आपके पास नजर हो, तो गधे भी किसी नेमत से कम नहीं
कुदरत ने इस धरती पर जितने भी जीव पैदा किए हैं, उसने उनमें उनकी उपयोगिता भी सहेजी है। यह हम इंसानों की कमी है, जो उनकी अहमियत को देख नहीं पाए और किसी जीव को पूजने लगे, किसी से खौफजदा हुए, तो कोई...
कुदरत ने इस धरती पर जितने भी जीव पैदा किए हैं, उसने उनमें उनकी उपयोगिता भी सहेजी है। यह हम इंसानों की कमी है, जो उनकी अहमियत को देख नहीं पाए और किसी जीव को पूजने लगे, किसी से खौफजदा हुए, तो कोई हमारी हिकारत का निशाना बन गया। कम से कम उत्तर भारत में गधों को इज्जत की नजर से तो नहीं ही देखा गया। बावजूद इसके कि उनसे खूब काम लिया जाता रहा, उनके लिए उपहास के मुहावरे ही गढ़े गए। मगर गुजरात के धीरेन सोलंकी के लिए गधी किसी नेमत से कम नहीं। इस जीव ने महज 22 साल की उम्र में ही उन्हें करोड़पति बना दिया है। धीरेन की इस कामयाबी ने साबित किया है कि यदि आपके पास नया आइडिया हो, धैर्य हो और आगे बढ़ने का जज्बा हो, तो गधी भी आपको मालामाल कर सकती हैं।
गुजरात के पाटन जिले के मनंुद गांव में पैदा हुए धीरेन सोलंकी का सपना किसी निम्न मध्यवर्गीय परिवार से कुछ खास अलग नहीं था। पिता अरविंदभाई सोलंकी चाहते थे कि बेटा पढ़-लिखकर किसी सरकारी स्कूल में मास्टर लग जाए, तो परिवार की कुछ आर्थिक मदद हो जाएगी। धीरेन अपने परिवार और पिता की अपेक्षाएं समझ रहे थे। उन्होंने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखी। विज्ञान संकाय से स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने प्राइमरी शिक्षक प्रमाणपत्र (पीटीसी), केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटेट) और केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस), सभी परीक्षाएं पास कीं, मगर कहीं कोई स्थायी नियुक्ति नहीं मिली। छोटी-मोटी दूसरी नौकरियां कीं, मगर उनसे परिवार की कुछ खास माली मदद नहीं हो रही थी।
साल 2020 में पड़ोस के प्रदेशों में आयोजित शिक्षक बहाली परीक्षाओं में भी धीरेन बैठे, मगर हर जगह एक लंबा इंतजार था। करीब छह महीने तक परिणामों का इंतजार करने के बाद उनकी निराशा गहराने लगी थी। बेटे की चिंता पिता को भी परेशान कर रही थी। जाहिर है, कारोबारी बनने का गुजराती जज्बा जाग उठा। धीरेन के पिता ने कहीं पढ़ा कि केरल-कर्नाटक में गधी-पालन कारोबार भी होता है। देश में गधी के दूध की मांग या उसके उपयोग के बारे में उतनी जानकारी नहीं है, मगर मलेशिया, चीन और तुर्की जैसे मुल्कों में इसकी भारी मांग है। अरविंदभाई सोलंकी ने यह बात बेटे से कही।
धीरेन इस आइडिया से चौंक गए। उन्होंने शिक्षक बनने का सपना छोड़ ऑनलाइन इसके बारे में जानकारी हासिल करनी शुरू कर दी। अब तक तो उन्हें यह भी पता नहीं था कि इस दूध का क्या-क्या उपयोग होता है। यहां भैंस-गाय के दूध के साठ रुपये लीटर होने पर इतना हंगामा हो उठता है, तो गधी के एक लीटर दूध की कीमत हजारों रुपये जानकर वह हैरान रह गए। दरअसल, इसके दूध में रोग प्रतिरोधी गुण काफी होता है, लिहाजा कई दवाओं में इसका उपयोग होता है। गाय के दूध से एलर्जी वाले नवजातों के लिए यह किसी रामबाण से कम नहीं होता। फिर कई तरह के सौंदर्य उत्पादों के लिए भी इसकी भारी मांग होती है।
धीरेन के पास ‘डंकी फॉर्म’ शुरू करने का कोई व्यावहारिक प्रशिक्षण नहीं था। सिर्फ पिता के हौसले और आत्मविश्वास की बदौलत उन्होंने साल 2022 में अपना डंकी फॉर्म शुरू करने का जोखिम उठा लिया। इसके लिए धीरेन ने करीब 40 लाख रुपये का कर्ज उठाया था। इस रकम से उन्होंने 20 गधी खरीदी और एक तीस बाई चालीस फीट का ‘शेड’ तैयार करवाया, जहां इन सभी पशुओं को रखा जा सके। धीरेन ने सोचा था कि आज गधी खरीदी और कल से उसके दूध की ब्रिकी शुरू हो जाएगी। मगर, गुजरात में इसकी कोई मांग कहां होनी थी और विदेश इसे पाउडर की शक्ल में ही भेजा जा सकता था।
पहले साल उन्हें काफी घाटा हुआ, क्योंकि दूध को सुरक्षित रखने या उसे पाउडर में बदलने की तकनीक उनके पास नहीं थी। इस काम को करने वाली कंपनियों से करार करने और तालमेल बिठाने में करीब साल भर लग ही गए। उन्हें पहला ऑर्डर पचास किलोग्राम पाउडर का मिला। अमूमन एक किलो पाउडर तैयार करने में 16-17 लीटर दूध लगता है। संयोग से उस समय तक उन्होंने 200 किलोग्राम पाउडर का भंडारण कर रखा था। 63,000 रुपये प्रति किलो के हिसाब से उन्हें उसका भुगतान मिला। काम चल निकला। अब पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं थी। ई-कॉमर्स ने उन्हें ग्राहकों का एक विशाल फलक मुहैया करा दिया था।
आज उनके पास हलारी नस्ल की करीब 40 गधी हैं, जिनके दूध से धीरेन तीन लाख रुपये तक महीने की कमाई कर रहे हैं। उन्होंने मवेशियों की देखभाल के लिए तीन-चार लोग रख रखे हैं और अपने पिता के साथ खुद भी पूरी तरह जुटे रहते हैं। धीरेन की यह यात्रा उन हजारों-लाखों नौजवानों को रास्ता दिखा सकती है, जो अपना बेशकीमती वक्त तंत्र और शासन को कोसने में गर्क कर रहे हैं। धीरेन अगर सोचते रहते कि गधी के दूध का कारोबार करने पर समाज उनकी खिल्ली उड़ाएगा, तो वह आज जिस जगह हैं, वहां कभी नहीं पहुंच पाते।
स्व-रोजगार को अंतिम विकल्प के तौर पर देखने का नजरिया बदलने की जरूरत है, क्योंकि इससे सिर्फ अपनी भलाई नहीं होती, बल्कि आप उसके विस्तार के साथ समाज और देश का भी भला करते हैं। बतौर शिक्षक बच्चों को शिक्षित करने का सुख धीरेन को अवश्य मिलता, मगर वह चार लोगों को रोजगार नहीं दे सकते थे। आज वह एक शिक्षक की औसत तनख्वाह से कई गुणा अधिक कमा रहे हैं। धीरेन सोलंकी की तरह जो भी अनूठी योजना के साथ आगे कदम बढ़ाएगा, कामयाबी उसे ही मिलेगी।
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह
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