Hindi Newsओपिनियन मेरी कहानीhindustan meri kahani column 15 September 2024

उपहार में मिले एक शब्दकोश का कमाल

कर्नाटक के कोलार ने देश-दुनिया को बेहिसाब सोना दिया है। कोलार गोल्ड फील्ड से अंग्रेज कितना सोना निकाल ले गए, कोई नहीं जानता, पर जब अंग्रेज दोनों हाथों से लूटने में लगे थे, तब उसी कोलार..

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Sat, 14 Sep 2024 10:33 PM
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उपहार में मिले एक शब्दकोश का कमाल

कर्नाटक के कोलार ने देश-दुनिया को बेहिसाब सोना दिया है। कोलार गोल्ड फील्ड से अंग्रेज कितना सोना निकाल ले गए, कोई नहीं जानता, पर जब अंग्रेज दोनों हाथों से लूटने में लगे थे, तब उसी कोलार की उर्वर भूमि पर एक गुदड़ी के लाल का अवतरण हुआ था। उसके पिता विद्वान थे, उनका ज्यादा समय धर्मग्रंथों और तीर्थयात्रा में लगता था, तो परिवार में अभावों का सिलसिला रहता था। छह भाई-बहनों में दूसरे नंबर का यह बालक खास था। वह अभाव का साया पढ़ाई पर नहीं पड़ने दे रहा था। घर में ही बच्चों की पढ़ाई शुरू हुई, पर जब लगा कि बच्चे तेज हैैं, तो स्कूल भेजना जरूरी लगा। स्कूली पढ़ाई के लिए ही परिवार गांव छोड़कर चिकबल्लापुर आ गया। सरकारी स्कूल में उस बालक ने टॉप करना शुरू कर दिया। मां ने हाईस्कूल की पढ़ाई के लिए बेटे को उसके मामा के पास बेंगलुरु भेज दिया। बेटे ने मैट्रिक में पूरे मैसूर राज्य में टॉप करके दिखा दिया। मां ने समझ लिया कि बेटे को रोकना ठीक नहीं।  
टॉपर को सेंट्रल कॉलेज में इंटरमीडिएट में आसानी से दाखिला मिल गया। पल-पल पढ़ाई करते टॉपर पर कॉलेज के अंग्रेज प्रिंसिपल चार्ल्स वाटर्स की निगाह पड़ गई। प्रिंसिपल ने पता लगाया कि यह छात्र तो बहुत मुश्किलों से गुजरते हुए पढ़ रहा है। पैसे बचाने के लिए बेंगलुरु के एक छोर पर रहता है और दूसरी छोर पर कॉलेज है, पर एक तीसरा जरूरी छोर भी है, जहां वह ट्यूशन पढ़ाने जाता है। सुबह आंख ट्यूशन वाले घर में ही खुलती है। वहां सुबह ही बच्चों को पढ़ाने के बाद अपने डेरे पर आना पड़ता है, जहां भोजन करते ही कॉलेज का वक्त हो जाता है। कॉलेज से छूटकर फिर डेरे पर भोजन और देर रात से पहले ही ट्यूशन वाले घर पर पहुंचना पड़ता है। सारी दूरियां पैदल ही तय होती हैं। कमाल देखिए, क्या मजाल कि कहीं भी पहुंचने में विलंब हो जाए। कहीं कोई बहाना नहीं, चेहरे पर शिकन का एक कतरा नहीं। अंग्रेज प्रिंसिपल छात्र की ऐसी दुष्कर दिनचर्या सुन दंग रह गए। उन्होंने सोचा कि ऐसे छात्र को जरूर बल देना चाहिए। जो छात्र अपनी पढ़ाई के लिए किसी से पैसे नहीं मांग रहा, स्वयं मेहनत से खर्च निकाल रहा है, उसे तो कुछ ऐसा देना चाहिए, जो ताउम्र काम आए। प्रिंसिपल ने बहुत सोच-विचार के बाद अपने संघर्षशील छात्र को वेबस्टर डिक्शनरी भेंट की। 
पहली बार किसी ने ऐसे उपहार दिया था। अब तक भेंट में ज्यादातर मुड़ी-तुड़ी किताबें ही मिलती थीं, पर अब हाथों में एक नया-मोटा चमकदार शब्दकोश था, तमाम पुरानी किताबों के बीच सिरमौर। पिं्रसिपल साहब की भलमनसाहत ने छात्र को भाव-विभोर कर दिया। उत्साह एक ऐसे ज्वार की तरह जागा कि ठान लिया, पिं्रसिपल साहब ने पढ़ने के लिए दिया है, तो वाकई पढ़कर और कुछ अच्छा बनकर दिखा देना है। उपहार हुनरमंद मानकर उम्मीद से दिया है, तो खरा उतरकर दिखा देना है।
फिर क्या, छात्र ने ऊंचे अंकों से कॉलेज पास करके दिखा दिया। पिं्रसिपल साहब पीछे लग गए कि ‘तुम्हें शिक्षा निदेशालय में लगा देता हूं, तुम्हारे संघर्ष के दिन पूरे हो गए’, पर छात्र ने कहा, ‘सर, अभी और पढ़ूंगा, पक्की नौकरी में लग गया, तो मुश्किल हो जाएगी। सर, मुझे इंजीनियरिंग में जाना है।’ 
सुखद संयोग रहा कि पूना में इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति का इंतजाम हो गया। पूना पहुंचते ही ख्याति फैलने लगी। देश के नामी-गिरामी लोग जानने लगे कि अद्भुत विद्यार्थी मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने तीन साल का पाठ्यक्रम ढाई साल से पहले ही पूरा कर लिया है। फिर टॉप किया है, तो जेम्स बर्कले पुरस्कार भी मिला है। मात्र 23 की उम्र में ही बॉम्बे लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता के पद से बेमिसाल इंजीनियरिंग सेवा की शुरुआत हुई। देश में उनके नाम-काम का डंका बजने लगा। कहीं पेयजल आपूर्ति, कहीं बाढ़ रोकथाम, तो कहीं सिंचाई सुविधा, पूरा देश जान गया कि हमारे पास एक ऐसा माहिर इंजीनियर है, जो नदियों, पहाड़ों को भी दशा-दिशा देता है, जो बाढ़ और सूखे का इलाज जानता है।  
15 सितंबर को जन्मे एम विश्वेश्वरैया (1860-1962) को यह देश कभी भूल नहीं सकता। उनके जन्मदिवस पर इंजीनियर्स डे मनाया जाता है और उन्हें भारत ही नहीं, विदेश में भी खूब याद किया जाता है। पूरी सादगी और विद्वता की महानता के साथ अनेक पदों और सेवाओं को सुशोभित करने वाले पूरे 101 साल जीवित रहने वाले विश्वेश्वरैया अपने अंत तक अपने पिं्रसिपल की खास भेंट- शब्दकोश को दिल से लगाए रहे। अब वह शब्दकोश मुडेनहल्ली के संग्रहालय में इस संदेश के साथ शोभायमान है कि यदि किसी विद्यार्थी को कोई उपहार दिया जाए, तो कुछ ही ऐसा हो, जो प्रेरणा से भर दे। 
  प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय 

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