Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan opinion column 24 January 2025

आबादी पर नई नीति और नियंत्रण चाहिए

  • विश्व की जनसंख्या पतन की ओर अग्रसर है। जब संपूर्ण विश्व नए साल की खुशियां मनाने में लगा था, तभी दुनिया के सबसे अमीर उद्यमी एलन मस्क ने अपने एक्स पर यह लिखकर सनसनी फैला दी कि विश्व जनसंख्या तेजी से गिरावट की ओर बढ़ रही है…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानThu, 23 Jan 2025 10:48 PM
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आबादी पर नई नीति और नियंत्रण चाहिए

मनु गौड़, जनसंख्या विशेषज्ञ

विश्व की जनसंख्या पतन की ओर अग्रसर है। जब संपूर्ण विश्व नए साल की खुशियां मनाने में लगा था, तभी दुनिया के सबसे अमीर उद्यमी एलन मस्क ने अपने एक्स पर यह लिखकर सनसनी फैला दी कि विश्व जनसंख्या तेजी से गिरावट की ओर बढ़ रही है। जापान, दक्षिणी कोरिया और चीन जैसे अनेक देशों में यह प्रवृत्ति अधिक दिख रही है।

यह ध्यान रखने की बात है कि एलन मस्क अन्य ग्रहों पर मानव बस्ती बसाने की योजना के साथ आगे बढ़ रहे हैं। व्यावसायिक दृष्टि से देखें, तो एक व्यवसायी को सदैव लाभ तभी होता है, जब मौजूदा परेशानियों के चलते लोग अपनी सुविधाओं व अच्छे जीवन के लिए नए उत्पादों और सुविधाओं का उपभोग करना शुरू कर देते हैं। पृथ्वी पर जनसंख्या अधिक होगी, तो परेशानियां भी अधिक होंगी और आप समझ ही सकते हैं कि तब मानव बस्तियां कहां बसाई जाएंगी?

एलन मस्क के कथन को यदि हम कुछ समुदायों या देशों के संबंध में देखें, तो सही प्रतीत होते हैं, क्योंकि जिस समुदाय या देश की प्रजनन दर 2.1 से कम हो जाती है, उसकी जनसंख्या में गिरावट होने लगती है। ऐसा ही वक्तव्य संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी दिया था, जिसकी भारत में बहुत चर्चा हुई।

यह एक सैद्धांतिक बात है, परंतु यदि हम मानव सभ्यता की प्रगति के इतिहास को देखें, तो कुछ और ही चित्र सामने नजर आता है। जहां मानव सभ्यता को तीन लाख से भी अधिक वर्ष लगे विश्व की जनसंख्या को सन 1804 में सौ करोड़ तक पहुंचाने में, वहीं मात्र अगले 123 वर्ष बाद 1927 में जनसंख्या दोगुनी, यानी दो सौ करोड़ हो गई। अगले 47 वर्ष बाद 1975 में पुन: दोगुनी, यानी चार सौ करोड़ हो गई। 1975 की तुलना में सन् 2021 में विश्व की जनसंख्या में 400 करोड़ की वृद्धि दर्ज की गई और साल 2021 में वह 800 करोड़ के पार पहुंच गई। विशेषज्ञों का कहना है कि 2050 तक विश्व की जनसंख्या 1,000 करोड़ हो जाएगी। जितनी तेजी से पिछले सवा दो सौ वर्षों में पृथ्वी पर इंसानों की जनसंख्या बढ़ी है, उतनी तेजी से और किसी प्रजाति की नहीं बढ़ी है।

जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ बढ़ा है प्राकृतिक संसाधनों का दोहन। आज पूरा विश्व इन्हीं कारणों से जहां जलवायु परिवर्तन के खतरों से जूझ रहा है, वहीं पृथ्वी पर कार्बन फुटप्रिंट लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यदि हम ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क की मानें, तो इंसान अपनी एक वर्ष की जरूरतों की पूर्ति के लिए अगले वर्ष के छह माह के संसाधनों पर निर्भर है, जिसे वर्ल्ड ओवरशूट डे का नाम दिया गया है। यदि ये संसाधन हमारी जमापूंजी होते, तो शीघ्र ही मानव सभ्यता का दिवालिया होना तय था। जितनी तेजी से हम संसाधनों का दोहन कर रहे हैं, उतनी तेजी से प्रकृति द्वारा उनका सृजन संभव नहीं। इसीलिए पूरा विश्व आज वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों की खोज और प्रोत्साहन में लगा है।

प्रोफेसरसर स्टीफन हॉकिंग का मानना था कि जिस गति से विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है, उसके कुप्रभाव भी तीव्र गति से बढ़ते जाएंगे। अगले सौ वर्षों में मनुष्य को रहने के लिए एक अतिरिक्त ग्रह की जरूरत पड़ेगी। एलन मस्क यह बात समझ रहे हैं, उन्हें मनुष्यों को किसी अन्य ग्रह पर बसाने में व्यवसाय दिख रहा है। शायद उन्हें चिंता सता रही होगी कि अगर दुनिया में आबादी घटी, तो दूसरे ग्रह पर इंसानों को बसाने की उनकी परियोजना बेकार हो जाएगी।

इसी प्रकार अगस्त 2017 में सिंगापुर में टाइम्स हायर एजुकेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में 50 नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों ने अधिक आबादी को सबसे बड़ा खतरा बताया। इसी क्रम में नवंबर 2018 में विश्व के 20,000 वैज्ञानिकों ने जनसंख्या को विश्व की सबसे बड़ी समस्या बताते हुए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। एकाधिक मौकों पर वैज्ञानिकों ने मिलकर अपील की है कि आबादी घटनी चाहिए, पर वैज्ञानिकों की सलाह को न मानकर हम 50 वर्ष पुराने जीवन और पर्यावरण को तरस रहे हैं। वैज्ञानिकों व बुद्धिजीवियों के कथन को न मानकर आज यदि हम एलन मस्क के एक व्यवसायसे प्रेरित कथन को महत्व दें, तो मेरे विचार से यह उचित नहीं होगा।

यदि हम एलन मस्क के कथन को भारत के संदर्भ में देखें, तो जहां विश्व का 2.4 प्रतिशत भूभाग भारत के पास है और चार प्रतिशत जल संसाधन हैं, वहीं उन पर निर्भर रहने वाली जनसंख्या विश्व की जनसंख्या की लगभग 18 प्रतिशत है। आज भारत में बढ़ रही बेरोजगारी की समस्या हो या प्रदूषण की, जाम होते शहरों की समस्या हो या पौष्टिक भोजन की, सूखते हुए जल स्रोतों की समस्या हो या पिघलते हुए हिमालय की, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की समस्या हो या अच्छी व उपयोगी शिक्षा की, आप किसी भी समस्या की ओर देखेंगे, तो अधिक जनसंख्या की समस्या ही बाहें फैलाए खड़ी दिखाई देगी।

विश्व में सर्वप्रथम परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाने वाला देश आज सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन चुका है, हमें चिंता करनी ही होगी। हमारे देश की जनसंख्या हमारे संसाधनों की तुलना में अधिक है। वर्ष 1971 की जनगणना में देश की जनसंख्या लगभग 55 करोड़ दर्ज की गई और तब तक परिवार नियोजन हमारे संविधान का अंग नहीं था। वर्ष 1976 में संविधान संशोधन हुआ, जो 1 जनवरी, 1977 से प्रभावी हुआ। एक समय भारत में लगभग 62 लाख लोगों की नसबंदियां कराई गईं। इतने सभी प्रयासों के बाद भी 1981 की जनगणना में देश की जनसंख्या बढ़कर लगभग 68 करोड़ हो गई। नई जनसंख्या नीति के पालन के बावजूद भारत की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार, 121 करोड़ हो गई।

आश्चर्य नहीं, 15 अगस्त 2019 को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जनसंख्या विस्फोट के विषय पर देश को आगाह किया गया। कोविड 19 के समय 2021 में होने वाली जनगणना समय से नहीं हो पाई, पर आईयूएन की रिपोर्ट के अनुसार बताया गया कि भारत 2023 में चीन को पीछे छोड़ जनसंख्या में विश्व में पहले स्थान पर पहंुच गया है।

हर कदम पर देश ने बढ़ती जनसंख्या पर अपनी चिंता जाहिर की है, लेकिन आज भी हमारा देश एक प्रभावी जनसंख्या नीति को तरस रहा है। हमें चिंता करनी होगी कि कहीं भारत भविष्य में कम होती जनसंख्या वाले देशों के लिए मजदूर पैदा करने वाला देश ही बनकर न रह जाए। इसलिए भारत को अपनी भावी पीढ़ी के अच्छे भविष्य केे लिए एक प्रभावी जनसंख्या नीति शीघ्र ही बनानी चाहिए।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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