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न्याय होगा, अवश्य होगा अगर आप बोलेंगी

महिलाओं पर यौन हमले की घटनाएं यूं तो सदियों से देश-दुनिया में घटती रही हैं, उनको लेकर स्थानीय स्तर पर छोटे-मोटे एहतिजाज भी होते रहे हैं, मगर व्यापक समाज पर खास असर नहीं पड़ता था। निर्भया कांड ने...

Pankaj Tomar रीना गोनोई, पूर्व फौजी, Sat, 7 Sep 2024 08:18 PM
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न्याय होगा, अवश्य होगा अगर आप बोलेंगी

महिलाओं पर यौन हमले की घटनाएं यूं तो सदियों से देश-दुनिया में घटती रही हैं, उनको लेकर स्थानीय स्तर पर छोटे-मोटे एहतिजाज भी होते रहे हैं, मगर व्यापक समाज पर खास असर नहीं पड़ता था। निर्भया कांड ने पहली बार इस विषय को एक गंभीर राष्ट्रीय-सामाजिक विमर्श के रूप में खड़ा किया और अब कोलकाता की डॉक्टर के साथ हुई वारदात से भारतीय समाज फिर आंदोलित है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के यौन हिंसा के आंकडे़ बताते हैं कि यह मुद्दा कितना गंभीर और जटिल है। जटिल इसलिए कि जिस संसद पर महिलाओं को एक निर्भीक व बराबरी का माहौल देने का दायित्व है, उसके ही कई माननीय इस जघन्य कृत्य के आरोपी हैं और जिस समाज को दुराचारियों से मुंह फेरना था, उसका एक वर्ग तो उनके जेल से बाहर आने पर गुलाल उड़ाता है। उन्हें फूल-मालाओं से लाद देता है। ऐसे में, भारत की औरतों को भी जापान की पूर्व फौजी रीना गोनोई की तरह अपनी जंग खुद लड़नी होगी।
आज से ठीक 25 साल पहले जापान के एक छोटे से शहर हिगाशी-मात्सुशिमा में गोनोई पैदा हुईं। माता-पिता जानते थे कि आज के दौर में बेटी को सिर्फ तालीम दिलाना काफी नहीं है, उसे शारीरिक रूप से भी आत्मरक्षा के योग्य बनाना जरूरी है। लिहाजा, चार साल पूरा करते ही गोनोई की जूडो-कराटे की तालीम शुरू हो गई। अच्छी बात यह थी कि बड़े भाई जूडो-कराटे में दक्ष थे। इसलिए गोनोई को किसी बाहरी प्रशिक्षक की जरूरत नहीं पड़ी। जूडो के प्रशिक्षण ने न सिर्फ उन्हें शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से काफी मजबूत बना दिया।
साल 2011 की बात है। गोनोई तब पांचवीं कक्षा में थीं। 11 मार्च को जापान में जबर्दस्त भूकंप और सुनामी आई। लगभग 20 हजार होग उस कुदरती आपदा में मारे गए थे। गोनोई का घर भी तबाह हो गया था। 11 साल की गोनोई के परिवार को ‘जापान ग्राउंड सेल्फ डिफेंस फोर्स’, यानी जेजीएसडीएफ की टीम बचाकर शेल्टर होम ले आई थी। इस टीम में पुरुष और महिला सैन्यकर्मी जिस तरह पीड़ित परिवारों की सेवा कर रहे थे, शरणार्थी शिविरों में राहत-कार्य कर रहे थे, उसने गोनोई के मन पर गहरा असर डाला। बचपन से वह ओलंपियन बनना चाहती थीं, मगर इस हादसे के बाद जेजीएसडीएफ का हिस्सा बनना उनका लक्ष्य बन गया।
गोनोई को यही लगता था कि फौज में मर्द-औरत में भेदभाव नहीं है, बल्कि ्त्रिरयों को अन्य क्षेत्रों के मुकाबले यहां ज्यादा अधिकार हासिल हैं। वह जुट गईं। मेहनत रंग लाई और साल 2020 में गोनोई का जेजीएसडीएफ में चयन हो गया। जाहिर है, वह बहुत खुश थीं। सैन्य सेवा का हिस्सा बनने के बाद वहां की खेल सुविधाओं को देखकर उनका पुराना सपना भी जाग उठा था। वह ओलंपिक के लिए तैयारी के मनसूबे बांधने लगी थीं। साल 2021 में उन्हेंफुकुशिमा स्टेशन पर नियुक्ति मिली। मगर कुछ ही दिनों में उन्हें एहसास हो गया कि जिनको वह ‘हीरो’ मानती रही हैं, उनमें कुछ ‘विलेन’ भी घुसे बैठे हैं। 
शुरू-शुरू में गोनोई ने उनके फूहड़ मजाक को नजरअंदाज किया, मगर आहिस्ता-आहिस्ता उनकी हिमाकत बढ़ती गई। फिर एक दिन उन्होंने उनके मुंह से अपने अंगों के बारे में अभद्र टिप्पणी सुनी। दो-तीन जवान गाहे-बगाहे गोनोई को गले लगाने की जैसे फिराक में रहते। स्वाभाविक ही वह इस सबसे आहत थीं। फिर अगस्त 2021 में घटी एक घटना ने उन्हें बुरी तरह हिला दिया। तीन फौजी अफसरों ने प्रशिक्षण के दौरान गोनोई को एक टेंट में बुलवाया, जहां वे तीनों शराब पी रहे थे। वे मार्शल आर्ट तकनीक में विरोधी को जमीन पर पटकने और गला घोंटने की शैली पर चर्चा कर रहे थे। उन्होंने गोनोई को गला घोंटने की तकनीक प्रदर्शित करने को कहा।
गोनोई जानती थीं कि यह प्रशिक्षण का माहौल नहीं है, मगर फौजी अनुशासन में सीनियर का आदेश न मानना दंडनीय होता। लिहाजा, जैसे ही वह मुद्रा में आईं, एक अधिकारी ने झपटकर उन्हें बिस्तर पर पटक दिया और उनके शरीर के साथ जैसा व्यवहार किया गया, वह मार्शल आर्ट नहीं, यौनाचार की मुद्रा थी। दर्जन भर अन्य सैन्य सहकर्मी सामने खड़े यह सब देख रहे थे और खिलखिला रहे थे। इसके बाद गोनोई की सहनशीलता जवाब दे गई। उन्होंने उनके खिलाफ वरिष्ठ अफसरों से यौन उत्पीड़न की शिकायत की, मगर सुबूत के अभाव में उसे खारिज कर दिया गया, क्योंकि सभी पुरुष प्रत्यक्षदर्शी मुकर गए थे। गोनोई ने फिर जेजीएसडीएफ के शीर्ष स्तर पर शिकायत की, मगर नतीजा सिफर रहा, क्योंकि तब भी कोई साथ देने आगे नहीं आया।
निराश होकर जून 2022 में गोनोई ने फौज से इस्तीफा दे दिया। मगर उन्होंने घुटने नहीं टेके। महिला फौजियों के सम्मान और गरिमा की लड़ाई लड़ने का प्रण उन्हें मीडिया के पास ले गया, मगर कोई फौज के खिलाफ खबर लिखने-दिखाने को तैयार न था। हारकर रीना गोनोई ने सोशल मीडिया पर मुहिम चलाई। मुहिम को जोर पकड़ते देख सैन्य नेतृत्व ने नई जांच बिठाई। जांच में गोनोई की सारी शिकायतों को सही पाया गया। पांच सैनिकों को सेवा से बर्खास्त किया गया, चार अन्य को भी सजा हुई। जापान के रक्षा मंत्रालय व जेजीएसडीएफ के प्रमुख को रीना गोनोई से लिखित माफी मांगनी पड़ी। इस साहस के लिए बीबीसी  ने गोनोई को दुनिया की सौ प्रभावशाली महिलाओं में गिना, तो अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अभी कुछ ही माह पहले उन्हें ‘इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज अवॉर्ड’ से सम्मानित किया है।
रीना गोनोई की जीत ने साबित किया है कि न्याय के लिए चुप्पी तोड़नी होगी। रघुवीर सहाय तो दशकों पहले कह गए हैं- कुछ होगा कुछ होगा अगर मैं बोलूंगा/ न टूटे न टूटे तिलिस्म सत्ता का/ मेरे अंदर एक कायर टूटेगा/ टूट/ मेरे मन टूट एक बार सही तरह/ अच्छी तरह टूट...मत झूठ-मूठ ऊब, मत रूठ...।
प्रस्तुति :  चंद्रकांत सिंह 

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