Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan opinion column 15 January 2025

विपक्षियों के बीच ही वार-पलटवार

  • दिल्ली की केंद्रीय सत्ता के लिए वर्ष 2023 में बना ‘इंडिया’ ब्लॉक अधूरे राज्य दिल्ली की सत्ता की खातिर वर्ष 2025 के शुरू में ही बिखरता दिख रहा है। गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए था, यह बात संकेतों में पहले भी कही गई है, लेकिन एक-दूसरे पर…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानTue, 14 Jan 2025 10:56 PM
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राज कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

दिल्ली की केंद्रीय सत्ता के लिए वर्ष 2023 में बना ‘इंडिया’ ब्लॉक अधूरे राज्य दिल्ली की सत्ता की खातिर वर्ष 2025 के शुरू में ही बिखरता दिख रहा है। गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए था, यह बात संकेतों में पहले भी कही गई है, लेकिन एक-दूसरे पर सीधे तल्ख हमलों के बाद तो किंतु-परंतु की भी गुंजाइश नहीं बची। गठबंधन में सबसे बड़े दल कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह झूठे वायदे करने का आरोप लगाया, तो जवाबी टिप्पणी आई कि वह कांग्रेस बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि मैं देश बचाने की। जब उद्देश्य ही अलग हैं, तो रास्ते एक कैसे हो सकते हैं? हाल ही में दो बड़े नेताओं ने ‘इंडिया’ ब्लॉक के औचित्य पर सवाल भी उठाए। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने साफ कहा कि अगर गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए ही था, तो फिर ‘इंडिया’ ब्लॉक को भंग कर देना चाहिए। राजद नेता तेजस्वी यादव का बयान थोड़ा कूटनीतिक है। उन्होंने यह तो कहा है कि ‘इंडिया’ ब्लॉक लोकसभा चुनाव के लिए ही था, लेकिन कांग्रेस को अपना पुराना साथी भी बताया। वैसे उमर ने जिस अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की है, उनके विपक्षी गठबंधन में बने रहने के औचित्य पर भी सवालिया निशान लग गए हैं। घटक दलों और नेताओं की महत्वाकांक्षाओं के टकराव से ही यह बिखर रहा है।

घटक दलों में और उनके नेताओं के दिलों में भी, दरारें पिछले साल ही नजर आने लगी थीं, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव ने उसे खाई में बदल दिया लगता है। सवाल सिर्फ इतना नहीं कि विधानसभा चुनाव में आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हुआ। घटक दलों में गठबंधन तो पिछले साल हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी नहीं हुआ था। अतीत में झांकें, तो 2023 के अंत में हुए राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में भी ‘इंडिया’ के घटक दल एक-दूसरे के विरुद्ध ताल ठोकते दिखे थे। फिर भी 2024 का लोकसभा चुनाव वे ज्यादातर राज्यों में मिलकर लड़े। नई लोकसभा के पहले सत्र में भी ‘इंडिया’ ब्लॉक एकजुट दिखा, पर दूसरे सत्र में दरार और तकरार नजर आने लगी। शायद नरेंद्र मोदी से मुकाबले की चुनावी जरूरत समाप्त होते ही गठबंधन में ‘फ्री फॉर ऑल’ शुरू हो गया है और हरेक दल अपने भविष्य की राजनीतिक बिसात बिछाने में जुट गया है। दो लोकसभा चुनावों में मोदी की भाजपा से पस्त विपक्ष ने मजबूरी में तीसरे लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन बनाया, पर सिर्फ दल एक बैनर तले आए थे, दिल नहीं।

जब दो दर्जन दल मिलकर भी मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक पाए, तो फिर निजी एजेंडा सतह पर आ गया है। लोकसभा चुनाव में 10 में से पांच सीटें जीत गई कांग्रेस को हरियाणा में किसी से गठबंधन की जरूरत नहीं लगी। महाराष्ट्र में अति आत्मविश्वास की लहर पर सवार महाविकास आघाड़ी में तो परस्पर शह-मात का खेल भी चला। हां, जम्मू-कश्मीर और झारखंड मेें अवश्य ‘इंडिया’ जीता, पर उसमें भी केंद्रीय भूमिका वहां के क्षेत्रीय दलों क्रमश: नेशनल कॉन्फ्रेंस और झारखंड मुक्ति मोर्चा की रही।

अब जब अगले लोकसभा चुनाव 2029 में होने हैं, तब घटक दलों की एक-दूसरे के प्रति मन की ‘गांठें’ ही ‘इंडिया’ के ‘बंधन’ खोल रही हैं। ‘इंडिया’ में असंतोष के स्वर हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनावी पराभव के बाद मुखर हुए, मगर अब जब देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, तब बिखराव साफ नजर आने लगा है।

ध्यान रहे, कांग्रेस का मत प्रतिशत दिल्ली में गिरते-गिरते 2020 के विधानसभा चुनाव में पांच प्रतिशत से भी नीचे चला गया था। कांग्रेस चुनाव ताकत से नहीं लड़ती, तो उसके नेताओं-कार्यकर्ताओं के पलायन के साथ ही मत प्रतिशत में गिरावट भी जारी रहती। यह भी कि दोनों दल मिलकर लड़ते, तो सत्ता विरोधी मतों के पास भाजपा ही एकमात्र विकल्प रहती, लेकिन कांग्रेस जिस तरह आप के विरुद्ध आक्रामक नजर आ रही है, उससे तो आपस में ही जंग का संदेश जा रहा है। जिस शराब नीति घोटाले में केजरीवाल समेत आप के कई वरिष्ठ नेता जेल गए, उसकी शिकायत कभी कांग्रेस ने ही की थी। उसके बावजूद लोकसभा चुनाव के दबाव में दोनों गठबंधन में साथ आए, पर अब कांग्रेस ने जिस तरह आप की महिला सम्मान योजना की उप-राज्यपाल से शिकायत की और कथित शीशमहल का मुद्दा भी जोर-शोर से उठा रही है, तो वह चुनावी अलगाव से ज्यादा रिश्तों में खटास का संकेत है। इसीलिए आप ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस की भाजपा से सांठगांठ है। अभी तक दिल्ली में राजनीति करने वाले कांग्रेस नेता ही आप और केजरीवाल के विरुद्ध ज्यादा आक्रामक थे, लेकिन 13 जनवरी की शाम चुनावी रैली में खुद राहुल गांधी की टिप्पणियों के बाद तो किसी खुशफहमी की गुंजाइश नहीं बची।

न सिर्फ दो घटक दल दिल्ली में एक-दूसरे के विरुद्ध पूरी आक्रामकता के साथ चुनावी ताल ठोक रहे हैं, बल्कि अखिलेश यादव की सपा और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने दिल्ली में आप के समर्थन का एलान कर गठबंधन के अंतर्विरोधों को उजागर कर दिया है। ऐसे ही स्वर उद्धव ठाकरे की शिव सेना के भी हैं। तस्वीर यही उभरती है कि छोटे और क्षेत्रीय दल, कांग्रेस से किनारा कर रहे हैं। तेजस्वी के बयान के मूल में इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस पर दबाव की रणनीति भी हो सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़कर मात्र 19 जीत पाई थी और महागठबंधन की कमजोर कड़ी साबित हुई थी। उद्धव ठाकरे की शिव सेना भी संकेत दे रही है कि मुंबई महानगर पालिका समेत निकाय चुनाव वह अकेले लड़ेगी।

शायद बिखराव की इस तस्वीर के मद्देनजर ही डैमेज कंट्रोल के मकसद से सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गठबंधन के एक होने का दावा किया होगा, लेकिन राहुल गांधी के वार और केजरीवाल के पलटवार के बाद तो विपक्ष की विश्सनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। जब घटक दल ही चुनाव में एक-दूसरे पर निशाना साधेंगे, तो अगले लोकसभा चुनाव तक उनके बीच संबंध कैसे रहेंगे? मतदाता उनकी एकता पर कितना भरोसा कर पाएंगे?

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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