बच्चों को कैसी विरासत सौंप रहे, आप देखिए
संपन्न परिवारों में पले-बढे़ किशोरों-नौजवानों के बारे में हम अक्सर यही पढ़ते-सुनते हैं कि किसी ने मदहोशी के आलम में फुटपाथ पर सोए गरीबों के ऊपर अपनी गाड़ी दौड़ा डाली, तो दौलत के मद में डूबे किसी युवा ...
संपन्न परिवारों में पले-बढे़ किशोरों-नौजवानों के बारे में हम अक्सर यही पढ़ते-सुनते हैं कि किसी ने मदहोशी के आलम में फुटपाथ पर सोए गरीबों के ऊपर अपनी गाड़ी दौड़ा डाली, तो दौलत के मद में डूबे किसी युवा के हाथ सरकारी मुलाजिम के गिरेबान तक पहुंच गए। इस तरह की खबरों ने धनाढ्य युवाओं की एक ऐसी छवि बना दी है, मानो वे सभी निर्मम, दुर्गुणों की खान हैं। समाज और मीडिया ने इनके लिए ‘बिगड़े रईसजादे’ या ‘बिगडै़ल अमीरजादे’ जैसे जुमले गढ़ लिए हैं। मगर नहीं! यह सच नहीं है। जस कालरा जैसे नौजवान इसके बड़े प्रमाण हैं। अमीर घरों के युवा भी करुण, सेवाभावी होते हैं, बल्कि पूरी मानवता के प्रेरणा-पंुज बन सकते हैं।
जस के पिता रवि कालरा तो इतने साधारण परिवार में पैदा हुए थे कि कभी-कभी उनके पास बस भाड़ा देने तक के पैसे नहीं होते थे। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक रवि शिक्षा के जरिये जब खुद को साबित नहीं कर पाए, तो उन्होंने ताइक्वांडो का प्रशिक्षण प्राप्त किया और उसकी ट्रेनिंग देने को अपना करियर बना लिया। वह पुलिस बटालियन और सैन्य बलों को मार्शल आर्ट सिखाया करते थे। फिर ऐसा संयोग बना कि बतौर गुप्तचर उन्हें दुनिया के विभिन्न देशों में काम करने का मौका मिला और एक दिन अमेरिकी फौज ने उनके साथ एक ऐसा अनुबंध किया, जिसके तहत उन्हें युद्धग्रस्त देशों में अमेरिकी फौज के साथ काम करने के लिए लोगों की भर्तियां करनी थीं। रवि ज्यादातर नेपाल की रॉयल आर्मी से स्वैच्छिक तौर पर सेवानिवृत्त होने वाले फौजियों की इसमें भर्तियां करने लगे। इस काम से उन्होंने काफी पैसे कमाए। दौलत इतनी बरसी कि वह जूते खरीदने मिलान (इटली), सिंगापुर, हांगकांग तक चले जाते थे।
दिसंबर 2007 में रवि कालरा किसी काम से दिल्ली में कहीं जा रहे थे। उनकी महंगी कार एक लाल बत्ती पर रुकी। अचानक उनकी नजर एक दृश्य पर अटक गई। उस दृश्य में उन्होंने कचरे के ढेर से एक छोटे बच्चे और कुत्ते को साथ-साथ कुछ उठाकर खाते देखा। गरीबी और अमीरी के दो धु्रवों को जी चुके रवि को झटका लगा- मेरी हैसियत क्या है? ऊपर जब जाऊंगा, तो क्या जवाब होगा मेरे पास? ड्राइवर को गाड़ी किनारे लगाने को बोल वह उस यतीम बच्चे के पास पहुंचे, उसकी फौरी मदद की और वहां से वह सीधे श्मशान घाट चले गए, चिता भस्म का तिलक लगाया और उसी दिन से अपने लिए जीना छोड़ दिया। चंद महीनों में ही ‘द अर्थ सेवियर्स फाउंडेशन’ वजूद में आ गया था।
इतने संपन्न परिवार की स्नेहिल छांव में पले-बढे़ जस कालरा की जिंदगी में पिता रवि कालरा का वह कायांतरण बहुत सुखद मोड़ लेकर नहीं आया, क्योंकि मां को यह बदलाव मंजूर न था। वह जस और उनकी बहन जिया को लेकर घर से निकल गई थीं। जस का ननिहाल पक्ष भी समृद्ध कारोबारी घराना है। जाहिर है, बिछोह के उन दिनों में भी जस और उनकी बहन की अच्छी तालीम जारी रही। अच्छी बात यह भी हुई कि जस और जिया जब बडे़ हुए, तो पिता से मिलने आने लगे, बल्कि उनके सेवा कार्यों में भी उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई। जस जब भी पिता के साथ आश्रम जाते, तो वहां रह रहे सैकड़ों बीमार, बेसहारा बुजुर्गों-महिलाओं-बच्चों की आंखों में उनके लिए प्रेम व कृतज्ञता देखकर अभिभूत हो उठते। उनके मन में उन्हीं दिनों यह बात कहीं गहरे पैठ गई कि आगे चलकर वह भी पिता के सेवा मार्ग को अपनाएंगे।
मेलबर्न यूनिवर्सिटी से ‘क्रिमिनोलॉजी ऐंड साइकोलॉजी’ में स्नातक करने के बाद जब जस गुड़गांव लौटे, तो पिता ने एक दिन उनका मन टटोला। जस ने तत्काल आश्रम-सेवा से जुड़ने के बारे में सोचा नहीं था। 21 साल के युवा के आगे सारा संसार खुला होता है। फिर जस तो मेलबर्न में एक अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल लीग के सेंटर प्लेयर रह चुके थे। उन्होंने पिता से कहा, ‘पापा, मेरी इतनी एजुकेशन हो चुकी है, मेरा बिजनेस एक्सपोजर भी इतना हो चुका है कि मैं सालाना 70-80 लाख कमा लूंगा। आप मुझसे शर्त लगा लो।’ पिता खुश हुए और बोले, ‘बेटे, यह तो बहुत अच्छी बात है, पर एक बात बताओ, ऊपर तो एक दिन सबको जाना है। जब आप जाओगे, तब भगवान जी को अपना बैंक स्टेटमेंट दिखाओगे या अपने कर्मों का हिसाब दोगे?’ पिता की वह बात बेटे के भीतर उतर गई और अगस्त 2021 में नौजवान जस जिंदगी की सारी रंगीनियों का न्योता ठुकरा सेवा की दुनिया में उतर गए।
अपने अंतरराष्ट्रीय पेशेवर उद्यम को संभालने के साथ-साथ जस ने ‘द अर्थ सेवियर्स फाउंडेशन’ के उपाध्यक्ष की हैसियत से गुड़गांव के बंधवाड़ी व मंडावर गांव स्थित आश्रमों में सेवा का काम शुरू कर दिया। पिता के साथ दीन-दुखियों की तिमारदारी करके उन्हें काफी सुकून मिलता। मगर अंदाजा न था कि पिता इतनी जल्दी अपनी सारी जिम्मेदारी उन्हें सौंप देंगे। दिसंबर 2021 की एक सुबह महज 53 साल की उम्र में वह इस दुनिया को अलविदा कह गए। जस के पास शोक मनाने का भी अवकाश न था, क्योंकि अगले दिन से ही संस्था के प्रेसिडेंट की हैसियत से सैकड़ों लोगों की सारी जिम्मेदारी उनकी थी। जस ने पिता की अपेक्षाओं को कभी मायूस नहीं किया। उन्हें निराश्रितों के घाव साफ करने या लावारिश लाशों की अंतिम क्रिया करने में कभी कोई हिचक नहीं हुई।
पिछले ही महीने उम्र के 25वें साल में कदम रखने वाले जस कालरा ने अब तक करीब 3,000 शवों को सद्गति दी है, 1,500 परित्यक्त बुजुर्गों का उद्धार किया है। इनमें से कई को उनके परिवार ने दोबारा अपना लिया। जस के आश्रमों में लगभग 1,200 लावारिस बच्चे, परित्यक्त बुजुर्ग व मानसिक रूप से अक्षम लोग रह रहे हैं, जिनके हर सुख-दुख का वह ख्याल रखते हैं। ऐसे सहृदय, सेवाभावी नौजवान के लिए भला कौन दुआ नहीं करेगा?
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह
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