बामियान के पठान उन्हें कभी भुला नहीं पाएंगे
तारीख गवाह है, मर्दों ने औरतों पर अपना दबदबा कायम करने का अहमतरीन तरीका यही निकाला था कि जोखिम वाले तमाम कामों से उन्हें दूर कर दिया और उन्हें इस एहसास-ए-कमतरी का शिकार बनाए रखा कि यह काम उनके बूते...
तारीख गवाह है, मर्दों ने औरतों पर अपना दबदबा कायम करने का अहमतरीन तरीका यही निकाला था कि जोखिम वाले तमाम कामों से उन्हें दूर कर दिया और उन्हें इस एहसास-ए-कमतरी का शिकार बनाए रखा कि यह काम उनके बूते का नहीं। मगर वक्त ने करवट ली और औरतों ने हर ऐसे पेशे में मर्दों के शाना-ब-शाना अपनी काबिलियत साबित कर दी। उन्हें उनकी ‘जात’ की बिना पर किसी मौके से महरूम रखना मुमकिन नहीं रहा। डॉ एलेन जोन नेल्सन ने फौजी लिबास में इस बराबरी को तो सरंजाम दिया ही, उनकी जांबाजी व इंसानी खिदमत के लिए उनके मुल्क ने उन्हें साल 2023 के ‘हीरो ऑफ द ईयर’ के खिताब से नवाजा है।
करीब 40 साल पहले न्यूजीलैंड के एक बेहद छोटे से गांव ‘कोलीटन’ में पैदा हुईं एलेन की मां तब बच्चों को ड्रामा पढ़ाती थीं और पिता एक रियल एस्टेट एजेंट थे। हालांकि, बाद में उनके पिता ने सियासत का दामन थामा और इन दिनों वह अपने जिले के उप-मेयर हैं। बहरहाल, एलेन और उनके छोटे भाई इवेन का बचपन हर तरह की आसानियों के बीच गुजरा। जब वह नौ साल की थीं, तभी एक स्कूली कार्यक्रम के तहत उन्हें फौज का भर्ती-अभियान देखने को मिला। एलेन उससे इतनी प्रभावित हुईं कि उसी वक्त उन्होंने सेना में काम करने का सपना संजो लिया और फिर वह उस सपने से कभी नहीं डिगीं।
आखिरकार वह दिन भी आया, जब बतौर सैन्य ऑफिसर प्रशिक्षण के लिए एलेन को ‘ऑस्ट्रेलियन डिफेंस फोर्स एकेडमी’ ले जाया गया। ट्रेनिंग हासिल करने के बाद 2003 में उन्हें न्यूजीलैंड सेना के इंजीनियरिंग विभाग में नियुक्ति मिली। बचपन से देखा गया ख्वाब पूरा हुआ था। एलेन बहुत खुश थीं। उन्हें सेना की निर्माण परियोजनाओं की जिम्मेदारी मिली, जिसे उन्होंने बखूबी अंजाम दिया। एलेन की पेशेवर काबिलियत पर सेना के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान गया, तो उन्हें देश के बाहर की निर्माण परियोजनाओं की जिम्मेदारी सौंपी गई। अपने दस वर्ष के सैन्य कार्यकाल में से सात साल उन्होंने न्यूजीलैंड के बाहर ही बिताए।
इनमें अफगानिस्तान के बामियान जैसे जोखिम भरे इलाके की परियोजनाएं शामिल हैं। जाहिर है, किसी भी निर्माण कार्य में स्थानीय लोगों की काफी जरूरत पड़ती है। मगर तालिबानी खौफ के मारे बामियान में कोई आगे आने को तैयार न था। तब एलेन अपनी टीम के साथ स्थानीय लोगों से मिलीं और उन्हें सहयोग करने के लिए कायल किया। इस तरह, उन्हें वहां बिजलीघर, स्कूल आदि के निर्माण कार्यों को पूरा करने में सफलता मिली। एलेन अपने रवैये से अफगानों के दिल में गहरे उतर आईं। न वह पठानों की दिलावरी भूल सकीं और न ही अफगान उनकी रहमदिली भुला सके।
सैन्य सेवाओं में रहते हुए ही एलेन ने एमबीए कर लिया था और अब वह जिंदगी की एक नई भूमिका के बारे में सोचने लगी थीं। लिहाजा, साल 2013 में सेना से ‘रिटायरमेंट’ लेकर वह अपने गांव चली आईं। एक फौजी जिंदगी से कॉरपोरेट जीवन के उस संक्रमण काल में पुराने दोस्त बहुत काम आए। कुछ समय बाद एलेन के भीतर का विद्यार्थी उन्हें फिर यूनिवर्सिटी ले आया, जहां अपनी पीएचडी के विषय के रूप में उन्होंने सेना में महिलाओं की स्थिति को चुना। वह जानती थीं कि एक महिला फौजी को कैसी-कैसी दुश्वारियां पेश आती हैं। एलेन ने अपने शोध-अध्ययन में उन मुश्किलों के समाधान तलाशे। इसके बाद उन्होंने न्यूजीलैंड के सेना प्रमुख से संपर्क साधा और एलेन को अपनी सेना में लैंगिक समस्याओं को दुरुस्त करने का मौका मिल गया।
इस अनुभव ने एलेन को अन्य कार्यक्षेत्रों की सोच बदलने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने ‘वर्कस्कूलऑवर्स’ मुहिम की शुरुआत की। यह मुहिम जहां नियोक्ताओं को काम की अवधि के बजाय परिणाम पर ध्यान केंद्रित करने को प्रेरित करती है, तो वहीं कामकाजी माता-पिता को इस अपराध-बोध से आजाद करती है कि अपने करियर व काम के कारण वे अपनी संतान की उपेक्षा कर रहे हैं। यह न सिर्फ सामाजिक रूप से, बल्कि व्यावसायिक रूप से भी एक कारगर मुहिम है, जो हमें भविष्य के ऐसे समाज की डरावनी कल्पना से बचाती है, जिसमें नौकरीशुदा दंपति बच्चे पैदा करने से कतराने लगें और बच्चों वाले माता-पिता को नौकरी मिलनी मुश्किल हो जाए। एलेन के इस दूरदर्शितापूर्ण अभियान ने न्यूजीलैंड के कई नियोक्ताओं को प्रभावित किया है।
यही नहीं, इंसानियत की सेवा की एक बेहतरीन मिसाल कायम करते हुए एलेन ने सैकड़ों अफगानों की जान बचाई और उन्हें न्यूजीलैंड में पनाह दिलाई है। दरअसल, 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के साथ ही बामियान के वे लोग भी आततायी सत्ता के निशाने पर आ गए, जिन्होंने एलेन की टीम का कभी साथ दिया था। उनमें से करीब 40 लोगों ने एलेन से मदद की कातर गुहार लगाई कि किसी तरह उन्हें न्यूजीलैंड में शरण दिला दें, वरना वे मारे जाएंगे।
काम आसान न था, क्योंकि एक तरफ महामारी के कारण नियम-कायदे सख्त थे और फिर बामियान में न्यूजीलैंड का कोई प्रतिनिधि भी मौजूद न था। मगर एलेन अपने पुराने सहकर्मियों को यूं मंझधार में नहीं छोड़ सकती थीं। करीब एक साल तक अपनी टीम के साथ वह दिन-रात जुटी रहीं। आपातकालीन वीजा आवेदन से लेकर सरकार को राजी करने, मीडिया में इस मामले को उठाने और न्यूजीलैंड के उदार लोगों से उन बदनसीबों के लिए लाखों डॉलर की इमदाद जुटाने में एलेन ने कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिरकार विदेश मंत्रालय ने एक टीम गठित की और एलेन की सूची के सभी 563 लोग आज न्यूजीलैंड में सुरक्षित व सुकून भरी जिंदगी जी रहे हैं! ऐसी नायिका को भला कौन सलाम नहीं करेगा?
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।