लाखों फलस्तीनी लड़कियों को राह दिखाती सारा

फलस्तीन और इजरायल की जंग आज भी जारी है। अक्तूबर 2023 से 19 जून, 2024 तक गाजा में लगभग 38,000 लोग अपनी जान गंवा चुके थे। उसके बाद भी बेगुनाहों की लाशों की गिनती रुकी नहीं है और किसी रोज एकमुश्त...

Pankaj Tomar सारा अल-सक्का, डॉक्टर, Sat, 6 July 2024 10:24 PM
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लाखों फलस्तीनी लड़कियों को राह दिखाती सारा

फलस्तीन और इजरायल की जंग आज भी जारी है। अक्तूबर 2023 से 19 जून, 2024 तक गाजा में लगभग 38,000 लोग अपनी जान गंवा चुके थे। उसके बाद भी बेगुनाहों की लाशों की गिनती रुकी नहीं है और किसी रोज एकमुश्त एक नया आंकड़ा हमें पढ़ने को मिलेगा। कितने बेबस होंगे वहां के बाशिंदे! जिन्हें सहूलियत मिली पलायन करने की, वे थोड़े-से लोग तो वहां से निकल गए, मगर जो कहीं जा नहीं सकते, वे मौत से दोहरी लड़ाई लड़ रहे हैं। एक तरफ इजरायली फौज की गोलियां हैं, तो दूसरी ओर भूख। मगर ऐसे मुश्किल हालात में भी कई फलस्तीनी अपने देशवासियों का हौसला बने हुए हैं। डॉक्टर सारा अल-सक्का उन्हीं में से एक हैं। 
सन् 1992 में गाजा पट्टी में पैदा हुईं सारा का बचपन से ही ख्वाब था कि वह एक काबिल डॉक्टर बनें। परिवार बेटी के साथ मजबूती से खड़ा हुआ, तो उसे ऊंची परवाज भरने के मौके भी मिले। अपने स्कूली नतीजों से सारा ने घरवालों को कभी निराश नहीं किया और फिर 2010 में वह दिन भी आया, जब उन्हें इस्लामिक यूनिवर्सिटी, गाजा के मेडिकल पाठ्यक्रम में दाखिला मिल गया। साल 2015 में वहां से मेडिसिन की पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद वह छोटे नर्सिंग होम से जुड़कर मरीजों की सेवा में जुट गईं। मगर सारा का सपना अपने पेशे में एक ऊंचा मुकाम हासिल करना था। लिहाजा मेडिकल पेशे से जुड़ी कार्यशालाओं में वह लगातार भाग लेती रहीं और वहां से उन्होंने खूब अनुभव बटोरे।   
इसके बाद सारा की नई मंजिल थी, लंदन की प्रतिष्ठित क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी। यहां से उन्होंने ‘लेप्रोस्कोपिक सर्जरी ऐंड सर्जिकल स्किल्स’ में पिछले ही साल अगस्त में एमएस की डिग्री हासिल की। यह सिर्फ उनके बचपन के सपने का साकार हो जाना नहीं था, फलस्तीन की तारीख में एक रोशन पन्ने का खुलना भी था, क्योंकि सारा गाजा की पहली महिला सर्जन बन गई थीं। वह चाहतीं, तो लंदन में ही अपने लिए बेहतर मौके तलाश कर सकती थीं या दुनिया के किसी भी पुरअमन इलाके में जाकर बस सकती थीं, मगर उन्होंने वतनपरस्ती की राह चुनी और वह गाजा लौट आईं।
लंदन में पढ़ाई करते हुए सारा ने कई सपने संजोए थे कि वह अपने इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए काफी मेहनत करेंगी और एक दिन अपना क्लिनिक खोलेंगी। क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी से एमएस की डिग्री ने गाजा के सबसे बडे़ स्वास्थ्य केंद्र अल-शिफा में सारा को आसानी से जगह दिला दी थी। वह काफी खुश थीं। मगर दो महीने बाद ही हमास की निर्मम हिमाकत पर बर्बर इजरायली प्रतिक्रिया ने सारा के सारे सपने जमींदोज कर दिए। अब तो उनकी सबसे बड़ी चिंता खुद बचने और दूसरों को बचाने की है।
वह 7 अक्तूबर का दिन था। सारा का उस दिन साप्ताहिक अवकाश था। वह अपनी सबसे छोटी बहन को स्कूल पहुंचाने के लिए तैयार हो रही थीं। तभी अचानक बमबारी की आवाजें सुनाई पड़ने लगीं। उन्होंने बहन को स्कूल जाने से रोक दिया। सारा ने फौरन मोबाइल फोन उठाया, तो हमास के हमले के बाद इजरायली बदले की खबर हर तरफ पसरी हुई मिली। वह यह सब कुछ ठीक से समझ पातीं, उसके पहले ही अस्पताल से फौरन ड्यूटी ज्वॉइन करने का आदेश आ गया। शिशु प्रजनन वार्ड को छोड़ दें, तो अस्पतालों के नजारे अमूमन खुशगवार नहीं होते, क्योंकि हर तरफ स्वस्थ होकर विदा होने वालों के मुकाबले पीड़ित मरीजों और चिंतित तीमारदारों की तादाद अधिक होती है। मगर उस रोज तो अल-शिफा अस्पताल की दीवारें भी कराह रही थीं। चारों ओर लाशों पर मातम और घायलों की चीख-पुकार से कोहराम मचा था। सारा फौरन टीम के साथ इलाज में जुट गईं।   
इजरायल एक लंबे मनसूबे के साथ हमलावर हुआ था, इसीलिए उसने फलस्तीनियों को उत्तरी गाजा खाली करके दक्षिणी इलाके में जाने का हुक्म सुना दिया। मरता क्या न करता? हजारों लोग मोहलत के उन 24 घंटों में जान बचाकर दक्षिणी गाजा की ओर भागने लगे। मगर सारा ने वहीं रुकने का फैसला किया। बमबारी की हर वारदात के बाद अल-शिफा में लाशों व घायलों का ढेर लग जाता। डॉक्टर-सेवादार उनके आगे कम पड़ जाते थे। इस धरती पर दूसरा भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर भी उस बेबसी में अपने ईश्वर से माफी मांगते हुए घायलों के बीच से उन्हें इलाज के लिए चुनते, जिनको बचाया जा सकता था। अगले 34 दिनों तक बगैर घर गए और बिना किसी विश्राम के डॉक्टरों की टीम जुटी रही। सारा अल-सक्का भी उनमें से एक थीं।
एक दिन सारा ऑपरेशन कक्ष में थीं, तभी प्रसव-पीड़ा से कराहती एक महिला उसमें दाखिल हुई। उस समय सारा को किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ की दरकार थी, क्योंकि वह डिलिवरी काफी जटिल थी, शिशु की गर्दन गर्भनाल में फंस गई थी। मगर सारा को किसी विशेषज्ञ की मदद नहीं मिली, क्योंकि बाहर बमबारी हो रही थी। आखिरकार अपने रब को याद करते हुए उन्होंने खुद ही ऑपरेशन करने का फैसला किया। यह उनकी जिंदगी का पहला ऐसा ऑपरेशन था। सारा बच्ची और मां, दोनों की जान बचाने में कामयाब रहीं। अभिभूत मां ने अपनी बच्ची का नाम रखा- सारा!
इजरायली टुकड़ी जब अल-शिफा को ही निशाना बनाने लगी, तब सारा के लिए वहां से निकलने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं बचा। मगर राफा (दक्षिण गाजा) अपने परिवार के पास जाते समय भी वह उन दोनों मां-बेटी को साथ ले जाना नहीं भूलीं, जिनकी उन्होंने जान बचाई थी। सारा अभी संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था के तहत सेवा कर रही हैं। ऐसी जांबाज बेटियां किसी भी देश और समाज की थाती से कम नहीं। ऐसे में, बीबीसी ने सारा को 2024 की सौ प्रभावशाली महिलाओं में शामिल किया है, तो वह वाकई इसकी हकदार हैं!
प्रस्तुति :  चंद्रकांत सिंह 

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