Hindi Newsओपिनियन मेरी कहानीhindustan meri kahani column 14 July 2024

किसी गरीब बच्चे की कभी न छूटे पढ़ाई

अब ज्यादातर लोग थोड़ी-सी सफलता पाते ही ऐंठ जाते हैं, पर पहले ऐसा नहीं था। पहले लोग जमीन से जुड़े, सहज-सरल रहते थे। अनेक आला नेता सरलता की मूरत माने जाते थे, जिन्हें देखकर लोगों में सादगी का सहज संचार...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Sat, 13 July 2024 10:08 PM
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किसी गरीब बच्चे की कभी न छूटे पढ़ाई

अब ज्यादातर लोग थोड़ी-सी सफलता पाते ही ऐंठ जाते हैं, पर पहले ऐसा नहीं था। पहले लोग जमीन से जुड़े, सहज-सरल रहते थे। अनेक आला नेता सरलता की मूरत माने जाते थे, जिन्हें देखकर लोगों में सादगी का सहज संचार होता था। सादगी से ही अनेक समस्याओं का समाधान निकल आता था, क्योंकि सादगी नेताओं को आम लोगों के साथ आसानी से जोड़ देती थी। कई बार तो नेता ऐसे घूमते थे, मानो आम आदमी हों, देखकर यह एहसास ही नहीं होता था कि ये मंत्री हैं या मुख्यमंत्री। 
उस दिन भी ऐसा ही हुआ था, तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के चेरनमहादेवी गांव में रेलवे का एक ढाला या रेलवे क्रॉसिंग था। वहां से रेलगाड़ी गुजरने वाली थी और ढाला बंद था। साधारण दिखने वाले एक सज्जन ढाले के पास इंतजार करते टहल रहे थे, कुछ दूर पर उनकी मोटरकार खड़ी थी। एक सुरक्षा गार्ड था और एक वाहन चालक। ढाला खुलने में समय था, तो वह सज्जन निकलकर मौका मुआयना करने लगे। आज जैसी सुविधा तब नहीं थी, अब तो मौका मिलते ही या इंतजार करते समय अक्सर नेता मोबाइल फोन पर बतियाने में मशगूल हो जाते हैं, उन्हें आसपास के लोगों से बात करना ज्यादा जरूरी नहीं लगता। शायद फोन या मोबाइल पर बात करने से बात बनाने, मुंह चुराने या काम टालने में सुविधा होती है।
खैर, वह सज्जन इधर-उधर देख रहे थे, तो उन्हें कुछ लड़के दिखाई दिए, जो गाय, बकरियां चरा रहे थे। सज्जन ने गौर किया कि यह तो स्कूल का समय है, पर ये लड़के मवेशी चराने निकले हैं! आज तो स्कूल की छुट्टी भी नहीं है, मतलब ये प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ने लायक लड़के स्कूल नहीं गए हैं। उत्सुकता जागी, तो सज्जन आगे बढे़ और लड़कों से सवाल किया, ‘तुम इन गायों के साथ क्या कर रहे हो? स्कूल क्यों नहीं गए?’ 
लड़के इस औचक सवाल से चौंक पडे़ और कुछ गंभीर भी हो गए, पर सवाल को अनदेखा करना ठीक नहीं था, तो उनमें से एक लड़के ने धीमी आवाज में ही दोटूक जवाब दिया, ‘अगर मैं स्कूल जाऊंगा, तो क्या आप मुझे खाने के लिए भोजन देंगे? बिना भोजन क्या हो सकता है? अगर हमें भोजन मिलेगा, तभी तो कुछ सीखने योग्य बनेंगे।’ लड़के ने नजरें नीची रखकर ही जवाब दिया था, पर जवाब सुनकर सवाल करने वाले सज्जन की नजरें अनायास नीची हो गईं, वह सिहर उठे। जवाब तो बिल्कुल माकूल है। पहले भोजन जरूरी है और उसके बाद ही अध्ययन के अनुकूल स्थिति बन सकती है। ऐसे बेबस लड़कों को भला क्या समझाया जाए और कैसे समझाया जाए, जिनके लिए भोजन की तलाश अभी खत्म नहीं हुई है, जो पढ़ाई और स्कूल छोड़कर खाना खोजने निकले हैं? 
सज्जन निरुत्तर हो गए और उनके मन में हाहाकार मच गया। राज्य में ऐसे कितने बच्चे होंगे, जो स्कूल नहीं गए होंगे, गरीबी से मजबूर होकर खाना खोजने निकले होंगे? वह ठिठक गए और उसी वक्त वहां से रेलगाड़ी पूरी गति से गुजर रही थी। उनकी सोच की गति भी कम नहीं थी। यह क्या त्रासदी है? ऐसे लाचार लड़के अपनी अभावग्रस्त जिंदगी में कहां तक पहुंचेंगे और अपने राज्य या देश को कहां तक ले जाएंगे? 
तब तक वहां रेल ढाले पर ठीकठाक लोग जुट आए थे। ढाला खुला और सज्जन अपनी कार में बैठकर निकल लिए, तब पीछे से लोगों ने उन्हें पहचाना कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के कामराज थे, जो चरवाहा लड़कों से सवाल पूछ रहे थे। सीधे-सादे मुख्यमंत्री के पास लोगों को दिखाने के लिए न तो काफिला था और न कार पर लालबत्ती थी। गांव के लोग पीछे चर्चा में जुट गए और कार में बैठे जा रहे मुख्यमंत्री के मन में उनका अपना लड़कपन हरा हो उठा था। पहले दादा गए और उसके कुछ ही बाद पिता का साया भी उठ गया। महज 12 की उम्र में पढ़ाई छोड़ एक मामा की कपड़े की दुकान पर बैठना पड़ा। अगर दुकान पर काम नहीं मिलता, तो पढ़ाई तो दूर की बात है, एक वक्त का भोजन मिलना भी मुश्किल हो जाता। अचरज नहीं कि उनकी परंपरागत पढ़ाई महज छठी कक्षा में छूट गई थी।
चरवाहा लड़कों और उनकी मजबूरी ने मुख्यमंत्री को मथना शुरू कर दिया। 15 जुलाई को जन्मे कामराज (1903-1975) स्वयं भुक्तभोगी थे, तो उनका दर्द कुछ ज्यादा उमड़ पड़ा और उसके साथ ही भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक बेहद निर्णायक मोड़ आया। मुख्यमंत्री ने सोचा कि क्यों न स्कूल में कम से कम दोपहर का भोजन दिया जाए, ताकि किसी गरीब बच्चे की पढ़ाई छूटने न पाए और ऐसे देश में मध्याह्न भोजन कार्यक्रम की शुरुआत हुई। जाहिर है, आज जब इस कार्यक्रम की चर्चा होती है, तो कामराज का नाम गर्व से लिया जाता है।
      प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय 

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