कोरोना डायरी 6 : साधन हमें भीरु बनाते हैं
27 मार्च 2020, रात 9 बजे । शंकर शेष का एक नाटक है- सिंहासन खाली है’। इस नाटक को मंचित करते समय बोला गया एक संवाद दिल को छू गया था- मौत हर चेहरा नोचकर फेंक देती है। 42-43 साल बाद यह...
27 मार्च 2020, रात 9 बजे ।
शंकर शेष का एक नाटक है- सिंहासन खाली है’। इस नाटक को मंचित करते समय बोला गया एक संवाद दिल को छू गया था- मौत हर चेहरा नोचकर फेंक देती है। 42-43 साल बाद यह संवाद पूरी दुनिया पर खरा उतरता देख रहा हूं। अमेरिका और यूरोप के जो लोग इसका शिकार बन रहे हैं, उनके प्रति मेरी गहरी सहानुभूति है पर ये वही लोग हैं, जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के बाद से पूरी दुनिया के व्यापार, यानी धन पर कब्जा बनाकर रखा है। इनमें से अधिकांश देश अमीर माने जाते हैं और इनकी अकड़ को इस महामारी ने लाचारी में तब्दील कर दिया है।
आज एक वीडियो देखा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन खुद के #कोरोना ग्रसित होने की जानकारी देते हुए #सोशल_डिस्टेंसिंग पर बल दे रहे थे। ये वही जॉन्सन हैं, जो मार्च की शुरुआत में कोरोना का मजाक उड़ा रहे थे। एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि मैं तो हर रोज कई बैठकें करता हूं, तमाम लोगों के गले मिलता हूं, हाथ मिलाता हूं। मुझे तो कोई कोरोना नहीं हुआ? आज वही अपनी लाल नाक और उड़ा हुआ चेहरा लेकर सोशल डिस्टेंसिंग की वकालत करते नजर आ रहे थे। सिर्फ वे ही क्यों, ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री भी इसकी चपेट में आ गए है । वहाँ इस त्रासद सिलसिले की शुरुआत भी कभी समूची दुनिया पर हुकूमत करने वाले ब्रिटेन के राजवंश से हुई थी। दो दिन पहले ही प्रिंस चार्ल्स को कोरोना संक्रमित पाया गया था। कमाल यह कि एक तरफ ये खबर चल रही है कि युवराज कोरोना पॉज़िटिव हैं और दूसरी तरफ उनके पुत्र का एक वीडियो वायरल है।वे मजाकिया लहजे में बोल रहे हैं कि लोग कह रहे हैं कि मुझे कोरोना हुआ है पर मैं तो आपके सामने हूं। सेना के तमाम वर्दीधारी लोग उनके चारों ओर खड़े हैं। हो सकता है कि वीडियो प्रिंस चार्ल्स की बीमारी घोषित होने से पहले का हो, पर फिर भी इसमें उनकी संवेदनहीनता और बेपरवाह रवैया साफ दीख रहा है। बेपरवाह तो श्रीमान डोनाल्ड ट्रंप भी थे। उन्होंने मार्च के दूसरे हफ्ते तक कोरोना को हल्के में लिया। नतीजतन, अमेरिका अब इस महामारी की धुरी बनता जा रहा है। वहां पिछले हफ्ते जहां कुल 8 हजार मामले सामने आए थे ,वहीं इस हफ्ते लगभग अस्सी हजार नए मरीज पैदा हो गए हैं। महामारी के शिकार लोगों की सात दिनों में दस गुनी लम्बी छलांग! ब्रिटेन और अमेरिका के लापरवाह शासकों ने अपने लोगों को कितनी मुसीबत में झोंक दिया है!
इटली, स्पेन और यूरोप की हालत भी ऐसी ही खराब है। इटली में ताबूतों का अकाल पड़ गया है। अमेरिका के अस्पतालों के बाहर बड़े-बड़े फ्रीजर रखवा दिए गए हैं, ताकि कफन-दफन का इंतजाम होने तक शव उनमें सुरक्षित रखे जा सकें। आज न्यूयॉर्क के एक वरिष्ठ चिकित्सक का संदेश देखा। वे एक नामी अस्पताल में आपातकालीन चिकित्सा विभाग की अध्यक्ष हैं। वे सुबक रही थीं कि नेता यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि सब चंगा है पर वास्तव में सब चंगा नहीं है। हमारे मरीज मर रहे हैं। महामारी फैलती जा रही है। हमारे पास इससे लड़ने के साधन नहीं हैं। वहां के चिकित्साकर्मिर्यों में एक मेल नर्स के मारे जाने के बाद पूरी तरह दहशत फैल गई है। धरती का स्वर्ग रासायनिक हथियारों के जखीरे पर इठलाता तो है, पर चीन से निकला एक वायरस उसकी चिकित्सा सुविधाओं की पोल खोल गया है। तमाम शोध पत्र बताते हैं कि हालात और बिगड़े तो अमेरिका में दो से ढाई करोड़ तक लोग मर सकते हैं। साधन हमें सुविधा मुहैया कराते हैं, तो भीरु भी बनाते हैं।
इसके बरक्स भारत को देखें। ऊपर लगा फ़ोटो देखें ।सोनभद्र के एक गांव में लोगों ने अपने मौजे के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींच दी है। न कोई उसे पार कर अंदर आएगा, न गांव में मौजूद कोई व्यक्ति उसे लांघकर बाहर जाएगा। काशी के एक अवकाश प्राप्त शिक्षक आधा पेट खाने की मुहिम चला रहे हैं ताकि संकट के समय ज़रूरत पड़ने पर दूसरों के काम आ सके । यह भी सुखद है कि सरकारें भी गरीबों की सुधि ले रही हैं। केन्द्र के साथ राज्य सरकारों ने भी खजाना खोल दिया है। दिल्ली के अरविंद केजरीवाल अब तक दो सौ से अधिक रैन बसेरों में निराश्रितों को भोजन मुहैया करा रहे थे। कल से सारे सरकारी स्कूलों में समान व्यवस्था होगी और दो लाख लोगों के लिए भोजन एवं आवास की सुविधा हो जाएगी। उन्होंने अपील की है कि चार लाख और लोगों का इंतजाम भी किया जा रहा है, कोई दिल्ली छोड़कर न जाए। पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और बंगाल की सरकारों ने भी तरह-तरह की इमदाद मुहैया करानी शुरू कर दी है। सुकून की बात है कि पैदल अपने गांवों की ओर जा रहे लोगों को भोजन और वाहन मुहैया कराये जाने लगे हैं। पर कोई भी सरकार कितनी भी कारगर क्यों न हो, वह हर गरीब-गुरबे का पेट नहीं भर सकती। जरूरी है कि समाज की अगली पंक्तियों में बैठे लोग इन मुफलिसी के मारों का खयाल रखना शुरू करें। दिक़्क़त यह है कि गाल बजाने वाले डपोरशंख आज भी तमाम सामाजिक सुविधाओं पर कब्जा किए बैठे हैं। केरल में तैनात सुल्तानपुर के आई. ए. एस. अफ़सर का क़िस्सा ग़ौरतलब है । उसे केरल में कोरोना ग्रस्त घोषित कर क्वारंटीन किया गया पर वह भाग निकाला ।अब उसे गृहनगर में पाबंद किया गया है । रास्ते में उसने कितने लोगों को इस अभिशाप का भागी बनाया होगा ? ऐसे लोग ट्रम्प और बोरिस जॉन्सन से कुछ सबक क्यों नहीं लेते?
क्रमशः
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