Hindi Newsओपिनियन मेरी कहानीhindustan meri kahani column the sweet call echoing from Brahmaputra to Ganga 8 september 2024

ब्रह्मपुत्र से गंगा तक गूंजती मधुर पुकार

सबसे अद्भुत तो ईश्वर हैं, जो सबको अलग-अलग रचते हैं। अलग-अलग रचने में उनका भी मन लगता है। मान लीजिए, अगर वह हम सबको एक जैसा रचते, तो क्या होता? हम सब अलग-अलग हैं, तभी तो हमारा एक दूजे में मन लगा...

Pankaj Tomar भूपेन हजारिका, भारत रत्न संगीतकार, Sat, 7 Sep 2024 08:13 PM
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ब्रह्मपुत्र से गंगा तक गूंजती मधुर पुकार

सबसे अद्भुत तो ईश्वर हैं, जो सबको अलग-अलग रचते हैं। अलग-अलग रचने में उनका भी मन लगता है। मान लीजिए, अगर वह हम सबको एक जैसा रचते, तो क्या होता? हम सब अलग-अलग हैं, तभी तो हमारा एक दूजे में मन लगा रहता है। यह अद्भुत भूमि है, कहीं गंगा हैं, तो कहीं ब्रह्मपुत्र। कहीं उत्तर में संत कबीर हैं, तो कहीं असम में संत शंकरदेव। दोनों ही समाज और देश सुधारने में लगे हैं। उनके गीत आज भी लोगों को राह दिखा रहे हैं। ब्रह्मपुत्र के किनारे बसे तेजपुर की वह मां भी शंकरदेव के गीत-भजन खूब गाती थीं। उनके बड़े बेटे के दिलो-दिमाग में वो गीत ऐसे घुलते थे, मानो दूध में मिश्री। बड़े बेटे में कुछ खास था, वह मां के साथ गाने लगता था। संत कवि शंकरदेव के लिखे बोरगीत। मां का मन भी सुनकर पिघलने लगता, एक तो शंकरदेव के पुकारते बोरगीत और बेटे की मधुर आवाज। पता नहीं, मां के मन में क्या सपना था? 
एक दिन मां ने पड़ोस में आयोजित एक कार्यक्रम में अपने बेटे को भी मंच पर गाने के लिए खड़ा कर दिया। बच्चे ने मन मजबूत कर मंच संभाला और उसके कंठ से बोरगीत के बोल मानो झरने-बरसने लगे। भगवान हरि अर्थात विष्णु जी को समर्पित असमी बोरगीत - पावे परि हरि करोहो कतरी...। भावार्थ यह कि - ‘हरि चरण पकड़ रहा हूं कातर भाव से, मेरी जीवन रक्षा कीजिए। ... विषयों से भरा, जीवन थमता नहीं। मैं क्या करूं? कमल दल जल चित्त चंचल है, पल भर भी थमता नहीं...। ’ शंकरदेव ने अपने भजन में ईश्वर के प्रति अपने प्रेम, आस को आंसुओं में घोलकर ठीक वैसे ही बहा दिया है, जैसे शरद, ग्रीष्म में ब्रह्मपुत्र का बहाव होता है, सरल, सुगढ़, मद्धम।  
बहरहाल, उस दस साल के बच्चे ने मंच पर कमाल कर दिया। लोगों की आंखों में आंसू थे और तालियों का सिलसिला थमता न था। संयोग की बात कि कार्यक्रम में प्रसिद्ध असमिया गीतकार, फिल्म निर्माता ज्योतिप्रसाद अग्रवाल और प्रसिद्ध असमिया कलाकार-कवि बिष्णु प्रसाद राभा भी मौजूद थे। ये दोनों बड़े कलाकार बच्चे के गायन से अभिभूत थे कि यह बच्चा बिना शास्त्रीय सीखे शुद्ध लोक में गा रहा है। आवाज ऐसी है, मानो कोई सुरीला भंवरा हो, जिसके स्वर की लड़ी टूटती नहीं है, कुछ पल के लिए थमती है और फिर जुड़कर आगे बढ़ने लगती है। जैसे एक भंवरा बिना प्रयास गुनगुनाता है और साथ में, फूलों से रस लेने का काम भी नहीं छोड़ता। ठीक वैसे ही यह बच्चा गाता है, मानो इसका जन्म ही गाने के लिए हुआ हो, कहीं कोई खास कोशिश नहीं, न कहीं जोर लगाना, न कभी गाते हुए मुख मुद्रा का बिगड़ना। दोनों ही बड़े कलाकारों ने बच्चे के गायन की भव्य व विरल सहजता को थाम लिया और तय कर लिया कि इस बाल रत्न को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहिए।
कुछ ही महीने बाद वह बच्चा कोलकाता में सेलोना कंपनी के लिए ऑरोरा स्टूडियो में अपना पहला गीत रिकॉर्ड करवा रहा था और उसे लोग भूपेन हजारिका के नाम से जानने लगे थे। 12 साल की उम्र में उनके फिल्मी गीत गली-गली में बजने लगे और वह खुद भी गीत लिखने लगे। उनके जीवन और असमिया संस्कृति में एक क्रांति की शुरुआत हुई। उन्होंने महज 14 की उम्र में एक गीत लिखा - अग्निजुगर फिरिंगथी माई (मैं अग्नि के युग की चिंगारी हूं) और गीतकार, संगीतकार, गायक, फिल्मकार बनने की राह पर चल पड़े। 
संयोग देखिए, ब्रह्मपुत्र के पुत्र गंगा किनारे बनारस पढ़ने आए। बीएचयू से बीए, एमए करने के बाद छात्रवृत्ति पर अमेरिका गए। न्यूयॉर्क में एक प्रमुख नागरिक अधिकार कार्यकर्ता पॉल रॉबसन से उनकी दोस्ती हुई, जो मानते थे कि संगीत सामाजिक बदलाव का साधन है और गिटार सिर्फ संगीत वाद्ययंत्र नहीं, एक सामाजिक वाद्ययंत्र है। रॉबसन डूबकर अपना गीत गाते थे - ओल्ड मैन रिवर, तो भूपेन हजारिका को ब्रह्मपुत्र और गंगा जैसी अपनी पुरानी नदियों की याद आती थी। वह स्वदेश लौट आए और स्वयं को संगीत व समाज के लिए समर्पित कर दिया। असमी, बांग्ला, हिंदी में उनके गीत खूब प्रसिद्ध हुए। वह भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के से सम्मानित हुए। देखते-देखते असम के रत्न भारत रत्न हो गए। 
8 सितंबर को जन्मे अमृत कंठ वाले भूपेन हजारिका (1926-2011) भारतीयता के सच्चे प्रतीक हैं। उनका जीवंत योगदान एकता, मानवता और संगीत को समर्पित है। उन्हें जितनी प्रिय ब्रह्मपुत्र नदी है, उतनी ही गंगा। आज भी जब मेघ बरसते हैं, तो उनके गीत असंख्य लोगों के मन में उमड़ने लगते हैं, जैसे - दिल हूम-हूम करे, घबराए, / घन धम-धम करे, गरजाए, / एक बूंद कभी पानी की, / मोरी अंखियों से बरसाए।
 प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय 

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