Hindi Newsओपिनियन न्यूज़hindustan opinion column the trumpet of change sounded in Bangladesh 6 august 2024

बांग्लादेश में बजा बदलाव का बिगुल

बांग्लादेश पर फिर सबकी नजर जा टिकी है। बीते दिनों से वहां जो आंदोलन चल रहा है, उसमें सामाजिक और आर्थिक मसले शामिल हैं। आंदोलनकारियों में ज्यादातर विश्वविद्यालयों के छात्र हैं, उनकी यह मांग थी कि...

Prashant Singh एजेंसीलाइव हिन्दुस्तान टीम, delhiTue, 6 Aug 2024 05:41 PM
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बांग्लादेश पर फिर सबकी नजर जा टिकी है। बीते दिनों से वहां जो आंदोलन चल रहा है, उसमें सामाजिक और आर्थिक मसले शामिल हैं। आंदोलनकारियों में ज्यादातर विश्वविद्यालयों के छात्र हैं, उनकी यह मांग थी कि मुक्तियोद्धाओं को जो 30 प्रतिशत आरक्षण मिलता है, उसे खत्म किया जाए, उससे बेरोजगारी बढ़ रही है, युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। ध्यान रहे, साल 1972 में मुक्तियोद्धाओं को आरक्षण दिया गया था, उसके बाद मुक्तियोद्धाओं के बच्चों को आरक्षण दिया गया और अब यह व्यवस्था कर दी गई थी कि मुक्तियोद्धाओं के पोते-पोतियों को भी आरक्षण दिया जाएगा। इसका वहां खूब विरोध हो रहा था। युवा सड़कों पर उतर आए थे। वैसे इस विरोध के भड़कने की एक वजह सियासी भी थी। चूंकि मुक्तियोद्धा ज्यादातर आवामी लीग समर्थक हैं, तो राजनीतिक विरोधियों द्वारा यह बार-बार कहा जाता था कि ये आवामी लीग के वोट बैंक हैं, इसलिए अवामी लीग उनको आरक्षण दे रही है। साल 2018 में भी जब विरोध हुआ था, तब अवामी लीग ने आरक्षण खत्म कर दिया था, पर अभी जून 2024 में अदालत से एक फैसला आया और आरक्षण को फिर लागू कर दिया गया। ऐसे में, छात्र फिर से भड़क उठे। 

हालांकि, अवामी लीग की सरकार ने यह कहा था कि हम अदालत में जाएंगे, इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे और इसे खत्म कराने की कोशिश करेंगे। यह बात कहनी ही चाहिए कि सरकार ने इस पूरे मामले को गलत ढंग से संभाला। पुलिस ने हिंसा के माध्यम से आंदोलन को दबाने की कोशिश की। दूसरी गलती यह हुई कि शेख हसीना ने एक गैर-जिम्मेदाराना बयान दे दिया कि जो प्रदर्शनकारी हैं, वे रजाकार हैं। ध्यान रहे, रजाकार वे लोग थे, जो बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समय पाकिस्तानी सेना के साथ थे। इसके बाद तो विरोध कर रहे छात्र और भड़क गए। छात्रों को यह लगा कि हम शांति की बात करते हैं, पर हमें अपराधी करार दिया गया। इसके बाद ढाका में हिंसा बढ़ती गई और दो सौ से ज्यादा लोग मारे गए। सरकार ने आरक्षण को घटाकर पांच प्रतिशत तक कर दिया था, इसके बावजूद प्रदर्शनकारी संतुष्ट नहीं थे। छात्रों ने शेख हसीना से मांग कर दी कि वह छात्रों की हत्या के लिए माफी मांगें। मुक्तियोद्धाओं के नाम पर दिए जा रहे आरक्षण को सांविधानिक रूप से पूरी तरह खत्म करने के उपाय करें। चूंकि बांग्लादेश की सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया, इसलिए छात्रों का आक्रोश बढ़ा और बाहर से भी कुछ ताकतों ने उनका समर्थन किया। 

अब दुनिया देख रही है, आंदोलन बढ़ते-बढ़ते ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है, जहां प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से हाथ धोना पड़ा है। अब सेना प्रमुख ने एलान किया है कि अंतरिम सरकार बनाएंगे। 

वैसे, बांग्लादेश में यह विरोध अचानक प्रकट नहीं हुआ है, शेख हसीना ने कुछ और भी गड़बड़ियां की थीं या कुछ बड़ी कमियों पर लगाम लगाने में नाकाम रही थीं। अव्वल तो लोकतंत्र को इन्होंने प्रभावित किया था। पिछले दो चुनावों से लोगों की भागीदारी बहुत कम थी। साल 2024 के चुनाव में बमुश्किल 40 प्रतिशत लोगों ने हिस्सा लिया, इसमें भी विपक्षियों ने आरोप लगाया था कि आंकड़ों को मैनेज किया गया। 

इसके अलावा स्थानीय निकायों के चुनाव में भी गड़बड़ियों को अंजाम दिया गया। लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव होने के बजाय परिवारवाद का बोलबाला रहा। निकायों में ज्यादातर पद रेवड़ियों की तरह रिश्तेदारों में बंटने लगे थे। बांग्लादेश में भ्रष्टाचार भी बढ़ गया था। भाई-भतीजावाद बढ़ने की शिकायत आम लोग करने लगे थे। यह बात सरकार के पक्ष में नहीं थी। सरकार कहीं न कहीं निचले स्तर पर लोकतांत्रिक राष्ट्र की भावना को कायम नहीं रख पा रही थी। इसके अलावा, भ्रष्टाचार भी बढ़ गया था। रोजगार या शिक्षण संस्थानों में भ्रष्टाचार बढ़ गया था। इन तमाम समस्याओं ने मिलकर बांग्लादेश में एक बड़ी घटना को अंजाम दे दिया। तोड़फोड़ और हिंसा बढ़ने लगी, नौबत ऐसी आ गई कि प्रधानमंत्री को हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। प्रधानमंत्री आवास खाली करके जाना पड़ा। 

यह ध्यान देने की बात है कि मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के समर्थक भी लगातार नाराज चल रहे थे। वैसे, बीएनपी के नेता कमोबेश अपनी विश्वसनीयता गंवा चुके थे। साल 2014 के चुनाव का भी इसने बहिष्कार किया था और साल 2024 के चुनाव का भी। चुनावों के बहिष्कार की वजह से निचले स्तर पर बीएनपी का समर्थन घट गया था। अब इसमें कोई दोराय नहीं कि छात्रों में फैली नाराजगी का फायदा बीएनपी के नेताओं ने भी उठाया है। ऐसे हालात पैदा हो गए कि हसीना सरकार का नियंत्रण कमजोर पड़ गया। 

यहां श्रीलंका की भी याद आ रही है। जिस प्रकार से राजधानी कोलंबो में लोगों ने सड़क पर निकलकर राजपक्षे की सरकार को पलट दिया था, ठीक उसी प्रकार के दृश्य ढाका में भी दिखे हैं और राजपक्षे की तरह शेख हसीना को भी देश छोड़ जाना पड़ा है। 

बहरहाल, अब बांग्लादेश में क्या होगा? सेना निष्पक्ष अंतरिम सरकार की बात कर रही है, क्या उसमें सभी पार्टियों के सदस्य शामिल होंगे? सरकार चलाने की जिम्मेदारी नेताओं को दी जाएगी या जन-सेवकों को?  

खैर, अब बांग्लादेश में सेना चाहती है कि जनता सहयोग करे,तो देश में माहौल को सुधारा जा सके। अब पहला सवाल तो यह पूछा जा रहा है कि बांग्लादेश में जो विकास परियोजनाएं चल रही हैं, उनका क्या होगा? ऐसा लगता है कि वहां कोई भी सरकार यह नहीं चाहेगी कि देश की तरक्की रुके। भारत, चीन और जापान के साथ मिलकर बांग्लादेश अपनी विकास परियोजनाएं चला रहा है। 

सवाल यह भी उठता है कि भारत को अभी क्या करना चाहिए? वैसे जिस नेता या समूह को पश्चिमी देशों का समर्थन होगा, उसके पक्ष में भारत खड़ा हो जाएगा। भारत चाहता है कि बांग्लादेश में शांति रहे, स्थिर सरकार रहे, ताकि तेज विकास हो। भारत को किसी पार्टी विशेष के साथ संबंध न रखते हुए बांग्लादेश के विकास के पक्ष में खड़े रहना चाहिए। ध्यान रहे, पहले भी अंतरिम सरकार के साथ भारत के संबंध अच्छे रहे हैं। जो भी सरकार बनेगी, वह भारत के साथ अच्छे संबंध ही रखना चाहेगी। 

भारत यही उम्मीद करेगा कि बांग्लादेश में जल्दी शांति और स्थिरता स्थापित हो। बेशक, वहां आम जनता के अनुकूल समाधान का इंतजार रहेगा।  

    (ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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