Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan opinion column 25 January 2025

जन शक्ति से ही किसी को मिलेगी प्रभुता

  • अध्यक्ष महोदय, संशोधन में कही गई वह बात, जो उसे संविधान मसौदा समिति द्वारा बनाए गए मसौदे से भिन्न रूप प्रदान करती है, इन शब्दों को बढ़ाने में निहित है, ‘जिससे समस्त शक्ति और प्राधिकार प्राप्त होते हैं’…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानFri, 24 Jan 2025 10:39 PM
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जन शक्ति से ही किसी को मिलेगी प्रभुता

बी आर आंबेडकर, अध्यक्ष, संविधान मसौदा समिति

अध्यक्ष महोदय, संशोधन में कही गई वह बात, जो उसे संविधान मसौदा समिति द्वारा बनाए गए मसौदे से भिन्न रूप प्रदान करती है, इन शब्दों को बढ़ाने में निहित है, ‘जिससे समस्त शक्ति और प्राधिकार प्राप्त होते हैं’। अत: प्रश्न यह है कि जिस रूप में प्रस्तावना का मसौदा बनाया गया है, उससे क्या इस सभा के सामान्य विचार से भिन्न कोई अर्थ निकलता है? वह सामान्य विचार यह है कि यह संविधान जनता से उद्भुत हो और इस बात को अभिज्ञात करे कि इस संविधान को बनाने की संपूर्ण प्रभुत्व संपन्नता जनता में निहित है। मैं समझता हूं कि इसमें ऐसी अन्य कोई बात नहीं है, जो विवादास्पद हो। मेरा विचार यह है कि इस संशोधन में जो कुछ सुझाया गया है, वह प्रस्तावना के इस मसौदे में पहले से ही है। ...

विवरणपूर्ण परीक्षण द्वारा अब मैं यह सिद्ध करूंगा कि मेरा विचार सही है। श्रीमान, इस संशोधन का यदि कोई विश्लेषण करे, तो उसके तीन विशिष्ट भाग होते हैं। एक भाग घोषणात्मक है। दूसरा भाग वर्णनात्मक है। तीसरा भाग यदि मैं उसके संबंध में यह कह सकता हूं, तो वह लक्ष्यमूलक और आवश्यक है। घोषणात्मक भाग में निम्नलिखित पद हैं, हम भारत के लोग, अपनी संविधान सभा में, अमुक दिवस अमुक मास...एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। इस सभा के वे सदस्य, जो इस बात के लिए चिंतित हैैं कि इस प्रस्तावना में यह कहा गया है या नहीं कहा गया है कि यह संविधान और इस संविधान के बनाने की शक्ति और प्राधिकार और संपूर्ण प्रभुत्व संपन्नता जनता में निहित है। संशोधन के अन्य भागों को इस बात से पृथक कर दें, जिसको मैंने पढ़कर सुनाया है अर्थात आरंभ के शब्दों से पृथक कर दें, जो ये हैं, ‘हम भारत के लोग अपनी संविधान सभा में अमुक दिन, एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’...

मैं इस बारीक बात पर वाद-विवाद कर रहा हूं कि क्या इस संशोधन में यह कहा गया है या नहीं कहा गया है कि यह संविधान लोगों द्वारा निर्मित, अंगीकृत और अधिनियमित है। मैं समझता हंू, यदि कोई व्यक्ति अन्य भागों से यानी वर्णनात्मक व लक्ष्यमूलक भागों से पृथक कर इसकी सरल भाषा को पढ़ता है, तो उसे इस बात में कोई संदेह नहीं हो सकता कि इस प्रस्तावना का अर्थ वही है। ...विवादान्तर्गत प्रश्न यह है। क्या यह संशोधन इस बात को स्वीकार, अभिज्ञात तथा घोषित करता है या नहीं कि जनता से उद्भूत है। मैं कहता हूं कि करता है।

मैं यह चाहूंगा कि माननीय सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की प्रस्तावना पर विचार करें। मैं उसके एक अंश को पढ़कर सुनाऊंगा। उसमें कहा गया है, ‘हम अमेरिका के लोग, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए इस संविधान को निर्मित तथा स्थापित करते हैं।’ जैसा अधिकांश सदस्यों को विदित है, इस संविधान का मसौदा एक छोटे से निकाय ने बनाया था। मैं इसका ठीक-ठीक विवरण और उन राज्यों की संख्या भूल गया हूं, जिनका प्रतिनिधित्व उस छोटे से निकाय में था, जिसकी बैठक फिलाडेल्फिया में संविधान बनाने के लिए हुई थी। ...यदि 13 राज्यों के प्रतिनिधि एक छोटे से सम्मेलन में एकत्रित होकर एक संविधान बना सके और यह कह सके कि जो कुछ उन्होंने किया, वह जनता के नाम से था, उसके प्राधिकार पर था, उसकी संपूर्ण प्रभुता पर आधारित था..., तो इस महान महाद्वीप का प्रतिनिधित्व करने वाले 292 व्यक्ति अपने प्रतिनिधित्व सामर्थ्य के अनुसार यह क्यों नहीं कह सकते कि वह इस देश की जनता के नाम से कार्य कर रहे हैं?...

मैं यह कहता हूं कि इस प्रस्तावना में वह बात हैै, जिसके लिए इस सभा का प्रत्येक सदस्य इच्छुक है कि यह संविधान अपना मूल स्रोत, अपना प्राधिकार और अपनी संपूर्ण प्रभुत्व संपन्नता जनता से प्राप्त करे। ...और यह बात संविधान में है।

(संविधान सभा में दिए गए उद्बोधन से)

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