलस्तीन के घाव ऐसे ही हैं। उसके ये जख्म किसी जंग-ए-आजादी का सिला नहीं, बल्कि कुछ अपनों और ज्यादातर बाहरी ताकतों...
तारीख के पन्नों को दुनिया जब-जब पलटेगी, उसके कुछ जख्म छिपाए न छिपेंगे, दबाए न दबेंगे। फलस्तीन के घाव ऐसे ही हैं। उसके ये जख्म किसी जंग-ए-आजादी का सिला नहीं, बल्कि कुछ अपनों और ज्यादातर बाहरी ताकतों की बर्बर कूटनीति का नतीजा हैं। सन् 1948 से आज तक वहां कितने हजार बेगुनाह इसके शिकार हुए, इसकी ठीक-ठीक गिनती नहीं। मगर कुछ फलस्तीनी नौजवानों ने अब यह बीड़ा उठाया है कि वे अपने साहित्य और ‘डेटा कलेक्शन’ के जरिये आने वाली नस्लों को पुख्ता सुबूत सौंप जाएंगे, बल्कि इस खून-खराबे के बीच भी उन्होंने अपने जीने की उम्मीदों को कैसे सींचा, यह भी बता जाएंगे। यह कोई कम जोखिम का काम नहीं, मगर मोसाब अबू तोहा जैसे युवा तो जोखिमों के बीच ही पले-बढे़ हैं। फिर वे कहां तक डरें?
करीब 32 साल पहले गाजा के अल-शती शरणार्थी शिविर में तोहा पैदा हुए। यह वही शरणार्थी शिविर है, जो हाल में सुर्खियों में आया था। ईरान में मारे गए हमास के मुखिया इस्माइल हानिया की पैदाइश भी यहीं पर हुई थी। बहरहाल, तोहा और उनके पांच भाई-बहनों का बचपन आम बच्चों जैसा नहीं था। गाजा का कोई बच्चा, बच्चा ही कहां रहता है? उनकी जिंदगी में तो खिलौनों और खेल के मैदानों के बजाय एहतियात और हिदायतों के मुश्किल सबक ज्यादा होते हैं। तोहा सात साल के थे, जब उन्होंने इजरायली हवाई हमले को पहली बार करीब से देखा। मकानों और सामान की तबाही के मंजर से ज्यादा उस वक्त के खौफजदा चेहरे और बदहवासी का आलम मानो उनमें हमेशा के लिए पैबस्त हो गया।
उस कोहराम ने कई असर छोड़े थे। किसी को वह क्रोधित कर प्रतिशोध की ओर ले गया था, तो कोई संजीदगी की राह पर बढ़ चला। तोहा ने दूसरा रास्ता चुना। इस वारदात के कुछ महीनों बाद ही उनका परिवार बेत लाहिया शहर में आ बसा था। अच्छी परवरिश और किताबों की सोहबत से इल्म हुआ कि जंग किसी मसले का हल नहीं। जुल्म के प्रतिकार के और भी रास्ते हैं। किताबों से दोस्ती ने तोहा को इलाके में संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित एक स्कूल में पहुंचा दिया, जहां पर उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी। इसके बाद गाजा की इस्लामिक यूनिवर्सिटी से तोहा ने अंग्रेजी भाषा और साहित्य में स्नातक की डिग्री हासिल की। अब तक वह कविताएं, कहानियां और डायरी लेखन करने लगे थे। सुखद यह रहा कि स्नातक करते ही 2016 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित एक स्कूल में तोहा को बतौर अंग्रेजी शिक्षक नौकरी भी मिल गई।
अब जिंदगी के मायने तलाशने के दिन शुरू हुए। एक जंगजू आबादी के बीच अम्न-पसंदी की बात लोगों को बहुत जंचती नहीं है। मगर तोहा अपने तईं कोई कसर नहीं रखना चाहते थे। उन्होंने पहले ही यह गौर किया था कि इजरायली फौजें गाजा के पुस्तकालयों को खास तौर पर निशाना बनाती हैं और कई पुस्तकालय पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं। तोहा को यह बखूबी एहसास था कि किसी कौम को अपंग बनाना हो, तो उससे सोचने-समझने की सलाहियत सबसे पहले छीनी जाती है। लिहाजा, उन्होंने गाजा के बच्चों के लिए अंग्रेजी की किताबें दान में इकट्ठा करने का अभियान शुरू किया और इस तरह साल 2017 में गाजा की पहली अंग्रेजी किताबों की ‘एडवर्ड सईद लाइब्रेरी’ वजूद में आई।
इस एक पहल ने तोहा को मकबूल कर दिया। प्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान नोम चोम्स्की ने इस लाइब्रेरी को अपनी कई किताबें दान में दी हैं। उन्होंने तोहा की सराहना करते हुए इस लाइब्रेरी को गाजा के नौजवानों के लिए एक नायाब उपहार और उम्मीद की दुर्लभ किरण बताया। तोहा को 2019-20 में हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के कई विभागों से वजीफे पर शैक्षिक अनुभव हासिल करने का मौका मिला। बाद में उन्होंने न्यूयॉर्क की सर्कीज यूनिवर्सिटी से फाइन आर्ट्स में मास्टर्स की डिग्री भी हासिल की। साल 2022 में उनका पहला कविता संग्रह आया- थिंग्स यू मे फाइंड हिडेन इन माई ईयर। इस संग्रह की कविताएं गाजा के बच्चों की पीड़ा के सजीव दस्तावेज हैं। तोहा के इस पहले ही कविता संग्रह को प्रतिष्ठित ‘अमेरिकन बुक अवॉर्ड’ से नवाजा गया है। उनकी लघु कथाएं और आलेख द न्यूयॉर्क टाइम्स, द न्यूयॉर्कर, द नेशन, लिटररी हब जैसे ख्यात प्रकाशनों में नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं।
अक्तूबर 2023 इजरायल के1,500 लोगों के लिए ही दुखांतकारी बनकर नहीं आया, लाखों फलस्तीनियों के लिए भी वह किसी काल से कम साबित नहीं हुआ है। 7 अक्तूबर की घटना के बाद इजरायल ने फरमान सुना दिया कि वह बेत लाहिया पर बमबारी करेगा। न चाहते हुए भी तोहा को परिवार समेत अपार्टमेंट खाली करना पड़ा। वे उसे नहीं छोड़ना चाहते थे, क्योंकि माता-पिता समेत उनके तीन भाइयों का पूरा कुनबा उसमें ऊपर-नीचे एक साथ रहता था। वहां तोहा की निजी लाइब्रेरी थी, जिससे उनको गहरी मोहब्बत थी। वह जानते थे, वहां से निकले, तो दोबारा देखना नसीब न होगा। मगर कोई चारा न था। वे सब एक शरणार्थी शिविर में गए। वहीं खबर आई, हवाई हमले में सब कुछ खाक हो गया। जहां तोहा परिवार ठहरा था, उससे सौ मीटर पर हवाई हमले में 12 लोग मारे गए थे। अब गाजा छोड़ने के सिवा कोई विकल्प न था।
तोहा इन दिनों काहिरा में रहते हैं, वहीं से फलस्तीनी बच्चों और बच्चों के पिता की मर्मांतक दास्तां सुनाते हैं। संसार भर के निजामों से उनकी इतनी ही गुहार है कि इंसान होने की सबसे बड़ी सिफत यदि दर्दमंदी है, तो उसी के वास्ते गाजा में तबाही रोकिए! तोहा को अपनी एक तस्वीर बहुत पसंद है, जिसमें वह कविता पाठ कर रहे हैं, और उनके पीछे महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और दलाई लामा की तस्वीरें नुमायां हैं। प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम ने मोसाब अबू तोहा को हाल ही में नई पीढ़ी के अगुवा लोगों में शुमार किया है।
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह
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