अब रेखा से बंधी दिल्ली की उम्मीद
- दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता ने अपना पद संभाल लिया है। वह छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रही हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र संघ की अध्यक्ष और दिल्ली नगर निगम की पार्षद वह रह चुकी हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनके करीबी संबंध हैं…
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नीरजा चौधरी, वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता ने अपना पद संभाल लिया है। वह छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रही हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र संघ की अध्यक्ष और दिल्ली नगर निगम की पार्षद वह रह चुकी हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनके करीबी संबंध हैं। उनका जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से कितना जुड़ाव है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बुधवार-गुरुवार की देर रात ही उनके विधानसभा क्षेत्र शालीमार बाग में बधाई संदेश वाले पोस्टर लगने लगे थे। ऐसा तभी होता है, जब स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं पर आपकी अच्छी पकड़ हो।
हालांकि, उनके लिए यह पद काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। पहली चुनौती तो वरिष्ठ नेताओं का साथ लेकर सरकार चलाने की होगी। यह सही है कि आरएसएस और भाजपा हाईकमान का साथ उनको मिला है, लेकिन दिल्ली में ऐसे कई वरिष्ठ नेता थे, जो मुख्यमंत्री पद की कुर्सी को हसरत भरी निगाहों से देख रहे थे। प्रवेश वर्मा, सतीश उपाध्याय, वीरेंद्र सचदेवा, विजेंद्र गुप्ता, मनोज तिवारी जैसे कई नेता हैं, जो खुलकर न सही, पर परोक्ष रूप से अपनी इच्छा जाहिर कर चुके थे। फिर भी, पार्टी ने रेखा गुप्ता पर भरोसा किया, तो उन पर यह नजर बनी रहेगी कि वह सबको साथ लेकर कैसे आगे बढ़ती हैं? दिल्ली में अप्रैल में दिल्ली नगर निगम के मेयर का चुनाव होना है और यह चुनाव इसलिए भी खास है, क्योंकि ‘ट्रिपल-इंजन की सरकार’ बनने के दावे अभी से होने लगे हैं। बेशक, दिल्ली के मुख्यमंत्री की एमसीडी चुनावों में सीधी सहभागिता नहीं होती, लेकिन उन पर यह चुनाव जिताने की जिम्मेदारी जरूर होगी। ऐसे में, यह देखना होगा कि रेखा गुप्ता इस चुनाव में कितनी सफल हो पाती हैं?
दूसरी चुनौती, दिल्ली वालों की उम्मीदों को पूरा करने की है। भाजपा 27 साल बाद यहां सत्ता में लौटी है। दिल्ली भले ही एक छोटा राज्य है, लेकिन इसका प्रभाव पूरी दुनिया में है। यहां 3.4 करोड़ लोग बसते हैं और आबादी के लिहाज से यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। जाहिर है, सिर्फ सात लोकसभा सीट और 70 विधानसभा क्षेत्रों में दिल्ली को समेटना गलत होगा। इसका व्यापक प्रभाव हिंदी पट्टी पर है, जहां हर हाल में भाजपा अपना दबदबा बनाए रखना चाहती है। समझने की बात है कि भाजपा केंद्र में इसलिए है, क्योंकि हिंदी पट्टी का भरोसा उस पर है। इस भरोसे को दिल्ली सरकार को बढ़ाना होगा।
फिर, दिल्ली ने इस चुनाव में एक ‘ट्रेंड’ सेट किया है। पहले भावनात्मक मुद्दों पर मत डाले जाते थे, लेकिन दिल्ली वालों ने इस बार ऐसे मुद्दों को नकारकर वायु और जल प्रदूषण जैसे मुद्दों पर वोट दिया। भाजपा इसलिए भी यह चुनाव जीत सकी, क्योंकि लोगों को लगता है कि पड़ोसी राज्यों में भाजपा सरकार होने से दिल्ली की सरकार प्रदूषण की समस्या का स्थायी समाधान निकाल सकती है। भाजपा और नई मुख्यमंत्री पर यह दबाव रहेगा कि वह दिल्ली को एक नजीर के रूप में पेश करें। यमुना की सफाई को लेकर की जा रही नई पहल इसी की एक कड़ी है। मगर ऐसा करते हुए यह ध्यान रखना होगा कि यमुना के तटों को नर्मदा की तरह सजाने-संवारने मात्र से बात नहीं बन सकती। इस नदी के पानी को साफ करना होगा। लिहाजा, निर्मल और स्वच्छ यमुना बनाने की समय-सीमा और कार्य-योजना नई मुख्यमंत्री को जनता के सामने जल्द पेश करनी होगी।
वायु प्रदूषण को लेकर भी यही बात कही जा सकती है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों में भाजपा सरकार होने से नई मुख्यमंत्री पर यह दबाव रहेगा कि वह वायु प्रदूषण से निपटने की ठोस व्यवस्था करें। पंजाब में जरूर आम आदमी पार्टी की सरकार है, पर वहां की साफ आबोहवा को देखते हुए दिल्ली की ‘डबल इंजन सरकार’ पर दबाव जरूर होगा।
नई मुख्यमंत्री पर महिला होने का भी एक अतिरिक्त दबाव होगा। दरअसल, वह यहां की चौथी महिला मुख्यमंत्री हैं। उनसे पहले सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और आतिशी यह पद संभाल चुकी हैं। सुषमा स्वराज को बमुश्किल दो महीने का वक्त मिला था, लेकिन उनका एक बयान आज भी कई लोगों के जेहन में होगा- दिल्ली सोएगी और मैं जागूंगी। इसी तरह, शीला दीक्षित ने यहां के बुनियादी ढांचे पर काफी काम किया और दिल्ली का कायांतरण कर दिया। आतिशी को भी कम समय मिला, लेकिन वह जिम्मेदारी के प्रति गंभीर दिखीं। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जो सुधार हुआ है, उसमें आतिशी का बड़ा योगदान माना जाता है। चूंकि इन सभी महिला मुख्यमंत्रियों ने कुशलता से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया है और लोगों पर अपनी छाप छोड़ी है, इसलिए नई मुख्यमंत्री के सामने एक सफल महिला मुख्यमंत्री होने की बड़ी चुनौती है।
कुछ लोग कहते हैं, आतिशी के जवाब में रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री पद दिया गया है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। उनकी ताजपोशी तीन पहलुओं की ओर इशारा करती है। पहला, बतौर नेतृत्व महिलाओं की अहमियत संघ और भाजपा अब समझने लगी है। दूसरा, रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाकर अरविंद केजरीवाल के बनिया वोट-बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की गई है। और तीसरा, जान पड़ता है कि भाजपा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नाराजगी दूर हो गई है और महाराष्ट्र, हरियाणा के बाद अब दिल्ली में भी मुख्यमंत्री-चयन में उसी की चली है। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने यह समझ लिया है कि संघ के नाराज रहने से लोकसभा चुनाव में उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था, इसलिए संघ के बड़े पदाधिकारियों को सफलतापूर्वक मना लिया गया है। इसलिए रेखा गुप्ता को संघ ने जिस उम्मीद से आगे किया है, उस पर भी उनको खरा उतरना होगा।
इन सबके बीच नई मुख्यमंत्री के सामने ‘फ्रीबीज’, यानी मुफ्त की योजनाओं से पार पाने की भी चुनौती होगी। आम आदमी पार्टी की रणनीति का तोड़ निकालते हुए भाजपा ने महिलाओं को 2,500 रुपये हर महीना देने का वायदा किया है। मुफ्त बिजली और पानी जैसी सुविधाओं को जारी रखने का भी वायदा है। मगर वह ऐसी योजनाओं पर हमलावर भी रही है। हालांकि, अभी एमसीडी का चुनाव सामने है, तो लगता यही है कि इनमें अभी शायद ही कोई छेड़छाड़ की जाएगी। हां, एमसीडी चुनाव के बाद ऐसी योजनाओं को तार्किक बनाने की मांग जरूर पार्टी के भीतर से उठ सकती है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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