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कोरोना डायरी 4 : जानलेवा परायेपन के बीच

25 मार्च 2020, रात 9 बजे  वे हमें शाहजहांपुर में मिले। लॉकडाउन की घोषणा होते ही उनके मालिकों ने उन्हें कुछ पैसे देकर चलता कर दिया था ।ट्रेनें बंद हो चुकी थीं। बसें थीं नहीं और कोई परिवहन...

Amit Gupta शशि शेखर , नई दिल्लीSat, 28 March 2020 04:42 PM
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कोरोना डायरी 4 : जानलेवा परायेपन के बीच

25 मार्च 2020, रात 9 बजे 

वे हमें शाहजहांपुर में मिले। लॉकडाउन की घोषणा होते ही उनके मालिकों ने उन्हें कुछ पैसे देकर चलता कर दिया था ।ट्रेनें बंद हो चुकी थीं। बसें थीं नहीं और कोई परिवहन की व्यवस्था नहीं । देश की राजधानी बेमुरव्वत है। बिना धन, बिना काम, वे वहां बसर करते, तो करते कैसे? उन्हें बहराइच जिले के अपने गांव लौटना था । उन्होंने अपने पूर्वजों का तरीका अपनाया- उनके जहाज, उनकी नौकाएं, उनके रथ होते थे उनके दो पाँव ।

वे पैदल ही चल पड़े। हाईवे पर कुछ मिल जाता, तो उस पर जहाँ तक सम्भव हो ,सवार हो लेते। भोजन नहीं, पानी नहीं, फिलहाल कोई भविष्य भी नहीं। वे जानते हैं कि गांव में भी कोई पलक-पांवड़े नहीं बिछाये बैठा। बिहार के एक गांव की फोटो देखी, वहां लोगों ने बैरियर लगा दिया है। दूसरे गांव में बाहर से आए ‘अपनों’ के लिए गांव के बाहर खेतों में तम्बू लगा दिए गए हैं। सेहत के प्रति जागृति कतई बुरी नहीं पर वह अपनापे की बजाय परायापन देती हो, तो घर कैसा? परायापन भी जानलेवा। पलामू के एक गाँव में कुछ लोग बंगलुरु से लौटे । गाँव के लोगों ने कहा - बाहर से आए हो , दूर रहो । आज उनमे से एक गाँव की चाय चौपाल में जा बैठा । पहले तू- तू , मैं- मैं हुई फिर हाथापाई । नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि गोलियाँ चल गयीं । एक मारा गया , कई घायल हो गए । घर जब जानलेवा साबित होने लगे, तो मान लेना चाहिए कि जलावतनी ही नियति है।

ये तो उस लॉकडाउन के शिकार थे, जो पहले से चल रहा था। अब ‘देशव्यापी कफ्र्यू’ समान लॉकडाउन पर नजर डालें, तो कई भयावह तस्वीरें नजर आती हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक डॉक्टर अपनी ड्यूटी पर जा रहा था, पुलिस ने उसे पीट दिया। नतीजतन, जिले भर के डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी। आला अफ़सरों ने मान-मनौव्वल कर किसी तरह हालात सम्भाले । पुलिस की पिटाई के तमाम किस्से हवा में तैर रहे हैं पर पुलिस हमेशा हर जगह मार रही हो, ऐसा नहीं है। कई शहरों में वह बुजुर्गों को दवाएं व भोजन पहुंचाते भी दिखाई पड़े।

यह लॉकडाउन निर्धनों के लिए पहले ही दिन निर्दयी साबित होने लगा। कई दिनों से बिना काम के बैठे लोगों में से एक महिला टी.वी. पर कह रही थी कि कोरोना हमें बाद में मारेगा, उससे पहले तो भूख ही मार डालेगी। ऐसा नहीं है कि सरकार ने इन सबसे आंख मूंद रखी है। अनुभव और शिकायतों के आधार पर तमाम फैसले किये जा रहे हैं। कालाबाजारी और जमाखोरी के खिलाफ गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में एफआईआर दर्ज हुई है। पूरे प्रदेश में करीब 1400 जगह छापे डाले गए हैं। ई-कॉमर्स पूरी तरह बंद हो गया था, आज उनके गोदामों के शटर खुलने शुरू हो गए हैं। उनके ‘डिलिवरी ब्वायज़’ को भी दिल्ली में पास जारी कर दिए गए। हजारों की संख्या में सरकारी इमदाद लेकर लोग वहां घूम रहे हैं, पर हमारा देश विशाल है और समस्याएं विकराल। सीढ़ी के पहले पायदान पर बैठे लोग कल भी वंचित थे, और आज भी। उनको 21 दिन जिलाना, खिलाना, पिलाना बड़ी चुनौती है। इस वर्ग की दूसरी दिक्कत है, उन्हें घनी बस्तियों में रहना होता है। घरों में न नल होते हैं, न शौचालय। अक्सर उनकी कोठरियों, झुग्गियों और बसेरों में खिड़की तक नहीं होती। जिंदगी ने गुरबत की अंधेरी कोठरी में धकेलने से पहले उन्हें सुकून का कोई झरोखा तक न दिया। वे यह भी नहीं जानते कि आने वाला कल उन्हें एक और दिन जिंदा रखने आ रहा है या जिंदगी का एक दिन कम कर रहा है? सोशल डिस्टेंसिंग के स्वर्णिम सिद्धांत का ये पालन करें, तो करें कैसे? वे जने ही झुंड का हिस्सा बनने के लिए थे।

कोरोना के लिए ये आसान शिकार हैं। सरकार को भी यही भय है कि अगर इन पर इस वायरस ने हमला किया, तो फिर मरने वालों की तादात कहां जाकर रुकेगी, इसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता। अभी तक ज्यादातर मामले मध्य या उच्च वर्ग के लोगों के बीच से आए हैं पर यह गारंटी भी तो नहीं कि यह अभिशाप कुछ ऐसे लोगों के जिस्म में पल रहा हो, जिनके लिए अस्पताल दूर है। अस्पताल में जो इलाज कर रहे हैं, उनकी दुर्दशा भी झकझोर देने वाली है। दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के कुछ कर्मियों को मकान मालिकों ने घर छोड़ने को कह दिया। उन्हें डर था कि ये लोग कोरोना का इलाज करते-करते खुद उसके विषाणु अपने साथ ले आएंगे। उन्हें धमकाते वक्त वो भूल गए कि अगर इस वायरस का हमला उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य पर हुआ, तो इलाज इन्हीं का कोई सखा करेगा। अपनी सुविधा से सब कुछ भुला देना हमारी घटिया आत्मघाती आदत है।

‘हिन्दुस्तान’ के संवाददाता को ग्रेटर नोएडा के एक मेडिकल कॉलेज में आज तब अयाचित अचरज का सामना करना पड़ा जब वह उन डॉक्टरों और पैरामेडिल स्टाफ का इंटरव्यू करने पहुंचा को कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहे हैं। उनके पास भी बचाव के अत्याधुनिक संसाधन नहीं हैं पर उनके हौसले ‘हाई’ थे। साथ गए फोटोग्राफर ने कहा कि हम आपकी एक ग्रुप फोटो लेना चाहते हैं। वे सहम गए। उन्होंने कहा कि अगर फोटो छप गई तो हमारे मकान मालिक या पड़ोसी आशंकित हो जाएंगे। वे इतने खौफजदा थे कि मास्क धारण कर भी फोटो नहीं खिंचा रहे थे। कालिदास के बारे में कहते हैं कि विद्योत्मा से प्रतिशोध लेने वाले विद्वानों ने उन्हें पहली बार देखा तो वे उसी डाल को काट रहे थे, जिस पर बैठे थे। नहीं जानता कि ये कहानी है या किंवदंती पर यह सच है कि अपनी ही डाल को काटने की हम हिन्दुस्तानियों की आदत सदियों पुरानी है। हम उससे सप्रयास जुड़े और जकड़े रहना चाहते हैं।

क्रमश:

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