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हमारी हवा में उड़ते ताबूत

कल्पना कीजिए। आपका जहाज हजारों फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा है। अचानक आपका दम घुटने लगता है। घबराहट में आप इधर-उधर देखते हैं। सह-यात्रियों की भी हालत खस्ता है। कोई खांस रहा है, किसी को मितली आ रही है, तो...

शशि शेखर Sat, 29 Sep 2018 10:03 PM
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हमारी हवा में उड़ते ताबूत

कल्पना कीजिए। आपका जहाज हजारों फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा है। अचानक आपका दम घुटने लगता है। घबराहट में आप इधर-उधर देखते हैं। सह-यात्रियों की भी हालत खस्ता है। कोई खांस रहा है, किसी को मितली आ रही है, तो कोई हांफ रहा है। केबिन में हवा का दबाव इतना कम हो जाता है कि अचानक ऊपर से ऑक्सीजन उपलब्ध कराने वाले साधन लटकने लगते हैं। यात्री कंपकंपाते हाथों से उन्हें थामते हैं। हड़बड़ाहट और घबराहट के आलम में किसी तरह अपने चेहरे पर चस्पां कर लेते हैं। सांस कुछ काबू में आती है, पर आशंकाएं तब भी बनी रहती हैं, कहीं हमारा जहाज किसी तकनीकी खराबी का शिकार तो नहीं हो गया? हम सकुशल पहुंचेंगे या नहीं? पायलट और क्रू के अन्य सदस्य कहां हैं? वे चुप क्यों हैं, कुछ करते क्यों नहीं?  

जैसे-तैसे जहाज उतरता है। यात्रियों की देह में धीमे-धीमे प्राण लौटने लगते हैं, पर कुछ हमसफर बुरे हाल में हैं। उनके कान और नाक से खून निकल रहा है। वे अस्पताल ले जाए जाते हैं। पिछले दिनों मुंबई से जयपुर जा रही जेट एयरवेज की फ्लाइट के यात्रियों ने जब यह आपबीती बताई, तो लोग कांप उठे। खिसियाई एयरलाइन्स ने बाद में यात्रियों से क्षमा याचना करते हुए जानकारी दी कि उड़ान दल के सदस्यों को उड़ानों से अलग कर दिया गया है और मामले की जांच की जा रही है। नतीजे क्या निकले, इस पर अभी तक एयरलाइन्स और आपकी हवाई यात्रा की गारंटी लेने वाली सरकार ने चुप्पी साध रखी है। सवाल उठता है कि जिन लोगों ने अपना धन खर्च कर यात्रा का टिकट खरीदा था, क्या उन्हें जानने का हक नहीं कि 20 सितंबर की उस सुबह हमारे साथ घटित हादसे का कारण क्या था? आगे ऐसा नहीं होगा, उसके लिए क्या कदम उठाए गए हैं? 

यह चुप्पी खतरनाक है।

जिम्मेदार लोगों का मौन हमेशा से आम आदमी के लिए परेशानियां न्योतता रहा है। इस बार भी यही हो रहा है। हवाई अड्डों पर आशंकित मुसाफिरों की भीड़ से पूछ देखिए। उनकी यात्राएं आनंद नहीं, मजबूरी बन गई हैं। लापरवाही सिर्फ जेट के कर्मचारियों ने बरती हो, ऐसा नहीं है। अन्य विमान सेवाओं के कर्मचारी भी समय-समय पर अपने ‘सम्मानित अतिथियों’ से रूखा बरताव करते नजर आए हैं या फिर उन्होंने नियमों से परे जाकर उनके उपभोक्ता हितों की अवहेलना की है। शायद आपको याद हो, किस तरह इंडिगो के कर्मचारियों ने एक अधेड़ व्यक्ति के सार्थ ंहसा की थी। उसके आंसू पोंछने की बजाय एयरलाइन्स ने वीडियो वायरल होने तक चुप्पी साध रखी थी। कोई आश्चर्य नहीं है कि कई निजी विमान सेवाओं की उड़ानों को समय-समय पर इसीलिए प्रतिबंधित किया गया, क्योंकि उनके विमान तकनीकी तौर पर अक्षम 
पाए गए थे। 

जर्जर जहाजों और अशिष्ट कर्मचारियों के सहारे ये कंपनियां किस मुंह से उपभोक्ताओं की सेवा करने का दावा करती हैं? ऊपर से सितम यह कि उन्हें ‘अभद्र’ आचरण करने वाले यात्रियों को प्रतिबंधित करने का हक हासिल हो गया। इसी को कहते हैं- जबरा मारे और रोने भी न दे। 

कोई आश्चर्य नहीं कि ‘इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गेनाइजेशन’ ने ‘यूनिवर्सल सेफ्टी प्रोग्राम’ के तहत हमारी विमान सेवाओं की पड़ताल की, तो आठ में से पांच मानक सेवाओं में भारतीय विमानन कंपनियों का प्रदर्शन निर्धारित स्तर से कम पाया गया। क्या यह दुखद नहीं है कि इस मामले में बांग्लादेश का प्रदर्शन भी हमसे कहीं बेहतर साबित हुआ? आप चाहें, तो शरमा सकते हैं, पर कहानी अभी बाकी है। उड्डयन मंत्रालय की अपनी छानबीन में भी हवाई अड्डों में काफी कमी पाई गई, जिनमें सुरक्षा के सरंजाम तक शामिल हैं। 

इसके बावजूद उड़ान भरने वालों की संख्या में अंधाधुंध बढ़ोतरी हो रही है।

पिछले बरस करीब 11 करोड़, 70 लाख लोगों ने घरेलू उड़ानों का इस्तेमाल किया, जो 2011 के मुकाबले दोगुना है। कम सेवाओं के बदले यदि मुनाफा बढ़ रहा हो, तो विमानन कंपनियों का दिमाग सातवें आसमान पर पहुंचना स्वाभाविक है। इसीलिए वे बिना बताए यात्रियों की सुविधाओं में कमी करती जा रही हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण पिछले हफ्ते दिल्ली से देहरादून की उड़ान में देखने को मिला, जब परिचारिका ने मुझे पानी की एक बोतल थमाते हुए पूछा कि आप साथ में काजू लेंगे या बिस्किट्स? 

मैंने कहा कि यदि आप पानी की जगह मुझे कोई अन्य पेय पदार्थ दे सकें, तो मेहरबानी होगी। उसने कहा कि इस ‘सेक्टर’ पर ‘फ्लाइट’ की अवधि बहुत कम है, इसलिए हम इसके अलावा कुछ और उपलब्ध नहीं करा पाएंगे। मैंने अपने को यथासंभव संयत रखते हुए उससे कहा कि पहले तो इसी ‘सेक्टर’ में आप ही की विमान कंपनी मुझे चाय-कॉफी के अलावा सब कुछ उपलब्ध करवा देती थी? अब ऐसा क्यों? उसने मेरी ओर पीठ फेरते हुए कहा कि अब ऐसा ही है। आप चाहें, तो फीडबैक का मेल भेज सकते हैं। यात्रियों की शिकायतों से बेपरवाह वह हेकड़ी की अभ्यस्त थी।

यकीन मानिए, उस क्षण मैंने खुद को बेहद ठगा, उपेक्षित और अपमानित महसूस किया। 

हमारा दुर्भाग्य है कि यूरोप अथवा अमेरिका की तरह हिन्दुस्तान ने बाजार की अर्थव्यवस्था को तो स्वीकार कर लिया, मगर बाजारूपन पर लगाम लगाने के लिए सार्थक नियामक संगठन नहीं बनाए गए। सरकार बरसों से नारा लगा रही है- ‘जागो ग्राहक जागो’, पर जब ग्राहक जाग जाए, तो उसकी जागृति रक्षा के उपाय क्या हैं? भारत में उपभोक्ता अदालतों की संख्या और अधिकार सीमित हैं, जबकि उपभोक्ताओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। विमानन कंपनियों के मामले में तो अवहेलना का सिलसिला अपेक्षाकृत अधिक त्रासद है।

इसी बिंदु पर सरकार की याद आती है। इसमें दो राय नहीं कि मौजूदा हुकूमत नए हवाई अड्डे और उड़ान मार्ग तेजी से खोल रही है, पर इसके साथ उपभोक्ता हितों की रक्षा के सार्थक उपाय भी किए जाने चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हवाई चप्पल पहनकर हवाई जहाज में उड़ने वाला व्यक्ति पहली बार में ही खुद को वंचित और असहाय महसूस करने लगे। अगर ऐसा होता है, तो यह आजाद भारत के एक और हसीन सपने की मौत होगी।

हमारा लोकतंत्र कब तक आम आदमी की स्वप्न हत्या पर उत्सव मनाता रहेगा?

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