Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगLet the wolves know, their days are over

त्वरित टिप्पणी : भेड़िये जान लें, उनके दिन लद चुके हैं

गुजरी 22 अप्रैल को पहलगाम नरमेध के बाद देश की रोती-बिलखती बेटियों को देख मेरे मन में आइजाह बर्लिन की उक्ति उभरी थी—भेड़ियों की आजादी, भेड़ों की मौत का सबब बनती है…

Shashi Shekhar लाइव हिन्दुस्तानWed, 7 May 2025 09:29 PM
share Share
Follow Us on
त्वरित टिप्पणी : भेड़िये जान लें, उनके दिन लद चुके हैं

शशि शेखर

गुजरी 22 अप्रैल को पहलगाम नरमेध के बाद देश की रोती-बिलखती बेटियों को देख मेरे मन में आइजाह बर्लिन की उक्ति उभरी थी-भेड़ियों की आजादी, भेड़ों की मौत का सबब बनती है।

मैं जानता था कि ये भेड़िये बहुत दिन अपने खून लगे पंजे और दांतों का उत्सव नहीं मना पाएंगे। भारत अब वह देश नहीं रहा जो अपने ऊपर हुए आघात को चुपचाप सहन कर ले। इस कुत्सित कांड के ठीक 15वें दिन भारतीय सेनाओं ने वह कर दिखाया जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था।

मंगलवार आधी रात के बाद हिन्दुस्तानी मिसाइलों ने पाक अधिकृत कश्मीर और पंजाब के उन नौ स्थानों को ध्वस्त कर डाला, जो जिहाद के नाम पर इंसानों की औलादों को भेड़ियों में तब्दील करने की फैक्ट्रियां हुआ करते थे। याद करें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि हम दहशत फैलाने वालों को मिट्टी में मिला देंगे। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के 25 मिनटों में नौ आतंकी ठिकाने और 26 दहशतगर्द, उनके समर्थक वाकई मिट्टी में मिल गए।

मोदीराज में हमारी सशस्त्र सेनाओं ने तीसरी बार पाकिस्तान में घुसकर पाकिस्तानियों का मान-मर्दन किया है। क्या यह पर्याप्त है? क्या इससे युद्ध भड़क सकता है? क्या इससे पाक पोषित आतंकवादियों की कमर हमेशा के लिए टूट गई?

इन सवालों के जवाब फौरी तौर पर देना नामुमकिन है, लेकिन एक बात तय है कि जो पाकिस्तानी फिलवक्त आतंकवाद को पोसने के धंधे में लगे हैं, उन्हें मालूम पड़ चुका है कि अब हर दुस्साहस की कीमत चुकानी पड़ेगी। रही बात भारत-पाक युद्ध की तो अब यह पाकिस्तान की राजनीतिक बिरादरी और रावलपिंडी में बैठे उनके सैनिक आकाओं को तय करना है। समीक्षकों का एक वर्ग है जो जनरल असीम मुनीर के पुराने भाषण के आधार पर कहता है कि वे जरूर ऐसा कुछ करेंगे जो क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और मंत्रिमंडल में उनके अलम्बरदार भी ऐसी बातें कर रहे हैं।

तय है, अगले कुछ दिन सतर्कता,सन्नद्धता और सजगता के हैं। मुझे इसमें कोई शक नहीं कि सीमाओं की सुरक्षा में सरकार और सेना कोई कोताही बरतेगी लेकिन एक फर्ज हम नागरिकों का भी है - सामाजिक एकता बनाए रखने का। उम्मीद है हमारा समाज इस बार भी वक्त की कसौटी पर खरा उतरेगा।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें