Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगhindustan aajkal column by shashi shekhar 13 oct 2024

कांग्रेसी जर्जरता का रहस्य

कांग्रेस आलाकमान ने हरियाणा की तरह ही अपने क्षत्रपों के सामने आत्म-समर्पण कर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ गंवा दिए थे। उसे अपने संगठन का शिराजा बचाने के लिए कुछ राज्यों में परचम फहराने की सख्त ..

Admin शशि शेखर, Sat, 12 Oct 2024 08:42 PM
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कांग्रेसी जर्जरता का रहस्य

पिछली आठ अक्तूबर ढलने से पूर्व दो राज्यों के चुनावी रुझान स्पष्ट हो चले थे। हमेशा की तरह छोटे परदे पर कई दिग्गज जोरदार बहस-मुबाहिसों में उलझे हुए थे। उसी दौरान एक वरिष्ठ पत्रकार की गौरतलब टिप्पणी थी- जीता हुआ चुनाव हारना कोई कांग्रेस से सीखे और हारा हुआ चुनाव जीतना भाजपा से सीखे। चुनाव-दर-चुनाव कांग्रेस के साथ जो हो रहा है, उस पर आगे चर्चा करेंगे, पहले भाजपा के बारे में बात। वह हारा हुआ चुनाव कैसे जीत लेती है? 
जवाब इस किस्से में छिपा है। 
मतगणना से एक दिन पूर्वमेरे मोबाइल फोन की घंटी बजती है। उधर से, भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बोल रहे थे। उन्होंने पूछा कि आपका हरियाणा के बारे में क्या आकलन है? मैंने प्रतिप्रश्न किया, आप बताइए, आप तो कई दिन हरियाणा में बिताकर आए हैं? उनका उत्तर था,आखिरी कुछ दिनों में वहां की बयार बदली है। हम चुनाव जीतेंगे और सरकार हमारी ही बनेगी।
मुझे लगा कि वह अपनी पार्टी की ‘पोजिशनिंग’ मुझ पर जाहिर कर रहे हैं। हम पत्रकारों के साथ अक्सर ऐसा होता है।
अगले दिन जब रुझान साफ हो गया था, उन्होंने दोबारा फोन किया। वह कुछ बोलते, इससे पहले मैंने सवाल दागा- आप कल इतने भरोसे में कैसे थे? जवाब चौंकाने वाला था। वह बोले कि मैं इतना वरिष्ठ हूं, लेकिन मुझे बड़ी जनसभाओं की जगह सिर्फ छोटी पंचायतों में जाने का निर्देश था। ये पंचायतें और गांव, जहां मैं गया, अधिकतर मेरी बिरादरी के लोगों के थे। मैंने कम से कम पांच हजार बुजुर्गों के पैर छुए होंगे। उन सबसे न केवल व्यक्तिगत आशीर्वाद मिला, बल्कि चुनावों में भी लाभ मिला। मैं अकेला नहीं था, मेरे जैसे तमाम नेता इसी काम पर लगाए गए थे। इन सभी को अपने स्वजातियों को ‘भटकने’ से बचाना था।
यहां तक कि धर्मेंद्र प्रधान जैसे अति वरिष्ठ नेता बड़ी सभाओं की जगह जनसंपर्क और कार्यकर्ता सम्मेलनों पर जोर दे रहे थे। उन्हें हरियाणा का प्रभारी बनाया गया था। उनके साथ जयराम ठाकुर और अनुराग ठाकुर जैसे दिग्गजों की जमात थी। इन्होंने विधानसभा क्षेत्रों को आपस में बांट रखा था। उन क्षेत्रों के हर कार्यकर्ता से संपर्क का पूरा प्रयास इन लोगों ने किया, ताकि मतदाताओं के मन से ‘एंटी इनकंबेन्सी’ का भाव निकालकर उन्हें मतदान केंद्रों तक लाया जा सके। वे इसमें सफल रहे। लोकसभा चुनावों में संघ और कार्यकर्ताओं की बेरुखी भारी पड़ी थी। इस बार उस कमी को दूर किया गया, मत प्रतिशत में तीन प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी इसका प्रमाण है। इसने भगवा दल की जीत में बड़ी भूमिका अदा की।
यही नहीं, भारतीय जनता पार्टी ने पूरी ताकत गैर-जाट वोटों को जोड़ने में लगा दी। एक तरफ, कांग्रेस ‘हुड्डा ऐंड सन’ पर जरूरत से ज्यादा निर्भर कर रही थी, तो दूसरी तरफ भाजपा जातिगत गोलबंदी के अलावा लोगों को रह-रहकर याद दिला रही थी कि किस तरह मोदी जी आप लोगों का निजी तौर पर ख्याल रखते हैं। हरियाणा के लिए कौन-कौन सी योजनाओं पर कितना खर्च किया गया और इन योजनाओं से कितने लोग लाभान्वित हुए! इसके साथ पूरे जोर-शोर से हुड्डा काल में गैर-जाटों के साथ हुए कथित भेदभाव को स्थापित करने की कोशिश की गई।
आंकड़ों और सामाजिक हकीकत के इस तालमेल ने भाजपा को तीसरी बार सत्ता की चौहद्दियों में दाखिला दिला दिया। यह अपने आप में कीर्तिमान है।
यही नहीं, आम चुनाव से ऐन पहले पार्टी ने न केवल नौ साल से अधिक समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे मनोहर लाल खट्टर को हटा दिया, बल्कि अति-पिछडे़ नायब सिंह सैनी को तख्तनशीं कर दिया। ऐसे प्रयोग के लिए असाधारण हिम्मत की जरूरत होती है। इसके उलट कांग्रेस वार्धक्य के छोर पर खडे़ भूपेंद्र सिंह हुड्डा को प्रमुख चेहरा बनने से रोक न सकी। टिकट बंटवारे में कुमारी सैलजा गुट के साथ उभरा विवाद और जनसभाओं से सैलजा की दूरी ने भी वोटरों तक सही संदेश नहीं दिया। आम आदमी पार्टी और उभरते दलित नेता चंद्रशेखर के प्रति बेरुखी भी उसे महंगी पड़ी।
ध्यान दें। आप को हरियाणा में 1.79 प्रतिशत मत मिले और कांग्रेस को 39.09 प्रतिशत। यदि कांग्रेस और आप में समझौता हो जाता, तो वे मिलकर भाजपा के 39.94 फीसदी से आगे हो जाते।
कांग्रेस आलाकमान ने इसी तरह अपने क्षत्रपों के सामने आत्म-समर्पण कर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ गंवा दिए थे। भाजपा ने इसके उलट अपनी क्षेत्रीय ताकतों वसुंधरा राजे, रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान को किनारे कर दिया था। वे चुनाव नरेंद्र मोदी की शख्सियत पर लड़े और जीते गए थे। कांग्रेस को अपने संगठन का शिराजा बचाने के लिए कुछ राज्यों में परचम फहराने की सख्त जरूरत है, लेकिन लगातार जीतने की कुव्वत वह कब की गंवा चुकी है।
आम आदमी पार्टी के लिए हरियाणा से भले ही कोई अच्छी खबर न आई हो, लेकिन जम्मू-कश्मीर ने अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर यकीनन मुस्कान ला दी होगी। उपद्रवग्रस्त डोडा से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार मेहराज मलिक चुनाव जीत गए। दूसरे नंबर पर भाजपा और तीसरे पर कांग्रेस का गठबंधन रहा। अगर कांग्रेस आम आदमी पार्टी की बात मान लेती, तो उसको न केवल जम्मू में एक और सीट हासिल हो सकती थी, बल्कि गुजरात में भी उसके लिए आसानी होती।
अब जब झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव सिर पर हैं, तो कांग्रेस को यकीनन अपने सहयोगियों से कड़ी सौदेबाजी का शिकार होना पडे़गा। तमिलनाडु में स्टालिन ने विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को पहले के मुकाबले सिर्फ आधी सीटें दी थीं। अब बारी हेमंत सोरेन, शरद पवार और उद्धव ठाकरे की है। उद्धव की प्रवक्ता और उनके अखबार सामना ने कांग्रेस पर कड़ी टिप्पणी कर अपने इरादे जग-जाहिर कर दिए हैं। आप ने दिल्ली विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश विधानसभा की दस सीटों के आसन्न उपचुनावों के लिए समाजवादी पार्टी ने अपनी तरफ से छह प्रत्याशी खड़े कर दिए हैं। अखिलेश यादव यह कह जरूर रहे हैं कि हम कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ेंगे, पर वह अधिक से अधिक सीट हर हाल में हासिल करना चाहेंगे। कांग्रेस का आने वाला वक्त सर्द और सख्त है, जिसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। उधर, भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनावों के दौरान लगे झटके से उबरने में कामयाब हो गई है। वह अब महाराष्ट्र और झारखंड में बदले मन-मिजाज के साथ ताल ठोकेगी।
अंत में वही पुराना प्रश्न, कांग्रेस अपनी भूलों से कब सीखेगी? जवाब जानने के लिए पिछले दस चुनावों पर नजर डाल देखिए, उत्तर मिल जाएगा। 

@shekharkahin 

@shashishekhar.journalist

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