प्रतिभाओं की राह न रोके अमेरिका
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया की चिंता बहुत बढ़ा दी है। वह अवैध अप्रवासियों के साथ आतंकियों जैसा व्यवहार करेंगे, उन्हें खतरनाक जेलों में डाल देंगे। अमेरिका में कई जगह सीमा पर सेना तैनात की गई है, ताकि घुसपैठ रुक जाए…
फ्रेंक एफ इस्लाम, अमेरिकी उद्यमी व समाजसेवी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया की चिंता बहुत बढ़ा दी है। वह अवैध अप्रवासियों के साथ आतंकियों जैसा व्यवहार करेंगे, उन्हें खतरनाक जेलों में डाल देंगे। अमेरिका में कई जगह सीमा पर सेना तैनात की गई है, ताकि घुसपैठ रुक जाए। घुसपैठियों के साथ बुरे व्यवहार की तैयारी है। इतना ही नहीं, ज्यादा बड़ी चिंता यह है कि वैध रूप से प्रतिभाशाली युवाओं के अमेरिका आने के रास्तों को काफी हद तक बंद करने की तैयारी है।
एच-1बी वीजा पिछले चार दशक में अमेरिका के तकनीकी उद्योग के विकास को आगे बढ़ाने में बहुत मददगार रहा है। इन वर्षों में लाखों इंजीनियर व विशेषज्ञ अमेरिका आए हैं, उन्होंने यहां उद्योग के विकास में बहुत योगदान दिया है और खुद भी लाभान्वित हुए हैं। अमेरिका को सफलता के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ाने में अनेक ऐसे लोगों का हाथ है, जिन्हें एच-1बी वीजा का लाभ मिला है। आज दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क को भी यह लाभ मिला था। क्रमश: माइक्रोसॉफ्ट और अल्फाबेट (गूगल की होल्डिंग कंपनी) के सीईओ सत्य नडेला और सुंदर पिचाई भी यह सुविधा पाने वालों में शामिल हैं। जाहिर है, इन तीनों हस्तियों अलावा भी लाखों प्रतिभाएं हैं, जिन्होंने अमेरिका की संपन्नता में अपना भरपूर योगदान दिया है।
नवंबर के राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद से एच-1बी के भविष्य पर एक गहन बहस छिड़ गई है। यह बहस दिसंबर के अंत में मस्क और विवेक रामास्वामी द्वारा सोशल मीडिया पोस्टिंग से ही शुरू हो गई थी, जिन्हें ट्रंप ने सरकारी दक्षता सलाहकार आयोग विभाग के सह-प्रमुख के रूप में नामित किया था। हालांकि, यह नियुक्ति अटक गई। अनेक पेशेवर यही चाहते हैं कि अमेरिका अपने यहां प्रतिभाओं का स्वागत करता रहे, ताकि उसके विकास की रफ्तार बनी रहे।
ट्रंप के एमएजीए (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) के अभियान का भी कड़ा विरोध हो रहा है। हालांकि, टं्रप इसी वादे के साथ दूसरी बार भी चुनाव जीते। ट्रंप समर्थक समूह ने सख्त आप्रवासन नियंत्रण की दृढ़ता से वकालत की है। यह तर्क दिया है कि यह उदार वीजा कार्यक्रम अमेरिकियों को नौकरी से वंचित करता है, साथ ही, उनके वेतन को भी घटाता है।
20 जनवरी को ट्रंप के सत्ता संभालने के साथ ही बदलाव का दौर शुरू हो गया है। यहां यह एक परंपरा रही है कि अमेरिकी जमीन पर पैदा होने वाले किसी भी बच्चे को स्वत: ही अमेरिकी नागरिकता मिल जाती है, पर ट्रंप के नेतृत्व में बदलाव हुआ है। आप्रवासन जैसे विषयों पर संघर्ष करने वाले वकीलों ने चेतावनी दी है कि यह कार्यकारी आदेश मोटे तौर पर अमेरिका में पैदा हुए उन बच्चों पर लागू हो सकता है, जिनके माता-पिता अमेरिकी नागरिक या ग्रीन कार्ड-धारी नहीं हैं। यह आदेश 19 फरवरी को प्रभावी होने वाला है। अगर अदालत इस आदेश पर रोक न लगाए, तो क्या होगा? एच-1बी और एल-1 वीजा धारकों के बीच व्यापक चिंता फैल गई है।
लोगों को अभी भी उम्मीद है कि ट्रंप अपना रुख लचीला कर लेंगे और टं्रप ने ऐसे कुछ संकेत दिए भी हैं, पर उनकी कथनी-करनी में फर्क है। वैसे, गौर करने की बात है कि राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने एच-1बी आवेदनों की जांच की थी और कई आवेदनों को खारिज किया था।
अमेरिका में एक और बदलाव हुआ है, 20 जनवरी को अमेरिकी दक्षता सलाहकार आयोग विभाग का काम संभालने से पहले ही विवेक रामास्वामी की छुट्टी कर दी गई है। यह बताने की कोशिश हो रही है कि रामास्वामी ओहियो के गवर्नर पद के लिए चुनाव लड़ने जा रहे हैं और इसीलिए वह राष्ट्रीय जिम्मेदारी से पीछे हट गए हैं। हालांकि, सच यही है कि रामास्वामी उदार वीजा या एच-1बी के समर्थक रहे हैं और इसी वजह से उनके नाम की घोषणा ट्रंप समर्थकों को बहुत चुभती रही है।
रामास्वामी को जिम्मेदारी न मिलने के पीछे जो भी कारण हो, एच-1बी पर चल रही बहस भारतीय अमेरिकी समुदाय और भारतीय तकनीकी क्षेत्र के लिए विशेष महत्व रखती है। वर्तमान में 70 प्रतिशत से अधिक एच-1बी वीजा भारतीय नागरिकों को दिए जाते हैं, जिससे वे इस सुविधा के सबसे बड़े लाभार्थी बन जाते हैं। वित्तीय वर्ष 2023 की बात करें, तो 3,86,318 स्वीकृत एच-1बी याचिकाओं में 2,79,386 यानी लगभग 72.3 प्रतिशत भारतीय नागरिकों को जारी किए गए थे। बीते वित्त वर्ष में 4,41,502 वीजा स्वीकृत किए गए थे और वीजा पाने वालों में 3,20,791 यानी 72.6 प्रतिशत भारतीय नागरिक थे।
कई भारतीय अमेरिकियों के लिए एच-1बी वीजा एक आर्थिक जीवन रेखा, समृद्धि का मार्ग और पराए देश में ताकत बढ़ाने का साधन रहा है। गौर कीजिए, इस देश में पिछले 25 वर्षों में भारतीय अमेरिकी आबादी तीन गुना से ज्यादा हो गई है। 16 लाख से बढ़कर 50 लाख पार कर गई है। इससे अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों का सियासी प्रतिनिधित्व भी बढ़ा है। केंद्रीय स्तर पर चुने गए प्रतिनिधियों की संख्या शून्य से बढ़कर छह तक पहुंच गई है। इसके अलावा, अनेक भारतीय मूल के अमेरिकियों के पास यहां राज्यों में अहम राजनीतिक या प्रशासनिक जिम्मेदारी है। वैसे, भारतीय प्रतिभाओं से केवल अमेरिका ही फायदे में नहीं है, इससे खुद भारत को भी फायदा हो रहा है। इससे भारतीय आईटी क्षेत्र के विकास को भी बल मिला है। ऐसे में, जब वीजा सुविधा पर गाज गिरेगी, तब भारतीय अमेरिकी समुदाय ही नहीं, भारतीय आईटी उद्योग भी बहुत प्रभावित होगा।
राष्ट्रपति ट्रंप के आसपास ऐसी अनेक ताकतवर हस्तियां हैं, जो एच-1बी का विरोध करती रही हैं। इनका मानना है कि यह वीजा नीति अमेरिकी श्रमिकों को कमजोर करती है। टकर कार्लसन जैसी मीडिया हस्तियां इन तर्कों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती हैं।
बेशक, कमला हैरिस राष्ट्रपति बनतीं, तो ग्रीन कार्ड बैकलॉग को कम करने और अमेरिका में अप्रवासियों के स्थायी निवास के रास्ते का विस्तार करने पर चर्चा हो रही होती। इसके बजाय, ट्रंप के नेतृत्व में एच-1बी सुविधा पर खतरे की तलवार लगातार मंडरा रही है।
एच-1बी पर चल रही बहस सिर्फ आप्रवासन का मामला नहीं है, इससे अमेरिका की प्राथमिकताएं भी बदल जाएंगी। यह जनमत संग्रह की तरह होगा कि अमेरिका को किस दिशा में आगे बढ़ना है? अभी ट्रंप जिस दिशा में बढ़ रहे हैं, उधर अनेक खतरे हैं। अमेरिका में प्रतिभाओं की कमी हो सकती है और आर्थिक विकास व नवाचार कमजोर पड़ सकता है। बदलावों की दिशा में बढ़ते कदम अमेरिका और भारत ही नहीं, वैश्विक प्रौद्योगिकी को भी प्रभावित करेंगे। वीजा की यह विवादित बहस जितनी जल्दी सुलझ जाए, उतना अच्छा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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