Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan opinion column 25 January 2025

संविधान में जनता को पूरी ताकत दीजिए

  • अध्यक्ष महोदय, मेरा विचार भाषण देने का नहीं था, पर कुछ मित्र यह चाहते थे कि इस अंतिम समय में, जबकि हम अपना संविधान प्राय: समाप्त कर रहे हैं, मैं चंद शब्द कहूं…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानFri, 24 Jan 2025 10:34 PM
share Share
Follow Us on
संविधान में जनता को पूरी ताकत दीजिए

जे बी कृपलानी, संविधान सभा सदस्य

अध्यक्ष महोदय, मेरा विचार भाषण देने का नहीं था, पर कुछ मित्र यह चाहते थे कि इस अंतिम समय में, जबकि हम अपना संविधान प्राय: समाप्त कर रहे हैं, मैं चंद शब्द कहूं। मेरे कुछ मित्रों ने यह भी कहा कि एक औपचारिक भाषण द्वारा मैंने इस सभा की कार्यवाही का सूत्रपात किया था और इस द्वितीय पठन के समय जो समस्त व्यावहारिक प्रयोजनों के लिए अंतिम पठन ही है, मैं कार्यवाही को अपने भाषण द्वारा समाप्त करूं।

...इस प्रस्तावना को संविधान के आरंभ में आना चाहिए था और वह संविधान के आरंभ में दी भी गई है। इसके लिए एक कारण भी था कि प्रत्येक विवरणपूर्ण उपबंध के लिए जिसे हम संविधान में रखना चाहते थे, यह हमारे सामने रहती। यह हमें सावधान करती रहती कि कहीं हम उन आधारभूत सिद्धांतों से दूर तो नहीं हो रहे हैं, जिनको हम प्रस्तावना में निर्धारित कर चुके हैं। अभी हाल ही में हम लोकतंत्र के महान सिद्धांत के विरुद्ध चले गए थे। यह अभागा देश कई जातियों और आर्थिक वर्गों में विभाजित है। ये विभाजन असंख्य हैं। मैं समझता हूं कि संसार के संविधानों में यह प्रथम अवसर है कि दो प्रशासकों की एक नई जाति बनाई गई है और उसको एक विशेषाधिकार प्राप्त स्थिति में रखा गया है। उसको ऐसी स्थिति में रखा गया है कि जनता के प्रसिद्ध प्रतिनिधि भी उसके विशेषाधिकारों को नहीं छू सकते, चाहे वे जनता के विरुद्ध ही हों। मैं निवेदन करता हूं कि यह हमारे संविधान के प्रथम मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध है। ...

यदि हम लोकतंत्र का प्रयोग केवल एक विधि संबंधी सांविधानिक और औपचारिक योजना के रूप में करना चाहते हैं, तो मैं यह निवेदन करता हूं कि हम असफल होंगे। चूंकि लोकतंत्र को हमने संविधान के मूल में रखा है, तो श्रीमान, मैं चाहता हूं कि समस्त देश लोकतंत्र के नैतिक, आध्यात्मिक और गहन भाव को समझ ले। यदि नहीं समझा..., तो लोकतंत्र को स्वैरतंत्र (निरंकुशतंत्र) बना दिया जाएगा और फिर उसको साम्राज्यतंत्र बना दिया जाएगा और फिर एकतंत्र हो जाएगा। ...

बंधुता के महान सिद्धांत को मैं फिर से लेता हूं, जो लोकतंत्र से संबंधित है। इसका अर्थ यह है कि हम सब उसी एक ईश्वर की संतान हैं, जैसा कि कोई धार्मिक व्यक्ति कहेगा और एक रहस्यवादी यह कहेगा कि हम सबों में एक ही जीव है या बाइबिल यह कहती है, हम सब एक हैं। इसके बिना बंधुता हो ही नहीं सकती। अत: मैं चाहता हूं कि यह सभा इस बात को याद रखे कि जो हमने घोषित किए हैं, वे केवल विधि संबंधी सांविधानिक और औपचारिक सिद्धांत नहीं हैं, वरन नैतिक सिद्धांत भी हैं और नैतिक सिद्धांतों को जीवन में चरितार्थ करना पड़ता है। उनको चरितार्थ करना पड़ेगा, चाहे निजी जीवन हो या सार्वजनिक, चाहे वाणिज्यिक जीवन हो या राजनीतिक जीवन हो या एक प्रशासक का जीवन हो। उनको सर्वत्र चरितार्थ करना पड़ेगा। यदि अपने संविधान को सफल बनाना है, तो हमें इन बातों को याद रखना होगा।

...प्रस्थापित संशोधन स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि उसमें रस्मी मौकों पर, महान अवसरों पर, महत्वपूर्ण अवसरों पर हमें स्वयं अपने आपको यह स्मरण कराना पड़ता है कि हम यहां जनता के प्रतिनिधि के रूप में हैं। इतना ही नहीं, बल्कि इससे भी अधिक हैं। ...हम बहुधा यह भूल जाते हैं कि हम यहां प्रतिनिधि के रूप में हैं। हम बहुधा यह भूल जाते हैं कि जनता के सेवक हैं। सदैव यही होता है कि हमारे विचारों और कर्मों के कारण हमारी भाषा इस आधारभूत विचार के अनुसार नहीं होती है। एक मंत्री ‘हमारी सरकार’ कहता है, ‘जनता की सरकार’ नहीं कहता। प्रधानमंत्री ‘मेरी सरकार’ कहता है, जनता की सरकार नहीं कहता। अत: इस गंभीर अवसर पर स्पष्ट तथा विशिष्ट रूप में यह निर्धारित करना आवश्यक है कि संपूर्ण प्रभुत्व संपन्नता जनता में निहित है और वही उसका उद्गम है।

(संविधान सभा में दिए गए उद्बोधन से)

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें