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बायजू से सबक

  • किसी भी क्षेत्र में ऊंचाई पर पहुंचना महत्वपूर्ण है, मगर उस पर टिके रहने का पुरुषार्थ महानता की श्रेणी में ले जाता…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानFri, 18 Oct 2024 09:09 PM
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बायजू से सबक

किसी भी क्षेत्र में ऊंचाई पर पहुंचना महत्वपूर्ण है, मगर उस पर टिके रहने का पुरुषार्थ महानता की श्रेणी में ले जाता है। बायजू रवींद्रन भी भारत के लिए महत्वपूर्ण उद्यमी साबित हुए, पर महानता से काफी पहले ही फिसल गए। यह युवा आज से दस साल पहले ही स्टार्टअप की दुनिया का शानदार पोस्टर ब्वॉय बन गया था। पढ़ने-पढ़ाने के ऑनलाइन रंग-ढंग को इसने बदलकर रख दिया। अपने छात्रों को टेबलेट देकर एक नई क्रांति का आगाज किया। अगस्त 2015 में जब बायजू एप लॉन्च हुआ, तब महज तीन महीने में 20 लाख छात्र उसकी छतरी तले आ गए। कुशल शिक्षकों और छात्रों के साथ सतत जुड़ाव की वजह से बायजू ने शिक्षा जगत में नई ऊर्जा का संचार किया। रवींद्रन को युवा उद्यमियों के बीच आदर्श माना गया, तो अनेक बड़े निवेशक उनके साथ आ खड़े हुए। स्कूल से स्टेडियम तक बायजू का जलवा हो गया, पर दुर्भाग्य, यह कंपनी डूब गई।

अब स्वयं बायजू रवींद्रन ने बताया है कि 20 अरब डॉलर की कंपनी शून्य पर पहुंच गई है। कभी बहुत चमकदार रहा देश का यह चेहरा लगभग चार वर्ष बाद अपनी पहली वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में चेहरे की धूल झाड़ता दिखा। धूल भी ऐसी कि उसे पता है, आसानी से नहीं हटेगी। धूल दूर करने का हुनर अगर रवींद्रन में होता, तो यह कंपनी कभी ऐसे बुरे हाल में नहीं पहुंचती। खैर, बायजू को डुबोने का श्रेय रवींद्रन को ही दिया जाएगा। जो उद्यमी भारत में लॉकडाउन के खत्म होते ही एक तरह से दुबई जा बैठा था, उसे किस आधार पर सहानुभूति का लाभ दिया जाए? अब जब चिड़िया खेत चुग गई है, तो रवींद्रन बता रहे हैं, ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग सोचते हैं, मैं दुबई भाग गया। वास्तव में, मुझे जाना पड़ा। मैं अपने पिता के इलाज के लिए एक साल के लिए दुबई आया था और मुझे यहीं रहना पड़ा।’ कंपनी जब मुसीबत में थी, तब खुद दुबई जा बैठे युवा उद्यमी को लगता है कि मुसीबत शुरू होते ही निवेशक साथ छोड़ गए और कंपनी संकट में आ गई। सवाल तो रवींद्रन से ही पूछा जाएगा कि मुसीबत भला क्यों शुरू हुई और उसे अव्यावसायिक ढंग से खुद पर ओढ़कर क्यों इतना बढ़ने दिया गया?

पहली नजर में यह स्टार्टअप चादर से ज्यादा पांव फैलाने की ज्वलंत मिसाल है। जब निवेश से आए पैसे का उपयोग कंपनी के जमीनी आधार को मजबूत करने में होना चाहिए था, तब बड़ी-बड़ी कंपनियों का अधिग्रहण किया जा रहा था। यहां तक कि अमेरिका में भी पांव फैलाने की कोशिशें हो रही थीं। बायजू का प्रयोग आज एक सबक है। हिसाब-किताब रखने की भी अवहेलना हुई। कोई भी कंपनी ऊंचाई पर तभी टिकी रह सकती है, जब उसकी पकड़ अपने व्यवसाय क्षेत्र में मजबूत हो और व्यवसाय वहीं तक फैलाना चाहिए, जहां तक पकड़ का भरोसा हो। किसी व्यवसाय को जरूरत से ज्यादा फैलाने का लोभ पूरे व्यवसाय को ले डूबता है। अब रवींद्रन बोल रहे हैं कि वह वापसी करेंगे, भारत लौटेंगे और मजमा लगा देंगे, पर उन्हें पता है, ऊंचाई पर पहुंचना अब आसान नहीं। बायजू ने सबक तो कई सिखाए हैं, पर विश्वास को गहरी चोट लगी है। बेशक, ऑनलाइन कोचिंग कंपनियों और उस पर भरोसा करने वाले छात्रों को ज्यादा सचेत रहना होगा। साथ ही, उद्योग जगत की नियामक संस्थाओं को यह सोचना होगा कि अगर देश का कोई अच्छा स्टार्टअप डूबने लगे, तब उसे सहारा देकर बचाने की व्यवस्था कहां है?

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