गणतंत्र पर गर्व
भारतीय गणतंत्र का उत्सव सदैव उल्लास और उत्साह का अवसर है। गणतंत्र ने एक लंबी यात्रा तय की है और आज वह जिस मुकाम पर हैं, उस पर निस्संदेह गर्व किया जा सकता है…
भारतीय गणतंत्र का उत्सव सदैव उल्लास और उत्साह का अवसर है। गणतंत्र ने एक लंबी यात्रा तय की है और आज वह जिस मुकाम पर हैं, उस पर निस्संदेह गर्व किया जा सकता है। बेशक, अभी हमें लंबा सफर तय करना है और यदि कमियों की सूची बनाई जाएगी, तो उसके साथ चुनौतियों की सूची को भी रखकर देखना होगा। जितनी चुनौतियां भारत के सामने रहीं, उतनी शायद ही किसी विकसित देश को झेलनी पड़ी हैं। अलग-अलग वर्गों, जातियों और संप्रदायों में विभाजित देश अगर आज सबका देश बना हुआ है, तो यह भारतीय गणतंत्र की ही विशेषता है। गणतंत्र में यदि व्यक्तियों को समान अधिकार न मिले होते, अगर चुनावों की पुख्ता आधारशिला न रखी गई होती, तो हम भटक जाते। खास बात यह है कि समय के साथ हमारी चुनौतियां बढ़ती चली गई हैं। कुछ पुरानी चुनौतियां कमजोर पड़ी हैं, तो उनकी जगह नई चुनौतियों ने फन फैला लिए हैं। फिर भी विश्व स्तर पर भारत, भारतीयों और भारतवंशियों की ताकत भी बढ़ती जा रही है। आज दुनिया में किसी लोकतांत्रिक देश में चुनाव होता है, तो कोई न कोई भारतवंशी भागीदारी करता मिल जाता है।
भारतीय गणतंत्र ने भारतीयों के स्वभाव को पूरी उदारता और संघर्षशीलता के साथ विकसित किया है। हमारी सामाजिक, सामरिक, आर्थिक, राजनीतिक ताकत दुनिया में बढ़ी है, पर हमारे गणतंत्र ने कभी हमें प्रेरित नहीं किया कि हम गलत तरीके से किसी भी देश को परेशान करें। भारत को अपने अनेक पड़ोसियों से समय-समय पर पीड़ा मिली, पर कभी उसे दिल से न लगाना हमारे गणतंत्र ने ही हमें सिखाया है। मिलकर रहना, सहमति बनाकर चलना, विवाद की स्थिति में संयम बरतना और कभी-कभी कदम पीछे खींच लेना इत्यादि भारतीय व्यवहार में शामिल है, इसलिए आज हम पुराने मूल्यों के साथ अडिग खड़े हैं। देश के लोगों को ही नहीं, देश के नेताओं को भी श्रेय देना चाहिए कि उन्होंने अपने-अपने ढंग से गणतंत्र को मजबूती प्रदान की है। अनेक अनुपयोगी कानूनों को खत्म किया गया है और जरूरी कानून बनाए गए हैं। देश के तेज विकास के लिए अगर गणतंत्र में किसी भी संशोधन की जरूरत है, तो वह किया जाए। देश में ज्यादा रोजगार की जरूरत है, ताकि किसी को किसी देश में धक्के खाने की जरूरत न पड़े।
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हमें अपने देश और संविधान के प्रति गर्व का एहसास होना चाहिए। नजर उठाकर देखिए, अमेरिकी गणतंत्र में भी जो परिवर्तन होते दिख रहे हैं, वह चिंताजनक हैं। वहां एक संशोधन पेश किया गया है, जिसके अनुसार, वहां भी कोई नेता दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति बन सकेगा। डोनाल्ड ट्रंप अगर अपने देश के संविधान को बदलना चाहते हैं, तो तय मानिए, अमेरिकी लोकतंत्र का चेहरा बदलने वाला है। दुनिया के दूसरे सबसे शक्तिशाली देश रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने संविधान में संशोधन करके यह व्यवस्था कर रखी है कि वह कम से कम 2036 तक देश की कमान संभालेंगे। रूस में तंत्र कुछ तंग हुआ है, तो चीन में तंत्र का स्वरूप बदलता जा रहा है। शी जिनपिंग के हाथों में साल 2012 से ही कमान है और उन्होंने भी चीन में राष्ट्रपति पद पर दो कार्यकाल की सीमा को हटा दिया है। अगर अपने आसपास भी हम देखें, तो अपने गणतंत्र पर गर्व की सहज अनुभूति होती है और इसी अनुभूति के विस्तार-विकास का हमें संकल्प लेना चाहिए।
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