हीरे का उपहार नहीं मुझे किताब दीजिए
अगर ताकत हो, तो आप सब कुछ न सही, पर बहुत कुछ जरूर हासिल कर सकते हैं। वेग जल का हो या किसी इच्छा का, जब ज्वार आता है, तो बड़ी-बड़ी बाधाएं भी मार्ग नहीं रोक पाती हैं। उस लड़की में भी पढ़ने की इच्छा का...
अगर ताकत हो, तो आप सब कुछ न सही, पर बहुत कुछ जरूर हासिल कर सकते हैं। वेग जल का हो या किसी इच्छा का, जब ज्वार आता है, तो बड़ी-बड़ी बाधाएं भी मार्ग नहीं रोक पाती हैं। उस लड़की में भी पढ़ने की इच्छा का अथाह ज्वार था। गुड्डा-गुड़िया खेलने की उम्र थी, पर छह-सात की उम्र में ही पुस्तकों से मित्रता हो गई थी। पाठ्यक्रम को तो वह चंद महीनों में ही पूरा कर लेती थीं और उसके बाद अन्य पुस्तकों के पीछे लग जाती थीं। पास के सार्वजनिक पुस्तकालय में अपना दूसरा घर बना रखा था। आयु जब आठवें वर्ष में पहुंची, तब वह गंभीर मलयालम साहित्य में डूब गईं। अनमोल जीवन का आभास होने लगा, तो ज्ञान-विज्ञान की ताकत भी समझ में आने लगी।
हालांकि, तब परिवार के लोग अलग ही तैयारी में जुटे थे कि लड़की अब सयानी हो रही है। सबकी तमन्ना थी कि उसे उम्र के नौवें पड़ाव पर कुछ ऐसा दिया जाए कि वह खुशी से फूले न समाए। मां-पिता ने तय किया कि बेटी को हीरे की बालियां भेंट की जाएं। पिता बड़े अधिकारी थे, तो धन-संपदा की कोई कमी न थी। यही तो होता है ज्यादातर बच्चियों के साथ, जेवर के उपहार से शुरुआत होती है और धीरे-धीरे जेवरों का पिंजड़ा तैयार हो जाता है। एक जेवर, फिर दूसरा, तीसरा, पूरे जेवर सेट तक और उसके बाद दूसरे, तीसरे के आगे भी यात्रा सतत चलती है, मन ही नहीं भरता। उसी महिला को कामयाब माना जाता है, जिसके पास खूब सारे जेवर हों। जेवर ही महिलाओं की सुरक्षा बन जाता है और ऐसा हथियार भी, जिसका प्रयोग एक महिला दूसरी महिला के खिलाफ करती है। अचरज नहीं, जहां चार-पांच महिलाएं जुट जाएं, वहां जेवर युद्ध का होना तय है।
शायद ऐसे ही जेवर युद्ध के लिए उस पढ़ाकू लड़की को भी तैयार करने की बुनियाद रखी जानी थी, पर वह नन्ही विदूषी कमाल की थीं, उपहार की भनक लग गई। फिर क्या था, दोटूक सुना दिया कि मुझे कोई जेवर या बालियां नहीं चाहिए, कोई सोना-चांदी-हीरा नहीं। मुझे मत उलझाओ, बस पढ़ने दो। जेवर मिलेगा, तो भटका देगा। संभालकर रखने की चिंता में लगा देगा। जितना महंगा सामान, सुरक्षा की उतनी ही ज्यादा चिंता, तो कौन पाले फिजूल का बोझ?
अब तो माता-पिता चिंतित हो उठे और उन्हें उदासी भी घेरने लगी कि लड़की ने योजना पर पानी फेर दिया। पिता ने समझाया, ‘बेटी, तुम्हारा जन्मदिन है, उपहार न देंगे, तो कैसा लगेगा?’
बेटी ने विनम्र दृढ़ता से आग्रह किया, ‘पिताजी, आप जेवर नहीं, एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका का एक सेट दिला दीजिए।’
पढ़ाई का मोल जानने वाले सिविल इंजीनियर पिता का रोम-रोम हर्षित हो उठा। वह समझ गए कि अब बेटी को समझाना व्यर्थ है, उसने अपना रास्ता चुन लिया है। इतनी कम उम्र में ही उसमें पूरी दुनिया के बारे में जान लेने की इच्छा है।
पिता ने बेटी की मांग पूरी की। बेटी अद्भुत मितव्ययी थी। उन्हीं दिनों गांधी जी जब उसके शहर से गुजरे, तो बेटी ने उनसे सीखा और सादगी को स्वभाव बना लिया। वह भौतिकी में आगे बढ़ना चाहती थीं, पर ब्रिटेन में उन्हें मौसम विज्ञान पढ़ने का अवसर मिला और छात्रवृत्ति भी। पिता ने पूरे विश्वास व उत्साह से बेटी को विदेश जाने दिया। उन्हें पता था कि बेटी एक दिन कामयाब होकर घर लौटेगी। ऐसा ही हुआ। जल्दी ही भारत की इस बेटी का नाम दुनिया की विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगा, लोग उन्हें मौसम वैज्ञानिक अन्ना मणि के नाम से जानने लगे। वह मौसम विज्ञान के उपकरण बनाने में माहिर होकर स्वदेश लौटीं। वह उन चंद भारतीय वैज्ञानिकों में शामिल थीं, जिन्होंने साल 1960 के आते-आते देश को मौसम विज्ञान में आत्मनिर्भर बना दिया। जब भारत को अपना पहला रॉकेट छोड़ना था, पूरी दुनिया की निगाह उस पर टिकी थी, तब सबसे बड़े वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने आग्रह किया, ‘अन्ना, तुम मौसम का मिजाज देखना कि कहीं कोई गड़बड़ न होने पाए।’ अन्ना ने काम बखूबी किया और देश ने अंतरिक्ष में परचम लहरा दिया। अन्ना देश के लिए वाकई में मणि साबित हुईं, मौलिक खोज-अनुसंधान के अंबार लगा दिए। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग आज भी उनके काम की गाथा गाते थकता नहीं है।
जब दुनिया में बहुत कम जगह ओजोन पर अध्ययन हो रहा था, तब अन्ना (1918-2001) ने ओजोन मापने वाला यंत्र बनाया और दुनिया को आगाह किया कि पर्यावरण का ध्यान रखो, ओजोन परत में छेद का बढ़ना दुनिया के लिए ठीक नहीं है। ताउम्र ज्ञान की तलाश में लगी उस बेटी ने विवाह नहीं किया, वह हंसकर एहसास कराती थीं कि मैं खुद को संभाल लूं, तो बहुत है। पढ़ाई-लिखाई के लिए एक जीवन कितना कम है?
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय
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